Monday, March 22, 2021

परम् गुरु मेहताजी महाराज के कुछ जीवन प्रसंग

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Be an early riser and be economical, industrious, truthful, kind and considerate, a good citizen and a true bhakta of Huzur Radhasoami Dayal.

        If you want to eat you must sweat firs

t. If you want self-government, you must learn to govern yourself first. If you want to deserve anything you must learn to serve others.

        Waste nothing has been an important principle of my life. I have always advised men and women, young and old alike to see that they do not their time, energy,* thought, wealth, food, clothing, in short anything they possess lest they find themselves in want of them at the time of need.

        I also consider waste as nothing short of sin.

        A community which wishes to go ahead with its work must remain united in purpose, thought and action*

        It must also conserve all its resources of men, money and materials and exercise forethought and arrange for the fulfilment of its aims in good time.

        This can be possible only if every member of the community contributes his or her best effort towards the attainment of the community's ideal.*

         Discipline, self-sacrifice and hard sustained work are not only very helpful in this endeavour but are very essential.(PARAM GURU HUZUR MEHTAJI MAHARAJ)

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  सुबह हो या शाम, खेतो का काम । करते ही रहना तुम लेकर, राधास्वामी नाम।।।  मेहनत और लगन से,धार के तन मन धन तेरे। सुबहो से तुम सुमिरन करना, करना है एक काम। सुबह हो या शाम.......                                          

याद कभी आयेगी तुमको मेहताजी महाराज की,खिंच जायेगा अंतर में मन होंगे घट में उनके दर्शन।होगें घट में उनके दर्शन।सुबह से तुम सुमिरन करना करना बस एक काम। सुबह यो या शाम खेतो का काम, करते ही रहना तुम लेकर राधास्वामी नाम।

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 **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 2- बचन - 38:-* **हमको चाहिए कि हम हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी गलतियों, अपराधों व कमजोरियों को क्षमा करें और हम पक्का इरादा करें कि आगे हम सब अच्छे कामों को करेंगे जो कि हमको करने चाहिए।कोशिश यह है कि कोई अच्छा काम हम से छूटने ना पाए। अधिकतर लोग कहते हैं कि मेरी अंतर की आँख खोल दो। अंतर की आंख खोलने का आसान अर्थ यह है कि आप में समझ और बुद्धि पैदा हो जाए और वर्तमान दशा, उसका आदर्श और दर्जा ऊंचा हो जाए जिससे कि आप बारीक, पेचीदा और मुश्किल मामलों की आसानी से हल कर सकें और होने वाली बातों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आपको पहले से ही हो जाए जिससे आप इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई कर सकें।।*                  

*तीसरी आंख या अंतर की आंख खोलने का एक तरीका यह भी है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें । आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे।" साहब इतनी विनती मोरी- लाग रहे दृढ डोरी" और व्यर्थ बातों से परहेज किया जाए। हर वक्त मालिक के चरणो की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह  वैयक्तिक अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक्त पर हल हो जाती हैं । उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किलें आसानी से हल होते देख कर वे हैरान हो जाते हैं ।                       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*[


परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के बचन]**


*हमको चाहिए कि हम हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी ग़लतियों, अपराधों व कमज़ोरियों को क्षमा करें और हम पक्का इरादा करें कि आगे हम सब उन अच्छे कामों को करेंगे जो कि हमको करने चाहिए। कोशिश यह हो कि कोई अच्छा काम हमसे छूटने न पावे।** 

*अधिकतर लोग कहते हैं कि मेरी अंतर की आँख खोल दो।अंतर की आँख खुलने का आसान अर्थ यह है कि आप में समझ और बुद्धि पैदा हो जाय और वर्तमान दशा, उसका आदर्श और दर्जा ऊँचा हो जाय जिससे कि आप बारीक़, पेचीदा और मुश्किल मामलों को आसानी से हल कर सकें और होने वाली बातों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आपको पहले से ही हो जाय जिससे आप इस संबंध में आवश्यक काररवाई कर सकें।*

   **तीसरी आँख या अंतर की आँख खोलने का एक तरीक़ा यह है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें।* **आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे।*                        *"

'साहब इतनी बिनती मोरी- लाग रहे दृढ़ डोरी'' और व्यर्थ बातों से परहेज़ किया जावे। हर वक्त़ मालिक के चरणों की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह वैयक्तिक अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक्त़ पर हल हो जाती हैं। उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किल आसानी से हल होते देख कर वे हैरान हो जाते हैं।(बचन भाग-2, नं 38 का अंश)*                           

