प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-सतसंग के उपदेश
-भाग दूसरा-कल का शेष:
- अगर इस नियम को दुरुस्त मान लिया जावे तो इन भाइयों के जिम्मे यह भी फर्ज हो जाता है कि अपनी जमाअत के अंदर ऐसे पुरुष तलाश करें जो उन पवित्र पुस्तकों के असली मानी से वाकिफ हूं ताकि उनकी खिदमत में हाजिर रहकर दिल्ली मुराद हासिल की जाय। इसमें शक नहीं कि दुनिया में पंडित, मौलवी, पादरी व ग्रंथि बेशुमार मौजूद हैं लेकिन मुश्किल यह है कि उन पवित्र पुस्तकों की टीका या भाष्य करने में ये लोग आपस में एकमत नहीं है। हर मजहब के अंदर सैकड़ों संप्रदाय और संप्रदाय के अंदर जुदा-जुदा मानी लगाने वाले विद्वान या पंडित मौजूदा है।
पवित्र पुस्तक एक है लेकिन उसकी व्याख्याएँ बेशुमार व जुदागाना है कोई करे तो क्या करें ? हमारी राय में इसका इलाज सिर्फ एक है और वह यह है कि शौकीन परमार्थी को चाहिए कि अपनी जमाअत के अंदर अभ्यासी ज्ञानी की तलाश करें और कोरे पंडितों यानी बाचिक ज्ञानियों को नजरअंदाज करें और बाद तहकीकात के जिस बुजुर्ग की निस्बत इत्मीनान हो जाए कि उसका सहारा महज व्याकरण व कोश पर नहीं है बल्कि उसने अंतर में गहरा गोता मारकर कुछ स्वयं अनुभव हासिल किया है उसकी शागिर्दगी इख्तियार करें। तहकीकात के दौरान में परमार्थी को चाहिए कि किसी किस्म की रु रिआयत ना करें लेकिन इत्मीनान हो जाने पर सच्चे दास या सेवकों की तरह बर्ताव करें और उस बुजुर्ग से तालीम पाकर खुद अंतरी साधन या अभ्यास शुरू करें और रफ्ता रफ्ता एक दिन खुद अभ्यासी ज्ञानी बन जाए। अभ्यासी पुरुष की तलाश के लिए सलाह इसलिए दी गई कि किसी भी किताब का भावार्थ सिर्फ ऐसे शख्स की समझ में आ सकता है जिसके अंदर योग्यता माद्दा उसके समझने का मौजूद है। ईश्वरीय ज्ञान के समझने के लिए जो काबिलियत दरकार है वह बयान की मोहताज नहीं है । जिस शख्स ने मुनासिब साधन करके अपने मन को निर्मल और निश्चल नहीं बनाया और सूरत के घाट का तजुर्बा यानी आध्यात्मिक ज्ञान हासिल नहीं किया ईश्वरीय ज्ञान समझने व समझाने के काबिल नहीं सकता राधास्वामी।
🙏🏻🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजानावाकियात-27 जुलाई 1932
-बुधवार:-
आज उम्मीद के मुताबिक बारिश हुई। आसमान खूब घिरा हुआ है उम्मीद है कि अब बारिश का सिलसिला कुछ दिन तक जारी रहेगा ।दुनिया की जिंदगी भी क्या है ? जरा बारिश ना हो तो मुश्किल। जरा बारिश ज्यादा हो जाए तो मुश्किल। मगर इंसान इसी जिंदगी पर मुग्ध है और आगे पीछे की सुध भुला बैठा है। अमेरिका के एक अखबार में रूस का हाल लिखा है। वहां लोगों ने मजहब व खुदा के खिलाफ जुलूस निकाला। इन जुलूसों का मकसद यही है कि लोग मजहब व खुदा से विमुख हो जाए। जो वक्त भजन बंदगी या नमाज में गुजरता था वह सिनेमाघरों में गुजारे। हैवानों की तरह काम करें। हैवानों की तरह मन व इंद्रियों के अंगो में बरते। सिर्फ इस कदर ख्याल रखें कि कानून की पकड़ में न आए और इस मुश्किल से बचने के लिए भी यह इलाज हो गया है कि ऐसे कानून क्रमबद्ध व प्रचलित कर दिए गए हैं कि बस अपने हाथ जगन्नाथ । अब न मरने का खौफ ना खुदा का डर, ना परलोक की फिक्र, और ना रूहानियत की परवाह। जब तक जिस्म का चरखा चले ,चले ।जब बैठ जाए बैठ जाएं । क्या यह ख्यालात दुनिया में फैलने पाएंगे । क्या-यह ख्यालात ज्यादा अर्सा तक कायम रह सकेंगे? मेरा जवाब नकारात्मक मे है। फिरऔन, हिरण्यकश्यप वगैरह अपना दौर खत्म करके चले गए मगर दुनिया मे मजहब व खुदा ही के दरवाजे पर माथा झुकाया और वहीं से शांति व सुरूर हासिल किया। अलबत्ता यह जरूर होगा कि मजहब के अंदर जो गंदगी मिल गई है और खुदा के नाम पर जो पाखंड फैल रहा है वह सब दूर होकर दूर होकर सच्चे मजहब का दौर कायम होगा।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[05/03, 06:37] +91 97830 60206:
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेमपत्र- भाग 1-【 सत्संग की रहनी का वर्णन】:
- सवाल (1 )-राधास्वामी मत के सत्संगी के रहनी क्या होनी चाहिए कि जिससे प्रीति और प्रतीति हर रोज बढ़ती रहें और अभ्यास का भी रस मिलता रहे ?
