*परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1-( 54 )-23 मार्च 1941 को साहबजी महाराज के 'सत्संग के उपदेश' भाग१ के बचन नंबर 29 'तीन कारआमद बातें' का हवाला देते हुए हुजूर ने फरमाया -
राधास्वामी मत की सारी परमार्थी कार्रवाई सत्संगी के भीतर अंतरी परिवर्तन होने के उद्देश्य से की जाती है, कुछ दिखावे या नुमाइश के लिए नहीं की जाती है । यदि इन कार्रवाइयों से हमारे अंदर कोई अंतरी परमार्थी परिवर्तन नहीं होता तो फिर हमारा सुमिरन, ध्यान, भजन और भेंट आदि सब व्यर्थ है, इससे हमारे अंदर सिवाय कोरा अहंकार पैदा होने के और कुछ नहीं हो सकता।
लोगों को अपने रिश्तेदारों की मौत या बीमारी या किसी दूसरी बड़ी संसारी हानि के होने पर धैर्य से काम लेना चाहिए और मौज के मुताबिक चल कर उसमें ही भलाई समझनी चाहिए। पाठ शुरू होने से पहले हुजूर ने पाठियों से फरमाया कि "आप लोग ऐसे शब्द निकालिए जिससे सत्संगियों की तबीयत खुश हो जाय।" नीचे का शब्द निकला:-
शब्द सँग बाँध सुरत का ठाट। बहे मत जग का चौड़ा फाट।।(सारबचन ,बचन ९, शब्द ७)
हुजूर ने फरमाया- जो लोग सचमुच दुनियाँ से छुटकारा हासिल करके हुजूर राधास्वामी दयाल के चरण में पहुँचने का ख्याल रखते हैं उनको यह गति उसी समय हासिल हो सकती है जबकि वह उस ढंग पर जो इस शब्द के भीतर बयान किया गया है, चलें। ऐसा करने से संसार का मोह व बंधन कम हो जायगा और अंतिम यात्रा में तप करने में सुविधा रहेगी। इसके बाद हुजूर ने शब्द की कड़ियों को अलग-अलग पढवा कर उनका मतलब समझाया जिससे सब को बड़ी तसल्ली हुई । फिर स्त्रियों से फरमाया कि आप साहबजी महाराज का ध्यान करके मौज से शब्द निकाले।
शब्ल निकला-
मेरे प्यारे बहन और भाई । क्यों आपस में तुम झगड़ों। रलमिल कर सत्संग करना।।(प्रेमबिलास, शब्द९२)
फरमाया- अगर बंधन नहीं तुडवाना था तो फिर राधास्वामी मत में आने की क्या जरूरत थी और सतगुरु की सरन किस गरज से ली गई थी ।
हमारी यह गरज थी कि हमको दुनियाँ से सदा के लिये छुटकारा मिले, इसी मतलब से सत्संग में शामिल हुए और गुरु महाराज की सरन ली। ने इस शब्द के तीसरे व चौथे हिस्से को दोबारा पड़वाया। इसके बाद सातवाँ हिस्सा पढवाया।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🙏
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:- अब कृपा करके अपने उन तमाम विभूतियों का, जिनसे आप तीन लोक के अंदर व्यापक हैं, वर्णन कीजिये। योगी जी! आपका लगातार ध्यान करके मैं आपको किस तरह जान सकता हूँ? हे भगवन् ! कैसे और किन किन स्वरूपों से मुझे आपका चिंतवन करना चाहिये? कृपा करके मुझे दोबारा अपने योगबल और विभूतियों का विस्तारसहित हाल बतलावें क्योंकि आपके अमृतरुपी बचन सुनने से मेरी तृप्ति नहीं होती।
श्रीकृष्ण जी बोले- अच्छा है कौरवों में श्रेष्ठ! मैं तुम्हें अपने विभूतियों की निस्बत खास खास बातें सुनाता हूँ। इनके विस्तार का तो अंत नहीं है। हे अर्जुन! मैं वह आत्मा हूँ जो सब जानदारों के घट में निवास करता है। मैं सबका आदि, मध्य और अंत हूँ【20】
आदित्य में मैं विष्णु हूँ, ज्योतिषयों में मैं प्रकाशवान् सूर्य हूँ, मुमरुतो में मरीचि हूँ, और नक्षत्रों में मैं चंद्रमा हूँ।वेदों में सामवेद हूँ, देवताओं में मैं इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और जानदारों में मैं चेतनता ( ज्ञानशक्ति) हूँ।
रुद्रो में मैं शंकर हूँ, यक्ष और राक्षसों में मैं कुबेर हूँ, वसुओं में मैं पावक (अग्नि) हूँ और ऊँचे पहाड़ों में मेरु हूँ। पुरोहितों में मैं बृहस्पति हूँ और सिपहसालारों में मैं स्कंद हूँ। झीलो में एकअक्षर कर् अर्थात् 'ओम्' हूँ और यज्ञों में मैं जपयज्ञ हूँ। स्थावरो में हिमालय पहाड़ हूँ। 【 25】क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-( 6)-
अष्टांग योग के अभ्यासी:- अष्टांग योग व प्राणायाम के करने वाले इस वक्त में बहुत कम होंगे, बल्कि ऐसा मालूम होता है कि पूरा अभ्यासी इस योग का इस वक्त में बिल्कुल दुर्लभ है। जिस किसी ने यह अभ्यास शुरू भी किया, तो कोई न कोई विघ्न या खतरे के सबब से उसका अभ्यास बंद हो गया, या सख्त बीमार पड़ गया। जो कोई पूरा योगी मिले तो वह संतमत की महिमा जल्द समझ कर उसके अभ्यास में शामिल हो जावेगा, पर जो शुरू करने वाले इस अभ्यास के मिलते हैं और उन्होंने प्राणायाम के वसीले से कोई चक्र भी नहीं बेधे वे निहायत दर्जे के अहंकारी हो जाते हैं इस सबब से राधास्वामी मत के अभ्यासियों से उनका मेल किसी तरह नहीं हो सकता।
(7)-वाममार्गी और भैरवी चक्र वाले:- इस फिरके के अभ्यासी बहुत दुर्लभ है, खानपान में सब के सब भूल रहे हैं और जो जो जाहिरी रस्मेन इन्होंने जारी करी है, वे भी इस समय में निहायत नाकिस फल की देने वाली है, क्योंकि महात्मा और समरथ अभ्यासी की गति और है, और जीवो की गति और। जो जी महात्मा पुरुषों की चाल की बगैर उनका अभ्यास किये, यानी बगैर मन और इंद्रियों को बस किये, नकल करेंगे, वे धोखा खावेंगे और माया के घेर में पड़े रहेंगे।
पस यही हाल इस मत के लोगों का सुना जाता है। संतमत के अभ्यासियों को इनसे हमेशा दूर रहना और इनके संग कतई परहेज करना चाहिए, और इनसे किसी किस्म की चर्चा या परमार्थी बचन बिलास कलना नहीं चाहिए, क्योंकि यह संतों के वचन को हरगिज नहीं मानेंगे। इनकी कार्रवाई बहुत नीचे के दर्जे की है, और सच्चे प्रमार्थ यानी जीव के उद्धार का फिक्र इसक्षफिरक़े में बहुत कम बल्कि बिल्कुल मालूम नहीं होता है। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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