*58. गुरुमुख होना मुश्किल है, शब्द का खुलना मुश्किल नहीं है। सो सतगुरु की मौज से होगा, बिना उनकी दया के कुछ नहीं हो सकता।*
*59. दसवाँ द्वार जो इस शरीर में गुप्त है, सो इस कलयुग में संतों ने उसके खुलने का उपाय शब्द के रास्ते से रक्खा है। और सब मत वालों का दसवाँ द्वार और रीति से खुलना गुप्त हो गया है।*
*60. दोनों काम नहीं बन सकते। भक्ती गुरू की करोगे, तो जगत से तोड़नी पड़ेगी और जगत से रक्खोगे, तो भक्ती में कसर पड़ेगी। सो इस बात का नियम नहीं है। जिनके अच्छे संस्कार हैं और सतगुरु की कृपा है, उनके दोनों काम बख़ूबी बनते चले जावेंगे, कुछ दिक़्क़त नहीं पड़ेगी और जिनके संस्कार निकृष्ट हैं, उनसे एक ही काम बनेगा।*
61. जिसको शब्द मार्ग की चाह है और उसको उसके भेदी संत मिल जावें, तो मुनासिब है कि तन मन धन उनके अर्पण कर दे और उनसे ज़रा दरेग़ न करे।
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