कबीर संगति साध की, हरै और की ब्याधि
संगति बुरी असाध की, आठौं पहर उपाधि।।
*संगति बुरी असाध की, आठौं पहर उपाधि।।
*मूरख से क्या बोलियै , शठ से कहा बसाय।*
*पाहन में क्या मारियै, चोखा तीर नसाय।।*
*लहसन से चन्दन डरै, मत रे बिगारै बास।*
*निगुरा से सगुरा डरै, डरपै जग से दास।।*
*हरिजन सेती रूसना, संसारी से हेत।*
*ते नर कधी न नीपजै, ज्यों कालर का खेत।।*
*ऊँचे कुल कहा जनमिया, जो करनी ऊँच न होय।*
*कनक कलस मद से भरा, साधन निन्दा सोय।।*
*श्री कबीर साहब जी कथन करते हैं कि साधुओं की संगति दूसरों के दुःख और कष्ट को हर लेने वाली है। परन्तु असाधु-पुरुषों की संगति बुरी है;*
*जिसमें रहकर आठों पहर उपाधि का सामना होता है।'' ""मूरख पुरुष से* *बोलने का क्या लाभ? और शठ (मूढ़) व्यक्ति पर किसी का क्या बस चल सकता है? पत्थर में तीर मारने से*
*आखिर लाभ ही क्या है? कि उलटे तीर भी टूटकर रह जाता है।'' ""चन्दन लहसुन से डरता है कि कहीं उसकी संगति से चन्दन की सुगन्धि ही न* *बिगड़ जाये। इसी प्रकार ही निगुरे मनुष्य से गुरुमुख जीव डरते हैं कि उनकी संगति से कहीं बुरे संस्कार न अन्दर में प्रविष्ट हो जायें और*
*मालिक का सच्चा दास इसी भान्ति संसारी मनुष्य की संगति से डरता है।'' ""मालिक के भक्तों से रुठे रहना और संसारी मनुष्यों से प्रेम करना-जिस*
*मनुष्य का ऐसा स्वभाव हो; वह कभी भी फल फूल नहीं सकता, जैसे कि कालर भूमि में खेती उत्पन्न नहीं हो सकती।'' ""यदि मनुष्य की करनी ऊँचे दर्ज़े की नहीं है, तो फिर ऊँची कुल में जन्म लेने से लाभ ही क्या?? 🙏🙏🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏🪴🪴🪴🪴*
No comments:
Post a Comment