**राधास्वामी!! 19-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु बिन कभी न उतरे पार। नाम बिन कभी न होय उधार।।-(कहा राधास्वामी अगम बिचार। सुने और माने करे निरवार।।) (सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.346,347-गुरुग्राम ब्राँच-221-उपस्थिति!)
(2) गुरु प्यारे नजर करो मेहर भरी।।टेक।। मैं भई दासी तुम्हरे चरन की।सब तज तुम्हरे द्वारे पडी।।-(राधास्वामी सतगुरु दीनदयाला। अब मौपे पूरन दया करी।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-1-प्रेम प्रकाश-भाग दूसरा-पृ.सं,11,12)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) आतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग-1- कल से आगे:-( 49)-
20 मार्च 1941 को रात के सत्संग में सारबचन से एक शब्द पढ़ा गया- गुरु बचन कहे सो सुन रे। अब सत्संग में चित्त धर रें।।(सारबचन- बचन, 20, शब्द,28)
हुजूर ने फरमाया - अगर आप लोगों ने इस शब्द को गौर से सुना होगा तो आपको यह बात मालूम हो जाएगी कि अगर आप लोगों में से किसी ने सरकार साहब या साहबजी महाराज को कभी प्रसन्न किया हो और उनकी दया व मेहर प्राप्त की हो , तो वह इसी प्रकार प्राप्त हुई होगी कि उन्होंने फरमाया या जिसके लिए उन्होंने आज्ञा दी हो उसको आपने मानकर उसकी तामील की हो और उस पर अमल किया हो ।
अगर उन्होंने कोई बात कही और आप अपने मन के अंग पर डटे रहे और उसके अनुसार अपने ढंग को नहीं बदला तो, इस हठधर्मी और गलत ढंग से कोई लाभ नहीं है। यदि आप लोग आपस में हठ करते हैं या विरोध करते हैं तो इसमें अधिक हानि नहीं । लेकिन यदि आप सरकार साहब या साहबजी महाराज के सामने आपा ठान कर उनसे जिद करते रहें और उनकी बात या हुकुम को न माना तो आपने अपनी ही हानि की। आपको चाहिए कि जब सतगुरु यहाँ पर आवें तो जैसी वह आज्ञा दें या जो बात वह कहें वैसा आपको सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। इसमें आपका भला होगा।
इस पर एक सरदार जी ने कहा है कि साहबजी महाराज भी यही कहा करते थे कि जब सरकार साहब कोई आज्ञा दे उसे फौरन मान लेना चाहिए यद्यपि सरकार साहब की निज धार उनके भीतर मौजूद थी। इसी तरह हुजूर भी हर बात को साहबजी महाराज पर रखकर फरमाते हैं । मैं तो यही समझा कि हम लोगों को आपके(हुजूर के) हुक्म पर या इशारे पर चलना चाहिए। मेरी राय में यह बचन आप पर घटता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे :-
बेवकूफ लोग मेरे मनुष्य शरीर धारण कर लेने पर मेरी परम सत्ता से नावाकिफ होने की वजह से मुझ कुल सृष्टि के मालिक की तरफ से मुँह फेर लेते हैं। ये लोग व्यर्थ इच्छाओं वाले, व्यर्थ कर्मो वाले, अज्ञानी और मूढ होते हैं और धोखा देने वाली राक्षसी व असुरी (शैतानी सिफ़ात वाली) प्रकृति यानी खसलत रखते है।
और जिन महात्माओं की मेरी दैवी प्रकृति या खसलत होती है वे मुझ को कुल रचना का अक्षय स्रोत जानकर पूर्ण भक्ति के साथ भजते हैं। वे प्रतिज्ञाओं के पक्के, पुरुषार्थी, मुझको नमस्कार करते हुए मेरे कृति गाते हैं और सदा एकाग्रचित्त रहकर श्रद्धा के साथ मेरी पूजा करते हैं। इनके अलावा ऐसे भी लोग हैं जो ज्ञानयज्ञ (वह यज्ञ जिसमें ज्ञान की आहुति डाली जाय) करते हुए मुझे एक रूप से और अनेक रूप में सर्वव्यापक (हर जगह मौजूद) मौजूद मानकर नाना प्रकार से मेरी पूजा करते हैं ।【15】 क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏
**परम गुरु हुजूर महाराज -
प्रेम पत्र- भाग 1
- कल से आगे:-( 5)-
मालूम होवे कि जैसे कुल रचना और हर चीज में तीन दर्जे हैं- उत्तम, मध्यम और निकृष्ट यानी उत्तम और बीच का, ऐसे ही आदमियों में भी तीन दर्जे या किस्म है। जो उत्तम लोग हैं वह बचन जल्द समझते हैं और पकड़ते हैं और संदेह और भरम भी उनके जल्द दूर हो जाते हैं और जब वे करनी यानी अभ्यास में लगते हैं, तब उनको अंतर में उसका फायदा भी जल्द नजर आता है, क्योंकि वह जो काम करते हैं उसमें सर्व अंग करके लगते हैं। और जो मध्यम जीव है, उनको यह सब बातें थोड़े समय में हासिल होंगी। और जो निकृष्ट जीव हैं, उनकी समझ भी बहुत मंद और सुस्त होगी और संशम भरम भी उनके मन में अक्सर पैदा होते रहेंगे और वक्त अभ्यास के दुनियाँ के ख्याल भी उनको बहुत सतावेंगे। इस सबब से शुरू में भजन और ध्यान का रस भी उनको कभी-कभी और बहुत कम आवेगा, पर जो वे नेम से हर रोज अभ्यास करे जावेंगे तो थोड़े ऐसे में आदत पड़ जावेगी, और जो विघ्न मुश्किल मन के लगने और रस के मिलने में पेश आवेंगे, वह भी हल्के और दूर होते जावेंगे।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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