Monday, March 15, 2021

सतसंग शाम RS 15/03

 **राधास्वामी!! 15-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-       

                          

  (1) मत देख पराये औगुन। क्यों पाप बढावै दिन दिन।।

-(यह बात कही मैं चुन चुन। कर राधास्वामी चरन अस्पर्सन।।)

 (सारबचन-शब्द -तीसरा-पृ.सं.278)

( पूरनपुर ब्राँच- 220 उपस्थिति)

                                  

    (2) प्रेम गुरु रहा हिये में छाय। सुरत अब नई २ उमँग जगाय।।

गाउँ क्या महिमा उनकी सार। दई मोहि चरन सरन कर प्यार।।

-(करें तुम आरत धर कर प्यार। गायें नित राधास्वामी धाम दयार।।)

(प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.131,132) 

  (3( यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा कल से आगे।     

                  

  सतसंग के बाद:-    

                                                 

    (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।।                                                            

  (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भाई. मेलारामजी फ्राँस।).       

(4) 13 छप्पर रेजिडेंट्स की तरफ से बच्चो का साँस्कृतिक कार्यक्रम-

"होली खेले सयानी"।  एवम् कव्वाली।। मेरा कोई नही है तेरे सिवा।। मैं बनके सवाली आया हूँ।।          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**राधास्वामी!! 15-03- 2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:-                                     

(190)

 प्रश्न- किंतु आपकी पुस्तकों में कर्म- धर्म का भी तो निषेध है। जैसे कहा है-" राधास्वामी मानें न करम धरम री" इसका क्या इसका क्या कारण है?  

                                                           

   उत्तर-कारण स्पष्ट है। कर्म से यहाँ तात्पर्य हवन, यज्ञ, अमावस्या का स्नान, सूर्य ग्रहण का दान, बद्रीनारायण का दर्शन आदि है। हरचंद, हवन, यज्ञ स्नान, दानपुण्य करना और पहाड़ों का भ्रमण बुरे काम नहीं है, बल्कि मनुष्य के लिए लाभदायक ही है, किंतु इन कार्रवाइयों से किसी का यह आशा रखना के मालिक का दर्शन या मोक्ष मिल जायगा, भ्रांतिमूल्क है । इसी प्रकार पूर्व काल के धर्म, तीर्थ, व्रत, काशीवास, यज्ञोपवीत और कच्ची-पक्की रसोई की टेक, वर्णाश्रम आदि, जिनकी लोग आजकल उल्टी-सीधी नकल कर रहे हैं, आत्म दर्शन के अभिलाषी के लिए व्यर्थ हैं।                        

 क्या आपने भगवद्गीता का यह श्लोक नहीं सुना ?-                                              

   सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।१८/६६।।                                                      

 अर्थात् हे अर्जुन! सब धर्मो को छोड़कर केवल मेरी शरण ग्रहण कर, मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूँगा। मत इसमें सोच कर। जिस कारण श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को सब धर्म छोड़ने के लिए आज्ञा की उसी कारण राधास्वामी-मत में कर्म-धर्म को भ्रम कहा है।

और वह कारण यह है कि किसी अवतार या सच्चे सतगुरु की आज्ञा में बर्तना, उनकी भक्ति करना, उनकी देखरेख में अंतरीं साधन करना आत्म दर्शन के अभिलाषी के लिए परम साधन और परम धर्म है। परम साधन और परम धर्म की अपेक्षा साधारण कर्म और धर्म तुच्छ ही होते हैं।

 क्रमशः                                                           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थप्रकाश- भाग दूसरा

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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