प्रस्तुति - ममता - दीपा - सुनीता - रीना
[16/03, 23:32] Mamta Vodafone: परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के बचन
भाग-2
(67)
31 अक्टूबर, 1961 को शाम के सतसंग में हुज़ूर साहबजी महाराज के बचनों में से दो बचन (1) 4 सितम्बर, 1920 बचन नम्बर 167 और (2) 13 सितम्बर, 1920 बचन नम्बर 175 पढ़े गये। पहले बचन में ज़िक्र है कि मुसीबत का ज़माना अब शुरू होने वाला है। इसका पूरा असर 30 या 35 साल में ज़रूर होगा।
दूसरे बचन में ज़िक्र है कि रगड़ और मुसीबत एक बार सतसंगियों पर भी आवेंगी लेकिन मालिक सतसंगियों की मदद करेगा इसलिए उनका बाल बाँका नहीं होगा।
ऐसे समय सतसंगियों को तीन बातों पर अमल करने से भारी मदद मिलेगी।
(1) यथाशक्ति सुमिरन, ध्यान, भजन करना।
(2) आपस में गहरा इत्तिफ़ाक़ और मुहब्बत रखना और मुसीबत में एक दूसरे की मदद करना।
(3) उस वक़्त पर अगर संत सतगुरु उनके पास मौजूद हों तो उनकी, वरना Majority of Satsangis (सतसंगियों की अक्सरियत) की राय पर अमल करना और अपनी ज़ाती राय को अमल में न लाना।
इसके बाद हुज़ूर मेहताजी महाराज ने फ़रमाया- इन बचनों में दो बातें क़ाबिले ग़ौर हैं।
(1) साहबजी महाराज ने प्रथम यह फ़रमाया कि हर एक सतसंगी व ग़ैर सतसंगी के मुँह से यह शब्द ख़ुद ब ख़ुद निकलेंगे कि अगर एक घंटा और हुज़ूर राधास्वामी दयाल हमारी ख़बर नहीं लेंगे, तो हमारा ख़ात्मा हो जावेगा।
इससे आप अनुमान कर सकते हैं कि हुज़ूर राधास्वामी दयाल के ऊपर कैसी ज़िम्मेदारी का काम आ जाता है।
(2) देश में भारी संकट आने पर सभी लोग क्या सतसंगी और क्या ग़ैर सतसंगी इस क़दर घबरा जावेंगे कि हर एक के मुख से यही प्रार्थना निकलेगी कि हे मालिक! हमें बचाओ वरना कुछ ही समय में हमारा ख़ात्मा हो जायगा।
इनके अर्थ यह हैं कि मालिक उस समय देश के सतसंगी और ग़ैर सतसंगी सभी की तरफ़ आकृष्ट होगा और उनकी रक्षा व सँभाल करेगा और मदद करेगा।
लेकिन ताज्जुब यह है कि जब बचन में यह पढ़ा गया कि हुज़ूर राधास्वामी दयाल सब लोगों की रक्षा करेंगे तो आप सब लोगों ने राधास्वामी के नारे से इस बचन का स्वागत किया लेकिन जब सतसंगियों की रक्षा होने के संबंध में आपके लाज़िमी फ़रायज़ का ज़िक्र आया तो आप सब लोग शान्त रहे और किसी के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला। इसके मानी यह हैं कि आप लोग ख़ुद अपने कर्त्तव्यों को पूरा नहीं करना चाहते और अपनी रक्षा का सारा भार राधास्वामी दयाल पर डालना चाहते हैं। आप लोगों का यह तरीक़े अमल ग़लत है। सबसे ज़रूरी बात यह है कि हर शख़्स अपनी ज़िम्मेवारी और कर्त्तव्य को तनदेही से पूरा करे। दूसरे यह कि सब मिल कर अपना सारा प्रबंध करें। तीसरे यह कि सब लोग एक दूसरे को बख़ुशी मदद देने को तैयार रहें। ऐसा करने से आप हुज़ूर राधास्वामी दयाल के काम को हल्का कर सकेंगे और फिर आप लोग उनकी रक्षा व सँभाल से लाभ उठा सकेंगे और वह रक्षा व सँभाल के प्रोग्राम को सहूलियत के साथ अमल में ला सकेंगे।
[16/03, 23:32] Mamta Vodafone: जिन लोगों को दया से राधास्वामी दयाल या उनके बच्चों की सेवा करने का किसी तरह से भी अवसर मिला है उनको चाहिए कि वे दिल भर कर सेवा कर लें बल्कि अच्छा तो यह है कि अंत समय तक सेवा करते-करते अपनी जान दे दें क्योंकि सेवा करने का अवसर बार-बार नहीं मिलता, बड़े भाग्य ही से मिलता है।
(बचन भाग 1, बचन 95 का अंश)
[16/03, 23:42] Mamta Vodafone: स्मारिका
परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज
मितव्यय परामर्शदाता के रूप में