 **परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के बचन भाग-2-(48)*

*28 दिसम्बर, 1952- भंडारे पर आरती के अवसर पर ‘सतसंग के उपदेश’, भाग 3 से बचन नंबर 45 पढ़ा गया कि मालिक की दया प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को तीन दर्जों से गुज़रना पड़ता है। (1) पिछले संस्कार उस पर ख़ास दया होने की इजाज़त दें (2) उसके अंदर ख़ास दया होने की लालसा पैदा हो (3) उसके अंदर ख़ास दया होने की पात्रता या योग्यता पैदा हो आदि आदि।**


        

   *हुज़ूर मेहताजी साहब ने फ़रमाया- इस बचन से मालूम होता है कि हमारी संगत इस समय दूसरे दर्जे से गुज़र रही है यानी सतसंगियों के अंदर ज़बरदस्त चाह इस बात की पैदा हो रही है कि उनको ऊँचे दर्जे के बढ़िया तजरुबे मिलें। इसके बाद जैसा कि बचन में बतलाया गया कि तीसरा दर्जा तब आवेगा जब हमारे अंदर पात्रता यानी योग्यता ख़ास तजरुबे लेने की पैदा होगी। उसके लिये आवश्यक है कि काररवाई से हम उसके अधिकारी बन सकते हैं उसे अमल में लावें जिससे कि वह योग्यता हमारे अंदर पैदा हो जाय और जो सेवा हुज़ूर राधास्वामी दयाल को हर सतसंगी से या संगत से लेनी मंज़ूर**


 परम गुरु हुजूर मेहता जी महाराज जी का पावन भंडारा हम सभी सत्संगी जगत में प्राणी मात्र को बहुत-बहुत मुबारक हो राधास्वामी🙏🙏🙏


गुरुचरण दास मेहता, जिन्हें परम गुरु मेहता जी महाराज के रूप में भी जाना जाता है, राधासामी सत्संग दयालबाग के छठे प्रतिष्ठित संत सतगुरु  थे।  उनका जन्म 20 दिसंबर 1885 को बटाला में एक सम्मानित पंजाबी परिवार में हुआ था।   उनके पिता श्री आत्म राम साहब मेहता थे।  उन्होंने थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, रुड़की (अब IIT रुड़की) से पढ़ाई की और पंजाब सरकार में सेवा की।


 1937 में मेहता जी महाराज 6th राधास्वामी सत्संग दयालबाग के संत सतगुरु बने।  उन्होंने कृषि कार्य [उद्धरण वांछित] और सेवा पर जोर दिया। [[]  उन्होंने दयालबाग के उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों को भी मजबूत किया और उन्हें दयालबाग के वास्तुकार के रूप में जाना जाता था


 परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज के संदेश


प्रातः काल उठने वाले एवं मितव्ययी, परिश्रमी , सत्यभाषी , दयावान और विचारशील , उत्तम नागरिक और हुजूर राधास्वामी दयाल के सच्चे भक्त बनिए ।


    यदि आप भोजन चाहते है तो पहले परिश्रम करके पसीना बहाइए । यदि आप स्वशासन चाहते हैं तो पहले अपने ऊपर शासन व संयम करना सीखिए । यदि आप अपने आपको किसी वस्तु के पाने के योग्य बनाना चाहते हैं तो दूसरों की सेवा करना सीखिए ।


      किसी चीज़ को नष्ट न करना मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत रहा है । मैंने हमेशा पुरुषों और स्त्रियों , बूढों और नौजवानों सबको समान रूप से यह परामर्श दिया है कि वे हमेशा ध्यान रखें कि वे अपना समय , अपनी शक्ति , अपने विचार , अपना धन , अपने खाने की चीज और वस्त्र अर्थात् जो कुछ उनके पास हो उसे नष्ट न होने दें ताकि जरूरत के समय उनको उसकी कमी महसूस न हो । मेरा यह भी विचार है कि किसी चीज़ का नष्ट करना पाप से कुछ कम नहीं है ।



जो संगत अपने काम में आगे बढ़ना चाहती है उसे अपने उद्देश्य , विचार एवं क्रिया में एक होना चाहिए ।उसे यह भी चाहिए कि अपने कार्यकर्ताओं , धन और सामान से संबंधित सभी साधनों को सुरक्षित रखे और दूरदर्शिता से काम ले तथा अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए उचित समय के अन्दर इंतजाम करे । यह केवल तभी मुमकिन हो सकता है जब उस संगत का हर सदस्य अपनी संगत के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यथाशक्ति ज़ोर लगाए । अनुशासन, क़ुरबानी और लगातार सख्त मेहनत इस प्रयास में न सिर्फ सहायक हैं बल्कि निहायत ज़रूरी हैं ।


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