प्रस्तुति - संत शरण / रीना शरण
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1 - कल से आगे:- यह भी जाहिर है कि सूरत यानी जीव का रास्ता आने-जाने का घट में होकर है। पैदा होने के वक्त मस्तक से सुरत की धार पिंड में उतरती है और मरते वक्त उसी तरफ को खींचती हुई नजर आती है। तो जिस धार पर सुरत उतरती है उसी धार को पकड़कर चलना चाहिए ,क्योंकि जब मरते वक्त चढ़ाव सुरत का मालूम होता है उस वक्त किस कदर तकलीफ होती है। इससे पहले से उसको हर रोज आदत चढ़ने की उस मुकाम की तरफ डालनी चाहिए और इस अभ्यास में हर रोज नया आनंद मिलता जाएगा और मरते वक्त जो कष्ट या तकलीफ गृहस्थ सतसंगियों को होती है वह अभ्यासी को नहीं होगी बल्कि अंतर में खिंचाव के साथ आनंद बढता जावेगा।। दुनिया का सब सामान और बाहरमुखी काम सुरत के बहकाने वाले और भरमाने वाले हैं । यह सुरत के निज घर में पहुंचने का रास्ता नहीं है। जो कुछ यहाँ का सामान है उसमें से कोई चीज संग नहीं जाती । इस वास्ते उसमें वाजिबी और जरूरत के मुताबिक दिल लगाना चाहिए । जो दुनिया के भोग विलास की चाह रखते हैं और जिन्होंने इसी देश को अपना वतन माना है और उसी के वास्ते मेहनत करते हैं, ऐसों के वास्ते संतमत नहीं है । वह कर्मकांड में, यानी जो परमार्थी चाल कि उनके बुजुर्गों से चली आई है, उसी में लगे रहे उसी में लगें रहें। उसी में थोड़ा बहुत फायदा उनको हासिल होगा यानी कुछ शुभ कर्म उनसे बन जाएंगे और उसका फल थोड़ा सुख मिल जाएगा। पर यह जीव चौरासी के चक्कर और जन्म मरण से बच नहीं सकते। जिनको दुनिया और कुदरत का कारखाना देखकर जन्म मरण और देह के दुख सुख से बचने और मालिक से मिलने का शौक पैदा हुआ है, उनके वास्ते राधास्वामी यानी संतमत है उनको चाहिए कि जिस कदर बन सके बिरह और प्रेम अंग लेकर सुरत और मन को शब्द में, जो घट घट में भरपूर है,लगावें। और शब्द का भेद और जुगत चलने की भेदी से मालूम होगी । कोई दिन के अभ्यास से अंतर में खुद मालूम होता जाएगा कि किस कदर अभ्यास में तरक्की हुई और परचे भी मिलते जाएंगे और दिन दिन प्रेम बढता जाएगा। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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