**राधास्वामी!!29-03-2021-आज शाम होली स्पेशल सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) प्रेम रंग ले खेलो री गुरु से।
आज पडा तेरा दाव री।।
-(सुरत जगाय उमँग नई धारो।
राधास्वामी चरन समाव री।।)
(प्रेमबानी-3-शब्द-33-पृ.सं.321,322-रानी साहिबा एवम् पवित्र परिवार द्वारा)
(2) मुबारक जन्मदिन जन्मदिन मुबारक-कव्वाली साहब दास कोडा जी एवम् डा०जोशी आंटी जी सामूहिक)
(3) बचन-होली।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
*【होली】
परमपिता स्वामीजी महाराज की बानी में आया है :-
'फागुन मास रंगीला आया।' 'घर घर बाजे गाजे लाया।'
और भी फरमाया है:- 'यह नर देही फागुन मास। सुरत सखी आई करन बिलास ।।'
उसी शब्द में आगे यों भी फरमाया है:-
'तुझ को फिर कर फागुन आया। सम्हल खेलियो लिए हम समझाया।।'
गोया संतो ने फागुन मास नर-देह से उपमा देकर उसकी खास महिमा फरमाई है और निहायत मुनासिब, क्योंकि इस परम उत्तम देह में, जिसमें आदि से अंत तक के द्वारे मौजूद हैं और जिसमें अनन्त शब्द झंकार कर रहे हैं और नित्य आरती हो रही है और जिसमें बैठकर सुरत पर बिलास को प्राप्त हो सकती है , ऐसी महा अचरजी और सुखदायक वस्तु की उपमा साल के सबसे बढ कर आनंद और बिलास भरे मास से ही दी जा सकती थी।
इससे बेहतर उपमा का अनुमान भी नहीं हो सकता। मगर साथ ही साथ जैसा कि तीसरी कड़ी मजकूराबाला में फरमाया है यह हिदायत की कि ऐसी उत्तम देह पाकर सम्हलल के इस संसार में खेलना, तब निर्मल विलास प्राप्त हो सकता है। मतलब यह कि जो देह धारण करके संसार के कीचड़ व गलीज में ऐसी उत्तम अवस्था को खो देते हैं, वे अंत को महा दुःख को प्राप्त होते हैं।
जैसा कि उसी शब्द बारहमासा में फरमाया है:-
"धूल उडाई छानी खाक। पाप पुण्य सँग हुई नापाक।।७।।
इच्छा गुन सँग मैली भई । रंग तरंग बासना गही।।८।।
फल पाया भुगती चौरासी काल देश जहाँ बहु तरासी।।९।।
आस तिरास माहिं अति फँसी।-देख देख तिस माया हँसी।।१०।।
हँस-हँस माया जाल बिछाया। निकसन की कोई राह न पाया।।११।।
तब संतन चित दया समाई। सत्यलोक से पुनि चली आई।।१२।।
ज्यों त्यों चौरासी से काढा। नरदेही में फिर ला डाला।।१३।।
चरन प्रताप सरन में आई। तब सतगुरु अतिकर समझाई।।१४।।
तुझको फिर कर फागुन आया। सम्हल खेलियों हम समझाया ।।१५।।
लेकिन अगर ऐसे समय में मालिक की भजन बन्दगी,सेवा, सत्संग, गुरु -भक्ति वगैरह का रंग खिले और जीव इस तरह पर अपनी अनमोल देह को सफल करें, तो यहाँ भी आनंद और अंत को चरणों का परम बिलास पाकर अमर सुख को प्राप्त हो जावे।।
यह तो वर्णन जीवो की अंतरी कार्रवाई का हुआ। इस नवीन उपमा के अनुसार स्वभाविक ऐसा ही होना चाहिये था कि जहाँ संसारी जीव इस उत्तम समय होली को महा अपवित्र और नीरस कामों में आमतौर पर खोया करते हैं, उस समय पर भक्तजन अपने परम हितकारी संत सतगुरु के हुजूर में बैठ कर नवीन रस आनंद और बिलास करें।
चुनाँचे मौज से ऐसा ही सदा से राधास्वामी पंथ में होता आया है, यानी तातील होने के सबब प्रेमीजन जहाँ-तहाँ से हमेशा से हुजूरी दरबार जमा होकर चरणों का रस और आनंद लेते आये हैं। चुनाँचे इस साल भी होली तारीख 23 मार्च सन 1913 ईस्वी को वाकै हुई।
दूर दराज के करीब पाँच छः सौ के प्रेमिजन बड़े उमंग और उत्साह से दरबार में हाजिर होकर मालिक की भजन- बन्दगी और सत्संग में मशरूफ रहे। जो छबि सत्संग में उस वक्त मालिक ने दया करके पर प्रगट फरमाई और जो आनंद और सरूर पाठ में निहायत गैरमामूली बख्सा उसकी कैफियत हाजरीन दरबार ही जानते हैं, वर्णन नहीं हो सकती।
हजारहा हजार शुक्र उस मालिक का है कि ऐसे समय पर, जबकि संसारियों की तवज्जुह मुजिर जानिब होती है, हम भक्त जनों को अपने चरणों में खींच कर अपार दया मेहर फरमाकर अपूर्व आनंद और रस से सरशार और माला माल फरमा दिया।( प्रेमसमाचार-परम गुरु हुजूर सरकार साहब!)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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