*राधास्वामी! 03-09;2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
अहो मेरे प्यारे सतगुरु , प्रेम दान मोहि दीजे ,
दुख सुख बहु भरमावत ॥ टेक ॥
दया करी मोहि संग लगाया ।
मारग का मोहि भेद जनाया ।
घट शब्द जगावत जगावत ॥१ ॥
प्रेम बिना मन होय न सूरा ।
संशै भरम नहिं होवत दूरा ।
धुन रस नहिं पावत ॥२ ॥
याते सतगुरु सतगुरु दया बिचारो ।
प्रेम दान मोहि देव कर प्यारो ।
सूरत अधर चढ़ावत ॥३ ॥
शब्द शब्द धुन सुन रस पावन ।
अधर जाय निज भाग जगावत ।
गुरु गुन उमँगत गावत ॥४ ॥
राधास्वामी मेहर से पहुँची सुन में ।
वहाँ से चल लागी सत धुन में ।
सतपुर बीन सुनावत ॥ ५ ॥
अलख लोक जाय डाला डेरा ।
अगम लोक जाय किया बसेरा ।
राधास्वामी धाम दिखावत ॥६ ॥
राधास्वामी चरन जाय लिपटानी ।
प्रेम बढ़ा अब कहाँ समानी ।
आनँद बरना न जावत ॥ ७॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.150,151)
🙏🏻राधास्वामी! 03-09-2021-
आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
आज सखी सब जुड़ मिल आओ। राधास्वामी की आरत गाओ।।१
आनंद मंगल चहुँ दिसि छाई ।
प्रेम बदरिया बरषा लाई ॥२ ॥ तन मन सुरत भींज रही सारी ।
फूल रही भक्ती फुलवारी ॥ ३ ॥ उमँग
उठी हिय में अति भारी ।
सतगुरु चरनन आरत धारी ॥४ ॥
बिरह अनुराग थाल धर लाई ।
प्रेम लगन की जोत जगाई ॥५ ॥
गरजत गगन शब्द धुन आई ।
घंटा संख मृदंग बजाई ॥६ ॥
सुरत जगी लागी दस द्वारे ।
मगन हुई सुन धुन झनकारे ॥७ ॥
अमी झड़त बरसत चौधारी ।
रूप अनूप चंद्र उजियारी ॥८ ॥
और बिलास अनेक दिखाई ।
हिय बिच प्रीति प्रतीति बढ़ाई ॥ ९ ॥•••••कल से आगे••••
मेहर दया राधास्वामी की परखी ।
ऊपर चढ़ झाँकी सत खिड़की ॥१० ॥
सत्तलोक का द्वारा सोई ।
मुरली धुन सुन सुरत समोई ॥११ ॥
आगे चल पहुँची सतपुर में ।
मधुर बीन धुन सुनी अधर में ॥१२ ॥
अलख अगम का दरशन करके ।
राधास्वामी चरन जाय कर परसे ॥१३ ॥
प्रेम उमँग से आरत धारी ।
राधास्वामी मेहर करी अति भारी ॥१४ ॥
मैं अनजान मरम नहिं जाना ।
अपनी दया से गुरु दियो दाना ॥१५ ॥
मन और सुरत चरन में मेलें ।
बाल समान गोद गुरु खेलें ॥१६ ॥
राधास्वामी काज किए सब पूरे ।
सुरत हुई उन चरनन धूरे ॥१७ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द 11-पृ.स.146,147,148)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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