Wednesday, September 1, 2021

आज जोनल सत्संग (01092021) में पढा गया बचन*

 *58. गुरुमुख होना मुश्किल है, शब्द का खुलना मुश्किल नहीं है। सो सतगुरु की मौज से होगा, बिना उनकी दया के कुछ नहीं हो सकता।*


*59. दसवाँ द्वार जो इस शरीर में गुप्त है, सो इस कलयुग में संतों ने उसके खुलने का उपाय शब्द के रास्ते से रक्खा है। और सब मत वालों का दसवाँ द्वार और रीति से खुलना गुप्त हो गया है।*


*60. दोनों काम नहीं बन सकते। भक्ती गुरू की करोगे, तो जगत से तोड़नी पड़ेगी और जगत से रक्खोगे, तो भक्ती में कसर पड़ेगी। सो इस बात का नियम नहीं है। जिनके अच्छे संस्कार हैं और सतगुरु की कृपा है, उनके दोनों काम बख़ूबी बनते चले जावेंगे, कुछ दिक़्क़त नहीं पड़ेगी और जिनके संस्कार निकृष्ट हैं, उनसे एक ही काम बनेगा।*


            61. जिसको शब्द मार्ग की चाह है और उसको उसके भेदी संत मिल जावें, तो मुनासिब है कि तन मन धन उनके अर्पण कर दे और उनसे ज़रा दरेग़ न करे।

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            62. नाम रसायन के बराबर कोई रसायन नहीं है। जिसने यह रसायन बना ली, उसके पास सब रसायन हाथ बाँधे खड़ी हैं। जब ख़ाविन्द क़ब्ज़े में आ गया, तब जोरू कहाँ जा सकती है।


            63. मुक्ति में बड़े भेद हैं। कोई तीर्थ और ब्रत करना इसी में मुक्ति समझते हैं, कोई जप तप को मुक्ति रूप जानते हैं, कोई त्याग में मुक्ति मानते हैं। सो यह सब ग़लती में पड़े हैं। संत यह कहते हैं कि जब तक सुरत अपने निज मुक़ाम को न पावेगी, तब तक मुक्ति का होना सही नहीं है।


            64. वेद से आदि लेकर जितने शास्त्र हैं और षट् दर्शन, और चान्द्रायन से आदि लेकर जितने ब्रत हैं और जितना पसारा इस लोक का है, सब नाश होंगे। एक संत और सेवक बचेंगे। इससे लाज़िम है कि संसारी प्रीतों को कम करें और संतों से प्रीति बढ़ावें। उनकी प्रीति सुख की दाता है और धन और मान और स्त्री और पुत्र की प्रीति दुख की दाता है।


            65. पंडित और भेष से जीव का उद्धार नहीं होगा। जब तक संत दयाल न मिलेंगे, और किसी से इस जीव का उद्धार नहीं होगा। सो जहाँ तक बन सके, संत दयाल का खोज करके उनकी सरन पड़े, तो एक ही जन्म में उद्धार है।


  राधास्वामी        

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