प्रस्तुति - उषा रानी/
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाक्य वाक्यात- 5-6 अगस्त 1932- शुक्रवार शनिवार :
-रात भर बारिश होने से मौसम ठंडा हो गया है। लेकिन अक्सर मकान टपकने लगे हैं । इस दुनिया में नफा नुकसान और दुख सुख गले मिले ही रहते हैं। कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी का जलसा आयोजित हुआ । जिसमें और बातों पर गौर करने के अलावा टिमरनी हाईस्कूल का बजट मंजूर किया गया। गर्ल्स हाई स्कूल की लेडी प्रिंसिपल और एक नई शिक्षिका ने इस्तीफा दे दिया है ।दोनों बंगाली है।
कमेटी ने यही मुनासिब ख्याल किया कि उन्हें इस्तीफा वापस लेने का एक मौका दिया जाए और अगर यह आग्रह करें तो मंजूर कर लियें जायें। रात के सतसंग में बयान हुआ कि सच्ची शांति व संसारी बासनाओं के पूरी होने से प्राप्त होती है न परोपकार के काम करने से न संसारी बासनायें कम करने और संसार से मुँह मोड लेने से।सच्ची शांति अंतर में रुहानी कुव्वत के जाग्रत होने से प्रकट होती है । जैसे दयालबाग की जमीन होने से यहां हर जगह रेत मिलता है और पहाड़ों में जमीन रेतीली होने से वहां जगह जगह पर रेत मिलता हैं और पहाडों में जमीन पथरीली होने से वहाँ जगह जगह पत्थर मिलते है और किसी मकाम की जमीन जवाहरात से भरपूर होने से वहां जगह-जगह जवाहरात मिलेंगे इसी तरह घाटों पर मसाले की वजह से किस्म किस्म की जागृति या प्रज्ञा का तजरूबा होता है ।
खालिस रुहानी घाट पर जो प्रज्ञा प्रकट होती है वह शांतिमय होती है। इस घाट से नीचे मकामात की जितनी भी हालते है सब छोटे दर्जे की हैं ।इन मकामात की शांति महज आभास मात्र है । चुनांचे जागृत अवस्था में बासनाओ के पूरा होने या परोपकार का काम करने से जो शांति होती है वह न ठहराऊ होती है न ज्यादा गहरी। जैसे सड़क पर भागता हुआ और पसीने में तर आदमी घूँट घूँट पानी पीकर अपने होठ थोड़ी देर के लिए तर कर लेता है और अस्थाई ठंडक महसूस करता है, वही इन जरियों से हासिल होने वाली शांति का हाल है ।
रुहानी घाट की जागृति प्राप्त होने पर जो शांति हासिल होती है वह स्वभाविक और कुदरती होती है और कम होने के बजाय वह दिन-ब-दिन उन्हें प्राप्त होती है। आत्मदर्शन होने पर परम शांति प्राप्त होती है । उसके प्राप्त होने पर फिर किसी चीज या तजर्बा या हालत की आरजू नहीं रहती । यह परम गति है। न इससे बढ़कर कुछ है और न हमारा आत्मा इससे इससे बढ़कर कैसे अवस्था का अनुभव कर सकता है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- सतसंग के उपदेश-
भाग-1- कल का शेष:-
मसलन हर सोसाइटी में प्रधान व सेक्रेटरी के दो ओहदे होते हैं लेकिन सोसाइटी के बहुत से मेंबर इन ओहदो के ख्वाहिशमंद हो जाते हैं। कुछ अर्सा तक तो उनके दिल ही दिल में ईर्ष्या की आग से सुलगती है लेकिन मौका मिलने पर यह खौफनाक सूरत में नमूदार हो जाती है। अपने मुल्क को इस किस्म के नाश करने वाली आगों से बचाने के लिए इंग्लिस्तान के बाज राजनीति समझने वालों ने " कसरत राय से चुनाव" का तरीका निकाला और धीरे-धीरे यह तरीका सब देशों में फैल गया लेकिन इस जमाने में कसरत राय हासिल करने के मुतअल्लिक़ जो जो हथकंडे व चाले इस्तेमाल की जाती हैं उनका भेद प्रकट होने पर और उनके जरिए लीडरी के नाकाबिल लोगों के बड़े रुतबे पाने से जो मुसीबत व तबाही सोसाइटी के सिर आती है ।
उसको मुलाहिजा करके दुनिया के नीति जानने वाले हैरान हैं कि इस नई मुसीबत से कैसे रिहाई हो ? कोई मुनरो के उसूलो पर जोर देता है, कोई मसोलिनी की तरफ उँगली दिखाता है, कोई कमालपाशा के तरीकों की तारीफ करता है, कोई ऋषियों की प्राचीन शिक्षा की तरफ तवज्जह दिलाता है, कोई चरखे से बेहतरी की उम्मीद बाँधता है और कोई कौंसिलों में कसरत राय की मार्फत सब बीमारियों के इलाज की उम्मीद रखता है। इंसान बेचारा करें तो क्या करें? ना जाने का उपाय है ना रहने का ठिकाना वाली बात है । बाज लोग यह कहते हैं कि वक्त आ गया है कि गैब से कोई गैर मामूली काबिलियत का पुरुष अवतार धारण करें और दुनिया से मौजूदा गंदगी दूर करके इंसान के गुजारे की सूरत निकालें। सच पूछो तो यह सब फसाद दुनिया से तभी दूर होंगे जब मुख्तलिफ मुल्कों के लोगों के नुक्तए निगाह में मुनासिब तब्दीली होकर उन्हें दुनिया के चंद रोजा व बेहैसियत भोगों के बजाय सच्चे मालिक का चरणरस प्यारा लगने लगेगा वह रस अथाह व अपार है। उसके तलबगारों को 'एक अनार सौ बीमार" के मसले की मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता।
🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻*
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- कल का शेष:-
अब मालूम करना चाहिए कि सुरत और शब्द उस जौहर का नाम है जिसके सबब से तमाम शरीर में चैतन्यता ताकत फैली हुई है। सिर्फ आवाज का नाम है। कोई अनजान लोग कहते हैं कि शब्द आकाश का गुण है । यह लोग शब्द को सिर्फ आवाज समझते हैं । यह उनकी बड़ी भूल है क्योंकि वह जौहर है जिसको संतों ने शब्द करके पुकारा है आकाश की जान और उसका चैतन्य करने वाला है । उस जोहर यानी शब्द का कोई खास रूप नहीं है और ना उसमें रंग और रेखा है । वह अवर्णनीय अपार और अनंत है और वही कुल कर्ता है। शब्द से ही कुल रचना जाहिर हुई है और उसी के बल से ठहरी हुई है उसी की ताकत और चैतन्यता तमाम रचना में है। उसी की धारें इंद्री और देह को ताजा कर रही हैं और वह सब घट घट में मौजूद है।
जो कोई अपने अंतर में संतों के बचन के मुआफिक ध्यान और तवज्जह करें, वह उस धार की आवाज को सुनकर और उस धार से मिलकर उस का आनंद ले सकता है।।
इस देह में 10 इंद्री, चारों अंथकरण और 5 दूत यानी काम, क्रोध, लोभ,मोह, अहंकार की धारों ने बहुत भारी शोर डाल रखा है। इनकी तरफ से तबीयत जब किसी कदर हटे, तब शब्द सुनाई दे । इस तरफ से तवज्जह को हटाना और उस तरफ को लाना, इसको शौक कहते हैं।
जिस कदर यह शौक बढ़ता जाएगा , उसी कदर शब्द साफ-साफ और ऊंचे देश का सुनाई देगा और आनंद बढता जाएगा।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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