Wednesday, March 24, 2021

सतसंग सुबह RS 25/03

 **राधास्वामी!! 25-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-                                

  

 (1) राधास्वामी दया प्रेम घट आया। बंधन छूटे भर्म गँवाया।।-(भूल भरम धोखा सब भागा। राधास्वामी चरन बढा अनुरागा।।) (सारबचन-शब्द-16-पृ.सं.145,146-जसीधी ब्राँच(बिहार) 294 उपस्थिति!)                                               

 (2) गुरु प्यारे चरन हिये बस गए री।। भाग जगे सतसँग में आई। बचन सार गुरु रस लिये री।।-(धुन रस पाय सुरत मगनानी। दृढ कर राधास्वामी चरन गहे री।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-6-पृ.सं.14)                          

 सतसँग के बाद:-                                             

  (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                   

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                    

  (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी)                     

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

-भाग 1-( 52)- 13 मई 1941

 को शाम के सत्संग में सत्संग के उपदेश' भाग 1- से बचन नंबर 21-"सत्संग की सेवा की महिमा" पढा गया। इस बचन के समाप्त होने पर हुजूर ने फरमाया- अभी जो बचन पढ़ा गया, आशा है कि आपने उसे गौर से सुना होगा। इसमें सेवा की श्रेष्ठता वर्णन की गई है।

कुछ अर्से से, सत्संगियों के सामने दयालबाग में नई कंपनियों के कायम करने का मामला दरपेश है । यदि इस बचन के भावार्थ को सत्संग की उस बातचीत के साथ जो कंपनियों के बारे में आजकल हो रही है, मिला कर पढ़ा जाय तो यह नतीजा निकलेगा कि जो लोग इस समय इन कंपनियों के हिस्से खरीदेंगे या उनके बारे में दफ्तरों में या बाहर किसी किस्म की सेवा करेंगे या जो लोग डायरेक्टर बन कर उनके लाभों को उन्नति देने की कोशिश करेंगेl

उन सबको हुजूर राधास्वामी दयाल की, सत्संग की और सतसँगियों की ओर कुल मनुष्य जाति की सेवा करने का खूब मौका मिल सकेगा। अगर इन कंपनियों के हिस्सेदार, डायरेक्टर , अफसर व कार्यकर्ता जिनको इस समय सेवा का अवसर मिला है वे इस अवसर का अच्छी तरह लाभ उठावें और इस पवित्र सेवा को करें तो फिर क्या कहना!  इसलिए उचित होगा कि आप तमाम साहबान जिनको इस समय सेवा करने के लिए उमंग हो व अवसर मिले ,वे  अपने निर्णय करें कि क्या वे यह सेवा करना चाहते है या नहीं या इस अवसर को ऐसे ही खो देना चाहते हैं। इस समय आपको सेवा का अवसर मिला है इसलिए या तो इसके लिए आप तैयार हो जाइए और उसको उत्तम रीति से कीजिए वरना यह बहुमूल्य आवसर आपके हाथ से निकल जावेगा।

निस्संदेह यह काम मुश्किल और मेहनत का है इसलिये तमाम डायरेक्टर साहबान को यह बात याद रखनी चाहिए कि उनको कंपनियों को सफल बनाने के लिए सख्त मेहनत करनी होगी और इसके लिए मेहनत करने और कष्ट झेलने को तैयार हो जाना चाहिए। आप शाहबाद में से जो लोग काम करने के लिए आगे बढ़े वे दृढ़ संकल्प लेकर आवें। काम को शुरू करके उसको अधूरा छोड़ देना या मुश्किलें व रुकावट आने पर घबरा जाना या उसमें रुकावटें डालना और रोडे अटकाना निहायत नापसंदीदा तरीके है।

 अगर किसी भारी पत्थर को जो मशीन के सामने होने से उसको चालू होने से रोकता है, हटाना आवश्यक है, तो फिर पक्का इरादा करके जब तक उसको हटा न लिया जाय कोशिश बराबर जारी रखनी चाहिए । पत्थर को सिर्फ अपनी जगह से हटा देना या उसको आधी दूर तक ले जाकर छोड़ देना और हार जाना तो बुद्धिमानी की बात नहीं है। काम जो किया जाय पूरा किया जाय वरना उसे शुरू ही न किया जावें।।                                            

    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे:-【 दसवां अध्याय】

{ विभूतियों का बयान}                      

  [ इस अध्याय में श्री कृष्ण जी ने अपनी विभूतियों यानी जगत में अपने जल्वों का जिक्र करके अपनी अपार महिमा का अनुमान कराते हैं और आखिर में वाजह फरमाते हैं कि उनकी कुदरत  इतने ही पर खत्म नहीं हो जाती क्योंकि यह सब जगत् को उनके सिर्फ एक अंश ने संभाल रक्खा है। उनकी बाकी सत्ता अनंत व अपार है।]:-

श्री कृष्ण जी बोले- हे अर्जुन ! मेरा परम उपदेश फिर से सुनो जो इसलिए कि तुम मेरे प्यारे हो तुम्हारी भलाई के लिए सुनाता हूँ। सारे देवताओं और सारे महर्षियों में से किसी को मेरे आदि का ज्ञान नहीं क्योंकि मैं खुद सब देवताओं और मैं महर्षियों का आदि हूँ।