जवाब -(1)- सत्संगी को चाहिए कि जब से राधास्वामी मत का उपदेश लेवे- (१) अपना खाना आहिस्ते आहिसते चार छः महीने के अंत में अरसे में अदाजन चौथाई जो ज्यादा शौकीन अभ्यासी हैं तो तिहाई कम करें।
(२) और संसारी लोगों से मेल इस कदर रखें कि जितना उसके ब्यौहारा की कार्यवाही के लिए जरूर है और फजूल बैठक और बातचीत उनके साथ ना करें ।।
(३ और अपने रोजगार में किसी को धोखा ना दे अपने फायदे के वास्ते, और न दूसरे का हक बेवाजिब लेंवे और काम अपना दुरुस्ती और होशियारी से करें ।।
(४) और जहां तक बन पड़े ऐसी बातचीत, कि जिसमें बेमतलब और बेजरूरत किसी की निंदा या तारीफ करनी पड़े, ना करें और जहां तक बने किसी से ईर्ष्या और विरोध और क्रोध ना करें।
(५) और अपने फुर्सत के वक्त में सिवाय मामूली अभ्यास यानी सुमिरन और ध्यान के, परमार्थी विचार चितवन करता रहे या दुनिया के हाल पर नजर करके उससे अपने मन को समझौती देता रहे और कुदरत का हाल और मालिक की कारीगरी हर तरह की देख कर उसकी महिमा मन में करता रहे ('हर तरह' के कहने में कुल रचना आसमान की जमीन पर चारों खान( जमीन, पसीने, अंडे, और झिल्ली से पैदा होने वाली सृष्टि।) और जब कोई सख्त वाक्यया या वारदात कुदरती सुनने में आवे तब अपनी हालत की निरख पर करके होशियारी बढ़ावे और मालिक का शुकराना करें कि ऐसी आपदाओं से बचाए रखा है।।
(६) और नशे की चीज और मांसाहार से बिल्कुल परहेज करें ।।
(७) और मन में तरंगे बेफायदा और फिजूल दुनिया की चाह कि ना उठावे ।।
(८) और जो कोई संसारी चिंता या दुख मन में आवे तो उसका रुप ना बन जावे। जहां तक बने विचार करके उस ख्याल को हटावे और राधास्वामी दयाल की मौज का आसरा ले ।और जो वह न हटे तो मुनासिब है कि उस वक्त प्रार्थना के साथ ध्यान या भजन में बैठ जावे और उस रोज ज्यादा तवज्जो और होशियारी के साथ अभ्यास करके अपनी चिंता या दुख को राधास्वामी दयाल के चरणों में अर्ज करें, पर जवाब ना मांगे ।और बाहर जो तदबीर या जतन आज के रिवाज के मुआफिक मुनासिब होवे उसके हटाने या दूर करने के वास्ते पर फल उसका मौज के ऊपर छोड़ दें और पहले ही से अपने मन में विचार करके सीधी और उलटी मौज के साथ मुआफिकत करने को तैयार हो जाए । इससे फायदा होगा चिंता बार-बार और ज्यादा नहीं सतावेगी।
क्रमव:
🙏🏻 राधास्वामी**🙏🏻
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