प्रस्तुति - अरूण यादव
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग-2- कल का शेष:-
इसी तरह ऐसे लोग, जो दुनिया के सामान से बेपरवाह हो, ज्यादा तादाद में ना मिलेंगे। यह दौलत उन्हीं प्रेमियों को हासिल होती है जिन्हें रुहानी आनंद मिल जाता है । जैसे-जैसे मिस्री मिलने पर इंसान गुड़ को फेंक देता है ऐसे ही प्रेमी परमार्थी रूहानी सुरूर के हासिल होने पर दुनिया के भोग विलास से मुंह फेर लेता है क्योंकि रूहानी सुरूर किसी को तभी हासिल होता है जब वह अपने मन व इंद्रियों को बस में लाकर अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ने लगे । इसलिए दुनिया के सामान से बेपरवाह वे ही मनुष्य हो सकते हैं जिन्होंने एक अरसे तक मन व इंद्रियों को दमन करने और सुरत यानी तवज्जुह को अंतर में जोड़ने का साधन किया हो। अगर यह सब बयानात दुरुस्त है तो निकालना मुश्किल ना होगा कि सच्चा बेगरज होना हर किसी का काम नहीं है।।
अब रहा परोपकार की काबिलियत का सवाल। यह भी मुआमला ज्यादा आसान नहीं है । जैसे देखिए कितने लोग स्वराज्य हासिल करने की कोशिश में लगे हैं। यह मान सकते हैं कि सच्चे दिल से समझते हैं कि स्वराज्य हासिल होने से उनके मुल्क को भारी फायदा पहुंचेगा मगर दर्याफ्ततलब यह है कि उनमें कितने भाई स्वराज्य की प्राप्ति का अधिकार रखते हैं । अक्सर लोग बावजूदेकि न कोई खास तजवीजें रखते हैं और ना कोई तजुर्बा , लेकिन तो भी दूसरों को रास्ता दिखलाने के काम में मशरूफ है। अगर कोई शख्स गरीब बीमारों की दवा इलाज किया चाहता है तो अव्वल उसे दवा इलाज का इल्म खूबी हासिल करना चाहिए । इल्म हासिल किए बगैर बीमारों की दवा इलाज शुरू कर देना परोपकार नहीं है बल्कि गरीबों के प्राण लेना और अपनी मूर्खता दिखलाना है । इसलिए हमारा ख्याल नादुरुस्त नहीं है कि सच्चा परोपकार हर किसी के बस की बात नहीं है। सवाल हो सकता है कृपया भूखे प्यासे को भोजन या पानी देना परोपकार नहीं है? क्या गरीबों के लिए अस्पताल या स्कूल कॉलेज खोलना परोपकार नहीं है?
जवाब यह है कि जरूर यह सब काम परोपकार से संबंध रखते हैं मगर इन कामों का सरअंजाम देना घटिया दर्जे का परोपकार है ।घटिया दर्जे का इस मायने में कि यह काम ऐसे नहीं है कि इनके सरअंजाम देने से किसी को उच्च गति प्राप्त हो जावे या इनकी खातिर भजन ध्यान या अंतरी साधनों की कमाई तर्क या मुल्तवी कर दी जावे। हमारा मनुष्यजन्म तभी सफल होगा जब हमें सच्चे मालिक का दर्शन नसीब होगा ।यह नेमत दान, पुण्य या अस्पताल, स्कूल व कॉलेज खोलने से हासिल नहीं हो सकती। इसके हासिल करने के लिए सच्चे सतगुरु की शरण और अंतरी साधनों की कमाई जरूरी है ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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