**राधास्वामी!! 15-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) कौन करे आरत सतगुरु की।।टेक।।
ब्रह्मदिक सब तरस रहे हैं। मिली नहीं यह पदवी।।
-(अलख अगम दरसे पद दोनों। आगे राधास्वामी चरन परसती।।)
(सारबचन-शब्द-छठवाँ-पृ.सं558,559-
विशाखापट्टनम दयालनगर-ब्राँच-162- उपस्थिति)
(2) त्याग दे प्यारी जग ब्योहार।।टेक।।
बिरध अवस्था आकर छाई। अब गफलत तज हो हुशियार।।
-(राधास्वामी दया संग ले अपनेः
सहजहि उतरो भौजल पार।।)
(प्रेमबानी-3-शब्द-11-पृ.सं.8)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल से आगे:-( 47)-
एक डिप्टी साहब बहुत बीमार थे। हुजूर ने सत्संग में उनको सामने बैठा लिया। उनसे पूछा कि आप इस कदर परेशान क्यों हैं ?
डिप्टी साहब ने कहा, "मेरा ख्याल है कि दयालबाग पर बड़ा संकट आने वाला है, जिससे पेड़ों के नीचे भी सरन नहीं मिलेगी।"
हुजूर ने फरमाया -"खतरे का वक्त दुनिया पर आवेगा। सत्संग पर भी अवश्य बादल आवेंगे और गरजेंगे भी लेकिन बिना बरसे हुए ही निकल जावेंगे। इसलिए आप क्यों इस कदर डरते हैं? " दूसरी बात डिप्टी साहब ने जो बुड्ढे और दिल के रोगी थे यह कही कि "मुझे पता नहीं कि शायद सत्संग का कोई रुपया मेरे जिम्मे हो?"
हुजूर ने फरमाया-" अगर है तो मैंने मुआफ किया, आप इस ख्याल को भी अपने दिल से निकाल दीजिए। फिर डिप्टी साहब ने कहा कि "मुझे अपनी लड़की के विवाह की चिंता सदा घेरे रहती है।"
हुजूर पुरनूर ने फरमाया कि " इसका भी उचित प्रबंध हो जावेगा।" डिप्टी साहब ने हुजूरी चरणों का प्रेम माँगा और चरण छूने की आज्ञा माँगी । हुजूर ने फरमाया कि " इसके लिए साहबजी महाराज से प्रार्थना करो।" क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -[भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे:-
हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक जितने लोक हैं सब उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं लेकिन जो मुझ तक पहुँच जाता है उसका फिर जन्म नहीं होता। जो लोग जानते हैं कि ब्रह्म का दिन हजार युग (महायुग) के बराबर लंबा होता है और ब्रह्म की रात हजार युग (महायुग) की होती है वे रात दिन के तात्पर्य (अर्थ) से वाकिफ हैंँ।
दिन शुरू होने पर सब की सब तमाम खलकत अव्यक्त अर्थात् गुप्त अवस्था से बाहर निकल आती है और रात शुरू होने पर सब की सब उसकी अव्यक्त मे लय हो जाती हैं। ये बेशुमार जानदार बार बार जन्म लेते हैं और रात शुरू होने पर लय को प्राप्त होते हैं और दिन शुरू होने पर नियमानुसार दोबारा प्रकट हो जाते हैं। इससे जाहिर है कि इस अव्यक्त पद (गुप्त अवस्था) से परे एक दूसरी गुप्त अवस्था है जो अविनाशी है और जोे सब व्यक्तियों के नष्ट होते हुए खुद नष्ट नहीं होती।
【 20】
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज
- प्रेम पत्र -भाग 1- कल का शेष:
-
ब्योम चलाय पवन थमवाऊँ। सिंघ मार और स्यार जिताऊँ।।५।।
अर्थ -ब्योम यानी मनाकाश जब सुरत की चढ़ाई के वक्त ऊपर को सिमटें तब प्राण यानी पवन धीमी हो कर ठहर जाती है। स्यार, जो जीव से मुराद है, वह गगन में चढ़ कर सिंह यानी काल को जीत लेता है।
दुर्बल से बलवान गिराऊँ। त्रिकुटी चढ़ यह धूम मचाऊँ।।६।।
अर्थ -दुर्बल वही जीव या सुरत से मतलब है, जो पिंड में उतरकर निहायत बेताकत हो जाती है और त्रिकुटी में चढ़कर काल बली को पछाड़कर जेर कर लेती है।
कागन झुंड हंस करवाऊँ। लूकन को अब सेर दिखाऊ।।७।।
अर्थ -अनेक जीवो को, जो पिंड में बिल्कुल काग यानी मनरूप होकर बरत रहे हैं, दसवें द्वार में पहुँचा कर हंसस्वरूप बनाऊँ और निपट संसारी को, जो उल्लू के मुआफिक मालिक की तरफ से अंधे और अनजान हो रहे हैं, त्रिकूट में पहुँचा पर सूर्यब्रह्म का दर्शन कराऊँ।
उल्टी बात सभी कह गाऊँ। ऐसे समरथ राधास्वामी पाऊँ।।८।।
अर्थ -यह सब उल्टी बातें समर्थ सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया से सही करके दिखाई जा सकती है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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