वार्ता किमाश्चर्यम् कः पन्था कश्च मोदते ?"*
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जीवन-पथ में जब कभी यह दुविधा उत्पन्न हो कि सही मार्ग कौन-सा है, जीवन में कैसे चलें कि जिससे अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएँ ? तो हमें रामचरितमानस एवं महाभारत के दृष्टान्तों के द्वारा उस दुविधा का निराकरण करना चाहिए।
महाभारत में वर्णन आता है कि पाण्डव प्यासे हैं, और जल की खोज में एक-एक भाई को भेजा जा रहा है। पहले सबसे छोटा भाई गया। उसने जाकर देखा कि सरोवर लहरा रहा था। सरोवर को देखकर उसने सोचा पहले स्वयं जल पी लें और फिर अन्य भाइयों के लिए जल लेकर चलें। लेकिन वहाँ पर एक पहरेदार खड़ा था, उसने यह कहकर रोक दिया कि जल पीने से पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो, नहीं तो मर जाओगे। लेकिन वे इतने प्यासे थे कि उन्होंने यक्ष की बात को नहीं सुना और जल पीकर मर गए। देर होने लगी तो दूसरा भाई आया। वह भी मर गया। सबने देखा कि हमारे भाई मरे पड़े हैं, यद्यपि सबको यक्ष ने रोका और कहा कि मेरे प्रश्नों का उत्तर देकर जल पियो, पर किसी ने नहीं सुना । चारों भाई मरकर गिर गए । उसके पश्चात् वर्णन आता है कि सबसे अन्त में युधिष्ठिर आए। वे बडे धैर्यवान थे । यद्यपि वे अर्जुन के समान धनुर्विद्या में विशारद नहीं थे, भीम के समान बलवान नहीं थे, और नकुल-सहदेव
के समान सुंदर एवं पंडित नहीं थे। पर उनका *विवेक* बड़ा अनूठा था। यक्ष ने कहा -- तुम देख रहे हो तुम्हारे भाइयों ने कितनी बड़ी भूल की है, उन्होंने मेरी चेतावनी को अनदेखा कर दिया अतः मृत्यु को प्राप्त हुए, इसलिए तुम यदि मेरे चार प्रश्नों के उत्तर दे दोगे तो तुम तो जल पीने के अधिकारी हो ही जाओगे और मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि ये जो तुम्हारे चारों भाई मरे पड़े हैं, उनमें से तुम जिस एक भाई को कहोगे, उसे मैं जीवित कर दूंगा। युधिष्ठिर ने अन्यों के समान भूल नहीं की। उन्होंने जल नहीं पिया। उन्होंने पूछा -- आपका प्रश्न क्या है ? यक्ष ने कहा -- मेरे चार प्रश्न हैं । बोले -- *"कः वार्ता किमाश्चर्यम् कः पन्था कश्च मोदते ?"* १. वार्ता क्या है ? २. आश्चर्य क्या है ? ३. मार्ग कौन-सा है ? और ४. प्रसन्न कौन रहता है ? अब आप विचार करके देखिए कि यक्ष के जो ये चारों प्रश्न हैं, क्या वे केवल युधिष्ठिर से ही किए गए हैं ? क्या ये हमारे-आपके जीवन से जुड़े हुए प्रश्न नहीं हैं ? इस प्रसंग के आध्यात्मिक तत्त्व पर यदि विचार करें तो हमें यह लगेगा कि यह यक्ष वस्तुतः काल है और केवल पाण्डव ही प्यासे नहीं थे, बल्कि *संसार के सब जीव प्यासे हैं। और प्यास मिटाने के लिए सरोवर में विषय का जल देखकर उसे पीने जा रहे हैं। और काल कह रहा है कि जिन लोगों ने जीवन के इस रहस्य को समझे बिना विषय के द्वारा तृप्ति पाने की चेष्टा की वे काल के ग्रास बन गए। आज तक जितने भी आए वे मरते ही तो जा रहे हैं।* और इसीलिए हनुमानजी से जब मैनाक पर्वत ने कहा कि आप विश्राम कर लीजिए, तो हनुमानजी ने मन-ही-मन मुस्कराकर सोचा कि पहले यह पता चल जाय कि इनको स्वयं विश्राम मिला हुआ है कि नहीं ? इसका अभिप्राय यह है कि जिनके पीछे-पीछे हम चल रहे हैं पहले यह तो पता चल जाए कि वे किसके पीछे चल रहे हैं ? इसका तात्पर्य यह है कि *जो इन चार प्रश्नों के रहस्य को जान लेगा वह इस विषय के जल को पीकर भी उसमें फँसेगा नहीं, मृत्यु का ग्रास नहीं बनेगा।*
युधिष्ठिर ने यक्ष के चारों प्रश्नों का उत्तर दे दिया, तो यक्ष ने कहा कि चारों भाइयों में से जिस एक को भी चाहो मैं जीवित कर दूंगा । युधिष्ठिर ने कहा कि नकुल या सहदेव में से किसी एक को जीवित कर दीजिए। यक्ष ने कहा कि बड़े आश्चर्य की बात है, अपने सगे भाई भीम या अर्जुन को छोड़कर तुम नकुल या सहदेव को जीवित करने की बात कह रहे हो ? युधिष्ठिर बड़े धर्मात्मा थे, वे बोले कि हम लोग दो माताओं के अलग-अलग पुत्र हैं। मैं अपनी माँ का एक पुत्र बचा हुआ ही हूँ, दूसरी माँ का भी एक पुत्र यदि जीवित हो जाय, तो बड़ा कल्याणकारी होगा। यक्ष ने मुस्कराकर कहा कि मैं चारों को ही जीवन-दान देता हूँ। तो महाभारत की यह कथा वस्तुतः जीवन के शाश्वत सत्य से जुड़ी हुई है । इन चारों प्रश्नों का उत्तर महाभारत और रामायण दोनों में ही दिया गया है।
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