Wednesday, March 17, 2021

सतसंग सुबह RS -DB 18/03

 **राधास्वामी!! 18-03-2021- आज सुबह.सतसँग में पढे गये पाठ:-     

                                                                 

    (1) काया नगर में धूम मची है। खेल रहु अब सूरत होली।।-(कुमति उडाय सुमति अब धारी। मार मार माया सिर धौली।।) (सारबचन-शब्द-6-पृ.सं.846,847  फरीदाबाद ब्राँच-239 उपस्थिति)    

                                                                 

 (2) गुरु बिन घट का भेद न पाय।।टेक।। षट शास्तर और वेद पुराना। पढ पढ बिरथा बैस बिताय।।-(राधास्वामी सरन सम्हारो। मेहर से दें वे काज बनाय।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-13-पृ.सं.10)                                                                    

सतसँग के बाद:-     

                                            

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।।                    

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।                             

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग1

- कल से आगे-( 48 )

-19 फरवरी 1941 को शाम के सत्संग में सारबचन नसर से एक बचन पढ़ा गया जिसका भावार्थ नीचे लिखा है- मालिक अपने भक्तों के हृदय में निवास करता है। जो प्रेमी जन मालिक से मिलना चाहता है उसे चाहिए कि वह उसके भक्तों की सेवा करें और उनको आराम पहुँचावे। हुजूर पुरनूर ने बचन खत्म होने पर फरमाया- जो बचन इसमें पढ़ा गया संभवतः आपने उसे ध्यानपूर्वक सुना होगा। आपको सोच समझकर अपने लिए कोई उपयोगी बात निकालनी चाहिए।  यदि आप हुजूर राधास्वामी दयाल के प्यारे बनना चाहते हैं तो इससे बढ़ कर और सहज उपाय क्या हो सकता है कि जो उनके प्यारे और भक्तजन है आप उनको प्यार करें और सेवा करके उनको आराम पहुंचावें ।  इसके सिवा और कोई सहज उपाय नहीं है । जो सच्चा खोजी है उसे इसी रीति पर चलना चाहिए।        

                                   

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]-

 कल से आगे:-                            

 जैसे प्रचंड वायु चारों तरफ चलने पर भी हमेशा आकाश ही के अंदर कायम रहता है ऐसे ही कुल शरीरों का मेरे अंदर कयाम समझ लो। हे अर्जुन! कल्प (ब्रह्म के एक दिन अर्थात सृष्टिटाल को कल्प कहा है) के खत्म होने पर कुल सृष्टि मेरी प्रकृति के अंदर समा जाती है और कल्प के शुरू होने पर मैं उन्हें फिर जाहिर कर देता हूँ। मैं अपनी प्रकृति का अधिष्ठाता (मालिक) होकर कुल की कुल सृष्टि को, जो प्रकृति की शक्ति के अधीन होने से विवश है, बार-बार प्रकट करता हूँ और उसके कुछ पेश नहीं जाती।और हे अर्जुन! इन कर्मों से मेरे लिए बंधन नहीं पैदा होता क्योंकि मैं उनसे बेलाग और परे हूँ। प्रकृति मुझ अधिष्ठाता की आज्ञानुसार कुल जंगम(चर) और स्थावर(अचर) शरीरों से को पैदा करती है और इसी से यह संसार चक्कर खाता है।


【10】

क्रमशः                                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1

- कल से आगे:-(4)

- जैसे वर्ष 6 महीने के बालक को किसी खाने पीने की चीज का स्वाद खास कर मालूम नहीं होता है, पर हर रोज या अकसर खास खास चीजों के खाने से उसको उनके स्वाद की खबर पडती जाती है, और अपने स्वभाव और आदत के मुआफिक उन्हीं चीजों का खाना उसको पसंद आता है।

इसी तरह शुरू अभ्यास में सभी बालकों के मुआफिक अभ्यास के रस और आनंद की पहचान कम कर सकते हैं। और यहाँ उसका सबब यह है कि पुरानी आदत के मुआफिक दुनियाँ के ख्यालात उनको घेरे रहते हैं, पर जब कुछ दिन इसी तरह अभ्यास जारी रक्खेंगे और दुनियाँ के ख्यालों को हटाते रहेंगे, तो कुछ कुछ रस आने लगेगा और फिर आदत के मुआफिक उनको बगैर  रोज अभ्यास किये कल नहीं पड़ेगी ।

तो इस कदर अर्से तक की आदत मजबूत और कायम हो जावे, हर एक परमार्थी को, चाहे तेज या सूस्त शौकवाला होवे, अपना कभ्यास जारी रखना जरूरी और मुनासिब है।

 क्रमशः                           

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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