जो इंसान मुझे अजन्मा व अनादि और जगत का महेश्वर (मालिक) जानता है वह माया के भ्रम में न पड कर सब पापों से छूट जाता है। बुद्धि ज्ञान, सत्, असत्,का विवेक, क्षमा, सत्य, इंद्रिय- निग्रह, शांति ,खुशी, रंज ,भाव, अभाव भय और अभय, कहिंसा, समता,संतोष, तप, दान, मान, अपमान मनुष्यों के ये सब गुण मुझ ही से प्रकट हुए हैं।

【 5】                                                    

  क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र -भाग 1

- कल से आगे:-( 53)-

[ राधास्वामी मत के अभ्यर्थियों को दुनियादारों और दूसरे मतों के लोगों से और खास कर बाचक ज्ञानियों और सूफियों से किस तरह बरताव करना चाहिए]-                                                                    

(१) दुनियादारों के साथ बर्ताव:- राधास्वामी मत के अभ्यासियों को दुनियादारों और बिरादरी के लोगों से जरूरत के मुआफिक बरतना चाहिए, यानी गहरी प्रीति के साथ इनसे जल्द जल्द मिलना और बहुत देर इनके साथ बैठना नहीं चाहिए। सिर्फ इसी कदर कि जितनी जरूरत है इनसे मिलना और बातचीत करना मुनासिब है। और ज्यादा बर्ताव इनसे नहीं करना चाहिए, नहीं तो इनके स्वभाव और आदत और संसारी चाहें परमर्थी के मन में असर करेंगीं, और उसके अभ्यास में खलल और हर्ज डालेंगी, और उसके प्रेम और भक्ति के कायदे और रीति के बर्ताव में भी कसर पड़ेगी।।                               

 (२)- बाहरमुखी पूजावालों के साथ बर्ताव:- जो पिछले संतो के मत या और किसी मत के लोग बाहरमुखी मूरत या किसी निशान या ग्रंथ या पोथी या किताब की पूजा करते हैं और सिवाय पोथी या ग्रंथ या किताब के पढ़ने और सुनने के दूसरा काम नहीं करते, और ग्रंथ या पोथी या किताब के अंतरी अर्थ और घट के भेद से बिल्कुल वाकिफ नहीं है और न उसकी तलाश और तहकीकात करते हैं, बल्कि जो कोई उनको भेद की बात सुनावे तो मन और चित्त से सुनना भी नहीं चाहते हैं, ऐसे लोग सब टेकी है। उनसे भी राधास्वामी मत वालों को बचना चाहिए, यानी उनके साथ मेल और दोस्ती मुनासिब नहीं है, क्योंकि यह लोग भी संसारी हैं और मालिक का खोज और प्यार इनके मन में बिल्कुल नहीं है । 

और जो कोई उनसे मेल मिलाप रक्खेगा, उसको भी संसार की तरफ झुकावेंगे और सच्चे परमार्थ की तरफ से अपने मुआफिक बेपरवाह कर देंगे। और तरह-तरह के शक सच्चे परमार्थी के मन में डालने को तैयार होंवेगे और कहेंगे कि संसार में रहकर जिस किसी ने मन और इंद्रियों के भोगों को नहीं भोगा या भोगना नहीं चाहता है, वह नादान और अभागी है, या यह कि परमार्थ के ख्याली सुखो के वास्ते दुनियाँ के मौजूदा मजे और रसों को छोड़ देना बिल्कुल बेसमझी की बात है।।                                    

   (३)- कर्मकांड और हठयोग के करने वाले अनेक तरह के ही के दु:ख और कष्ट भोगते हैं:-

 कर्मकांडी लोग अनेक तरह के सुखों की आशा इस लोक की या स्वर्ग और बैकुंठ लोक की बाँध कर बाहरमुखी कर्म और करतूत करते हैं और हठयोगी, जो कोई कोई अंग की सफाई के वास्ते या बीमारी दूर करने को या कोई सिद्धि हासिल करने के लिए काष्टा और तकलीफ उठाते हैं, इन सबसे भी राधास्वामी मत के अभ्यासियों को दूर रहना चाहिए, और किसी हालत में इनसे मेल मिलाप प्रमार्थी रखना मुनासिब नहीं, बल्कि जो संसारी भाव में इनसे रिश्तेदारी या पिछली मुहबँबत या संग होवे, तो उसको आहिस्ता आहिस्ता कम करना और सिर्फ जरूरत के मुआफिक मिलना बातचीत ब्यौहार की करना चाहिए ।

परमार्थी बात इन लोगों से करना जरूरी नहीं, क्योंकि इनके मन में सच्चे मालिक का भाव और प्यार नहीं है और न उसका खोज और तलाश है। यह तो संसार के स्वर्ग और बैकुंठ के भोग विलास के चाहने वाले हैं, या दुनियाँ में तमाशा और खेल दिखाकर धन और मान बड़ाई के पैदा करने वाले हैं, सच्चे परमार्थ की चाह इनके मन में बिल्कुल नहीं है और न  पैदा हो सकती है। इस वास्ते जो बचन बिलास या मेहनत इनके समझाने के वास्ते की जावेगी, यह मुफ्त बरबाद जावेगी और फिर कायल हो कर यह लोग अपनी नादानी से संतमत की निंदा और हंसी करेंगे।।                       

क्रमशः                          

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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