**राधास्वामी!!17-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) आरत आवे स्वामी दास तुम्हारा।
प्रेम प्रीति का थाल सँवारा।।-
(दया क्करो अब राधास्वामी।
देव प्रसाद मोहि अन्तरजामी।।
★स्वामी नगर ब्राँच-दिल्ली-243 उपस्थिति)
(2) ज्ञान तज भक्ति पंथ सम्हार।।टेक।।
यह मत जाल बिछाया काला।
विद्यावान घेर लिये झाड।।
-(राधास्वामी मेहर से सुरत चढावें।
सहज उतारें भौजल पार।।)
(प्रेमबानी-3-शब्द-12-पृ.सं.9,10)
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग-1- कल का शेष:-
हुजूर ने पूछा -' डिप्टी साहब! क्या आपको साहबजी महाराज पर पूरा विश्वास था?'
डिप्टी साहब ने कहा, "हुजूर ने मेरे ऊपर बड़ी दया की लेकिन उनके ऊपर मेरी प्रतीति कच्ची ही रही"। हुजूर ने फरमाया कि अगर साहबजी महाराज पर आपकी प्रतीति कच्ची थी तो इस वक्त आप उस कमी को कैसे पूरी कर सकते हैं।
अगर आपके दिल में घबराहट है तो यही कारण है कि आपको साहबजी महाराज के चरणों में अब भी विश्वास नहीं है । फिर फरमाया लोग कहते हैं कि बचन नहीं होते मगर इतने अर्से तक हुजूर साहबजी महाराज के बचनों के सुनने के बाद अगर सच पूछा जाए तो लोगों में परमार्थी बातों के समझने की योग्यता ही पैदा नहीं हुई और न उन्होंने उन बचनों से कोई फायदा ही उठाया बल्कि एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया।
साहबजी महाराज के बचनों का बकाया आप पर वाजिब है। जिन लोगों ने उनके जमाने में सत्संग तवज्जह और शौक से नहीं किया वे वास्तव में बड़े अभागी थे । अब अगर वह खाली हाथ हैं तो आश्चर्य ही क्या है।।
उनके बचन और हिदियतो पर अमल न करने से ही आपको सख्ती के दौर से गुजरना पड़ा। अगर इस कदर बचन सुनने के बाद अब भी टेक और पक्ष आपके दिल में है तो इससे प्रकट होता है कि आपके अंदर कोई परमार्थी परिवर्तन नहीं हुआ।।
अंत में डिप्टी साहब ने क्षमा माँगी और से चिल्लाकर हुजूर साहबजी महाराज की फोटो के आगे खड़े होकर कहा कि अब उनको साहबजी महाराज के चरणों में पूरा विश्वास आ गया है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[भगवद् गीता के उपदेश]
- {नवा अध्याय} -
【राजविद्या व राजगुरु अर्थात् विधाओं के सरताज और रहस्यों के रहस्य का बयान】-
[ श्री कृष्ण जी अपने तई कुल जगत और सृष्टि का कर्ता धर्ता जाहिर करके अपनी भक्ति पर जोर देते हैं और अर्जुन को समझाते हैं कि सिर्फ इसी तरीके से वह उनके निज रूप को प्राप्त हो सकता है।]
प्रसंग को जारी रखते हुए श्री कृष्ण जी ने फरमाया- हे अर्जुन क्योंकि तुम दोषदृष्टि यानी नुक्स देखने की आदत से बरी हो इसलिए मैं तुम्हें निहायत ही गुप्त ज्ञान, विज्ञान (अनुभव ) सहित,बतलाऊँगा जिसके जानने पर तुम पाप से छुटकारा पा जाओगे।
यह विद्याओं का सरताज, रहस्यों का रहस्य, परम पवित्र , प्रत्यक्षावगम्य अर्थात देखने ही से मालूम होने वाला और धर्मयुक्त अर्थात् धर्म के मुताबिक है। इस पर आसानी से अमल किया जा सकता है और यह सदा कायम रहने वाला है। इस ज्ञान या धर्म में विश्वास न लाने वाले मुझ तक रसाई न पाकर इस मृत्युलोक यानी जन्म मरण वाले दुनियाँ के मार्ग से वापिस आ जाते हैं।
अपने गुप्त रूप से मैं इस सारी दुनिया के अंदर व्यापक और सब वस्तुएँ मेरे आसरे कायम है, मैं उनके आसरे कायम नहीं हूँ। और ये वस्तुएँ खुद मुझ में कायम नही हैं अर्थात् उनको आसरा देता हुआ भी मैं उनसे अलहदा हूँ। यह मेरे योग की कुदरत। मैं मौजूदात को कायम होने वाला हूँ लेकिन फिर उनसे न्यारा हूँ, मेरा आत्मा कुल शरीरों को जान देता है।【 5】
क्रमश: 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-(3)
जो लड़का की मदरसे में पढ़ने को भेजा जाता है उसको फौरन् पढ़ने का रस नहीं आता है पर जो वह डर और खौफ के साथ पढ़ना कुछ अरसे तक हर रोज जारी रखता है, तो रफ्ता रफ्ता उसको मजा आता जाता है, और फिर इस कदर शौक बढ़ जाता है कि जो कोई उसको रोके तो अपने काम को नहीं छोड़ता है, बल्कि दिन दिन उसको बढ़ाता जाता है।
इसी तरह परमार्थ में भी पहले खौफ चौरासी और नरकों के दुख और जन्म मरण और देह की तकलीफों का और शौक अपने जीव के कल्याण और मालिक के मिलने का चाहिए। जो यह शौक और खौफ सच्चा होगा (चाहे शुरू में थोड़ा होवे), तो जरूर परमार्थी कार्रवाई यानी अभ्यास हर रोज बने जावेगा और उसमें थोड़ा बहुत रस भी आवेगा और जिसको दृष्टि से अभ्यास बनेगा यानी दुनियाँ के ख्यालात छोड़ कर और सुरत वक्त ध्यान के स्वरूप में और वक्त भजन के शब्द में लगेंगे, उसी कदर दिन दिन रस बढ़ता जाएगा और अभ्यास करने की आदत मजबूत होती जावेगी।
क्रमशः .
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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