राधास्वामी!!16-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) चरन गुरु प्रीति बढाय रही। नाम गुरु छिन छिन गाय रही।।-(आरती हित चित से ठानी। सरन राधास्वामी मन मानी।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-48-पृ.सं.319,320)
(2) करूँ गुरु सतसँग नित्त अली। खटक परमार्थ चित्त खली।।-(उमँग कर आरत गाऊँ नित्त। सरन राधास्वामी धारूँ चित्त।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.132,133,134)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा -कल से आगे।।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी! /
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे -
(190) का शेष:-
पर इसका यह तात्पर्य नहीं है कि मनुष्य कर्म करना ही छोड़ दें या किसी धर्म का पालन ही न करें। नहीं, नहीं उसे सब आवश्यक कर्म करने चाहिएँ और उचित धर्मों का पालन भी करना चाहिए। जैसे, प्रत्येक व्यक्ति को उचित है कि अपना शरीर स्वच्छ और स्वस्थ रक्खे, अपनी शारीरिक व मानसिक शक्तियां जागृत करें, धर्म और श्रम की कमाई से निर्वाह करें, सच बोले, किसी को दुःख न दे, दीन दुखियों की सहायता करें ,बच्चों को शिक्षा दिलावे, परिश्रम द्वारा जीविकोपार्जन करें, विद्या पढे, दूसरों के सुख और आराम के लिए धन का व्यय करें, धर्मानुकूल और सच्चाई से बरते; काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से बचने और मन को वश में रखने के लिए यत्न करें , माता पिता का आदर और सेवा करें, इत्यादि यह सब लाभदायक बातें हैं । हर मनुष्य को इन पर चलना चाहिए किंतु किसी को यह आशा न बाँधनी चाहिए कि इन कामों से,या तीर्थ हवन यज्ञ आदि से उसको मालिक का दर्शन मिल जाएगा।
शुभ कर्मों का फल सुख होता है न कि आत्मदर्शन या मालिक से एकता। यह दुर्लभ वस्तु केवल सच्ची भक्ति (इश्के हकीक )और अंतरी आध्यात्मिक साधन ही से प्राप्त होती है । इसी विषय को हृदयंगम कराने के लिए पुस्तक सारबचन ने फरमाया है:-
राधास्वामी माने न कर्म धर्म री।राधास्वामी जब तप जाने भर्म री।५५। राधास्वामी काटें पिछली टेक री। राधास्वामी भर्म न राखें एक री।५८।
राधास्वामी बुत पूजा न धार री।राधास्वामी पित्र पूजा न कार री।५९।।
राधास्वामी कहे गुरु भक्ति साध री।राधास्वामी भजन बतावें नाद री।६०।
राधास्वामी सत्संग करो कहें री।
राधास्वामी वक्त गुरु थरपें री।६१।।
राधास्वामी दिल पर क़ाबू दिलाये री। राधास्वामी नफ्स अम्मारा गिराये री।६९।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थप्रकाश- भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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