**राधास्वामी!! 25-03-2021-आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) कोई करो प्रेम से गुरु का सँग।।
मन से कपट और मान तियागो।
प्रेमी जन का धारो ढंग।।
-(राधास्वामी दया दृष्टि से हेरा। बिरोधी हो गये आपहि तंग।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-67-पृ.सं. 333,334:- गुरुग्राम ब्राँच -66 उपस्थिति)
(2) राधास्वामी दाता दीनदयाला। दास दासी को लेव सम्हाल़ो।।-निस दिन रहूँ चरन लौलीना। केल करूँ जस जल सँग मीना।।-(राधास्वामी राधास्वामी नित नित गाऊँ। चरन सरन पर बल बल जाऊँ।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.140,141)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत बढत सतसँग अब दिन दिन।अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
*राधास्वामी!! 25-03- 2021
-आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-(194 का भाग:-
आगे चलकर सूत्र 10 के भाष्य में एक श्रुति उस्थित की गई है जिसका अर्थ यह दिया गया है-" उसे साम मंत्र ऊपर ब्रह्मलोक में ले जाते हैं ।
वह वहाँ जीवघन ( हिरणयगर्भ) जो सबसे परे हैं, उससे परे जो परम पुरुष ( पर ब्रह्म) सारे ब्रह्मांड में स्थित है उसको देखता है"। और सूत्र 14 के भाष्य में छान्दोग्य उपनिषद 8/13 उपस्थित करके उसका अर्थ दिया गया है-" कृतार्थ हुआ मैं अकार्य ब्रह्मलोक को प्राप्त होता हूँ"। और आगे चलकर 8/ 14 भी उपस्थित किया है, जिसका अर्थ यह है-" मैं प्रजापति (परब्रह्म) की सभा को, मंदिर को प्राप्त होता हूंँ"।
थोड़ा और आगे बढ़कर पाद ४ सूत्र १ के भाष्य में आरोग्य उपनिषद ८/१२/३ उपस्थित किया है जिसका अर्थ यह है -"यह निर्मल हुआ आत्मा शरीर से उठकर परम ज्योति (परब्रह्म) को प्राप्त होकर अपने असली स्वरूप से प्रकट होता है"।
और फिर पाद ४ के सूत्र ९ के भाष्य में लिखा है-' सत्यसंकल्प होने से ही मुक्त पुरुष स्वयं राजा होता है, उसका कोई दूसरा अधिपति नहीं होता। जैसा कि कहा है:- स स्वराज् भवति, तस्य सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति ।।
अर्थात वह आत्मज्ञानी स्वराट्( स्वतंत्र अधिपति) बन जाता है और वह सारे लोको का मालिक होता है"। विषय को स्पष्ट करने के लिए एक स्मृति भी लिखी है-" प्रकृति शक्तियाँ इस पर ईशन( हुकूमत ) नहीं करती किंतु यह स्वयं उन पर हुकूमत करता है इसलिए अनन्याधिपति हैं।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा
- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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