तीसरी आँख खोलने की गुजारिश
हमको चाहिए कि हम हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी ग़लतियों, अपराधों व कमज़ोरियों को क्षमा करें और हम पक्का इरादा करें कि आगे हम सब उन अच्छे कामों को करेंगे जो कि हमको करने चाहिए। कोशिश यह हो कि कोई अच्छा काम हमसे छूटने न पावे।*
*अधिकतर लोग कहते हैं कि मेरी अंतर की आँख खोल दो।अंतर की आँख खुलने का आसान अर्थ यह है कि आप में समझ और बुद्धि पैदा हो जाय और वर्तमान दशा, उसका आदर्श और दर्जा ऊँचा हो जाय जिससे कि आप बारीक़, पेचीदा और मुश्किल मामलों को आसानी से हल कर सकें और होने वाली बातों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आपको पहले से ही हो जाय जिससे आप इस संबंध में आवश्यक काररवाई कर सकें।** **तीसरी आँख या अंतर की आँख खोलने का एक तरीक़ा यह है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें।* **आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे।* *"'साहब इतनी बिनती मोरी- लाग रहे दृढ़ डोरी'' और व्यर्थ बातों से परहेज़ किया जावे। हर वक्त़ मालिक के चरणों की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह वैयक्तिक अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक्त़ पर हल हो जाती हैं। उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किल आसानी से हल होते देख कर वे हैरान हो जाते हैं।(बचन भाग-2, नं 38 का अंश)* **परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के बचन भाग-2-(48)*
*28 दिसम्बर, 1952- भंडारे पर आरती के अवसर पर ‘सतसंग के उपदेश’, भाग 3 से बचन नंबर 45 पढ़ा गया कि मालिक की दया प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को तीन दर्जों से गुज़रना पड़ता है। (1) पिछले संस्कार उस पर ख़ास दया होने की इजाज़त दें (2) उसके अंदर ख़ास दया होने की लालसा पैदा हो (3) उसके अंदर ख़ास दया होने की पात्रता या योग्यता पैदा हो आदि आदि।
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*हुज़ूर मेहताजी साहब ने फ़रमाया- इस बचन से मालूम होता है कि हमारी संगत इस समय दूसरे दर्जे से गुज़र रही है यानी सतसंगियों के अंदर ज़बरदस्त चाह इस बात की पैदा हो रही है कि उनको ऊँचे दर्जे के बढ़िया तजरुबे मिलें। इसके बाद जैसा कि बचन में बतलाया गया कि तीसरा दर्जा तब आवेगा जब हमारे अंदर पात्रता यानी योग्यता ख़ास तजरुबे लेने की पैदा होगी। उसके लिये आवश्यक है कि काररवाई से हम उसके अधिकारी बन सकते हैं उसे अमल में लावें जिससे कि वह योग्यता हमारे अंदर पैदा हो जाय और जो सेवा हुज़ूर राधास्वामी दयाल को हर सतसंगी से या संगत से लेनी मंज़ूर**
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