Friday, March 19, 2021

सतसंग सुबह RS 20/03

 **राधास्वामी!! 20-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-                                     

(1) प्रेमी सुनो प्रेम की बात।।

 सेवा करो प्रेम से गुरु की।

और दर्शन पर बल बल जात।।

-(**राधास्वामी!! 20-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-

 (1) प्रेमी सुनो प्रेम की बात।। सेवा करो प्रेम से गुरु की। और दर्शन पर बल बल जात।।-(

राधास्वामी कहत सुनाई। अब सतगुरु का पकडो हाथ।।)

 (सारबचन-शब्द-10-पृ.सं।190,191-विशाखापत्तनम-

दयालनगर ब्राँच-165 उपस्थिति)


 (2) गुरु प्यारे चरन से लिपट रहूँ।।टेक।।

 दर्शन कर मन उमँगा भारी। छिन छिन तन मन वार धरूँ।।-

(राधास्वामी प्यारे रक्षक मेरे। अब जम से मैं नाहिं डरुँ।।)

 (प्रेमबानी-3-शब्द-2-प्.सं.12)

सतसँग के बाद

:- (1) राधास्वामी मूल नाम।।

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हजूर मेहताजी महाराज-

 भाग् 1- कल से आगे:

- हुजूर ने फरमाया कि जैसा साहबजी महाराज फरमाया करते थे आपको वही स्वीकार कर लेना चाहिए और उस पर चलना चाहिए।

इस समय मुझे तो केवल इतना कहना है कि जिन लोगों ने सरकार साहब या साहबजी महाराज के समय में उनकी दया व मेहर का लाभ उठाया हो तो वह उसी ढंग से प्राप्त हुआ होगा कि जो उनकी आज्ञा या मौज थी या जो बात उन्होंने फरमाई इन साहबान ने उनकी मौज व इशारे पर चलकर उसका पालन किया।

 साहबजी महाराज की बात मुझ पर कैसे घट सकती है और न आपको घटाना ही चाहिए। हुजूर ने आगे फरमाया कि जो शब्द पढ़ा गया उससे यही नतीजा निकलता है । वही मैंने आपके सामने पेश कर दिया।

आप इस नतीजे पर चलकर और आजमा कर देखिये कि इससे परमार्थी लाभ होता है या नहीं, और आज्ञा- पालन से साहबजी महाराज आप पर दया फरमाते हैं या नहीं। सरदार जी के कहने पर कि उनकी तवज्जह को हुजूरी चरणों से जोड़ दिया जाय, हुजूर ने फरमाया कि पहले आपको कहना मानना चाहिए और उनके हुकुम और मौज पर चलना चाहिए उसके बाद मालिक आपके ऊपर अवश्य दया करेगा।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]

कल से आगे :-


 अजी! यज्ञ की सामग्री मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, पितरों के अर्पण किया जाने वाला अनाज मैं हूँ, बूटियाँ मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घी मैं हूँ, आग मैं हूँ, और आहुति मैं हूँ, इस जगत का बाप मैं हूँ, माँ मैं हूँ, सहारा देने वाला मैं हूँ, बुजुर्ग में हूँ,पवित्र जानने के लायक 'ओम्' मैं हूँ, ऋक् यजुः और साम मैं हूँ। परमगति, भरण पोषण करने वाला, मालिक ,साक्षी , निवासस्थान, शरण, प्यार करने वाला, जगत की उत्पत्ति, नाश (प्रलय), स्थिति ,भंडार और अविनाशी बीज मैं हूँ।

गर्मी का देनेवाला, बारिश का रोकने और करने वाला, अमृत और मौत, सत् और असत् मैं हूँ। तीन वेदों के जानने वाले, सोमरस के पीने वाले, पापों से शुद्ध लोग यज्ञों से मेरी पूजा करके मुझ से स्वर्ग में पहुँचाये जाने के लिए प्रार्थनाएँ करते हैं और देवताओं के राजा (इंद्र ) के लोक में रसाई हासिल करके स्वर्ग में देवताओं के भोगों का आनंद लेते हैं।

【20】

क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-( 6)-


मालूम होवे कि बिना सुरत और मन के अंतर में लगने और ठहरने के रस और आनंद नहीं आ सकता है। इस वास्ते परमार्थी अभ्यासी को मुनासिब है कि इस बात का ख्याल और होशियारी ज्यादा रक्खें कि मन दुनियाँ की गुनावन और ख्यालों में वक्त अभ्यास के न पड़ जावे, नहीं तो अभ्यास का रस नहीं आवेगा। गौर करने की बात है कि जब कोई शख्स खाना खाता है और कई तरह की चीजें खाने में मौजूद है, उस वक्त जो उसका मन किसी और के कुछ और ख्याल में लग जावे, तो किसी चीज का स्वाद उसको मालूम नहीं होता है, यानी हर एक चीज को खाया भी और फिर खबर न पडी की क्या चीज खाई और उसका कैसा स्वाद था।।

Vफिर परमार्थी अभ्यास संतों का, जो निहायत नाजुक है, बगैर मन और सुरत के लगाये कैसे रसीला लग सकता है। जैसे कि खाते वक्त हर एक चीज जबान से मिली पर तवज्जह दूसरी तरफ होने से स्वाद नहीं मालूम हुआ, इसी तरह से अभ्यासी के मन और सूरत भी मुकाम के स्वरूप तक पहुँचे या शब्द की धार से भी थोड़े बहुत मिले, पर तवज्जह दूसरी तरफ यानी दुनियाँ के ख्यालों में लगी होने से भजन और ध्यान का रस बिल्कुल नहीं मालूम हो सकता है।

इस बात से यह बात जरूरी है कि तवज्जह की संभाल अभ्यास के वक्त रक्खी जावे यानी स्वरूप और शब्द में ध्यान लगा रहे, तो रस आवेगा नहीं तो खाली उठना पड़ेगा और मन दुखी होवेगा। क्रमश:

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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