46. अब जबकि पंच वर्षीय औद्योगिक योजना पूरी हो गई तो परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज ने इच्छा प्रकट की कि उन्हें यथासम्भव शीघ्र ही डायरेक्टर के पद भार से मुक्त किया जाए इस वास्ते सभा अपनी 20 दिसम्बर सन् 1942 ई. की मीटिंग में इस बात से सहमत हो गई और साहबजी महाराज के बड़े भाई श्री द्वारिकाबासी जी को इस पर नियुक्त किया गया जो सन् 1952 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त इस पद पर बने रहे। सभा ने हुज़ूर मेहताजी साहब से प्रार्थना की कि आर्थिक विषयों में वह पथ-प्रदर्शन देना जारी रखें और उनके स्वीकार करने पर इकोनौमिक एडवाइज़र (मितव्यय परामर्शदाता) का एक नया पद सृजित किया गया और तब से हुज़ूर मेहताजी साहब सभा के Economic Advisor (मितव्यय परामर्शदाता) की हैसियत से काम करते रहे।
खेतों में काम
47. चूँकि द्वितीय विश्व युद्ध 1939 ई. से चल रहा था, सन् 1942 ई. तक इसका प्रभाव जनसाधारण पर पड़ने लगा था। इसके अतिरिक्त महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा ”भारत छोड़ो” आन्दोलन जारी हो गया था। आन्दोलन के परिणामस्वरूप यातायात और संचार व्यवस्था कई जगह बाधित हो गई जिससे काम में रुकावट पड़ गई। इस वास्ते सन् 1942 ई. के उत्तरार्द्ध में आम आदमी की कठिनाइयाँ बढ़ गईं। उपभोक्ता वस्तुएँ कम हो गईं, उनकी क़ीमत बहुत बढ़ गईं और काला बाज़ार विकसित हो गया। ख़ासतौर से आयात की कठिनाई और भारत वर्ष में अमेरिकनों और दूसरे सिपाहियों के भारी संख्या में, जिनके लिए राशन जुटाने पड़ते थे, रहने के कारण खाने की वस्तुओं की क़ीमतें अत्यधिक हो गईं। हुज़ूर मेहताजी महाराज ने दयालबाग़ में ”अधिक अन्न उपजाओ” अभियान जारी फ़रमाया और गवर्नमेन्ट ने भी सर्व साधारण को परामर्श दिया कि ”अन्न अधिक उपजाओ” अभियान में संलग्न हों।
48. सभा के पास लगभग 3357 एकड़ भूमि थी। सन् 1937 ई. से पहले विभाग द्वारा बहुत थोड़ी खेती की जाती थी। निकट के गाँव वासियों को, जिस किसी ने ज़मीन माँगी, दे दी जाती थी। इसके फलस्वरूप कृषि योग्य सभी भूमि लगान पर काश्तकारों को चली गई थी। ऐसी भूमि लगभग 1611 एकड़ थी। इस तरह से सन्1943 ई. में जब मेहताजी साहब ने ”अधिक अन्न उपजाओ” अभियान शुरू किया तो सभा के पास उपलब्ध ज़मीन झाड़-झंखाड़, रेतीले टीले, कंटीली झाड़ियों और सरकण्डों से भरी थी और बिल्कुल ही खेती के योग्य नहीं थी। अतः पहला काम तो इसको साफ़ कर कृषि योग्य बनाना था।
49. इस तरह से सन् 1943 ई. में बड़ा प्रोग्राम खेतों में काम करने का शुरू हुआ जो अब तक बिना किसी व्यवधान के चल रहा है। प्रतिदिन प्रातः काल-और कभी कभी तो सायं काल भी सतसंगी, वृद्ध और नवयुवक, चाहे वह दयालबाग़ के निवासी हों या सतसंग हेतु आये हुए आगन्तुक हों-कड़कती धूप में और बारिश में, खेतों में काम करने के लिये जाते हैं। भले ही कुछ सतसंगी न जायें लेकिन मेहताजी साहब सदैव ही खेतों में काम करने वालों को प्रेरित करने, उन्हें निर्देशित करने और उनके उत्साहवर्द्धन के लिए जाते रहे हैं।
(क्रमशः)
[16/03, 23:42] Mamta Vodafone: स्मारिका
परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज
खेतों में काम
(पिछले दिन का शेष)
50. खेतों में काम करने की तुलना उन भक्तजनों की दशा से की जा सकती है जिसका उल्लेख सतसंग की पोथियों में किया गया है। भक्तों के बारे में कहा जाता है कि वह बसंत ऋतु में पीले वस्त्र में होते हैं; उस समय पीले फूल भी खिले हुए रहते हैं चारों ओर पीला रंग फैला हुआ दिखता है। इसी तरह से खेतों में काम करने वाले भी खेत की पीली मिट्टी से रंग जाते हैं। कहा जाता है कि होली के दिनों में भक्त धूल उड़ा कर काल और कर्म की हँसी उड़ाते हैं जो खेत में काम करते हैं वह सच ही प्रतिदिन खेतों में धूल उड़ाते हैं। दया और मेहर की वर्षा में भक्त सराबोर हो जाते हैं, माया डूब जाती है। वर्षा ऋतु में खेतों में काम करने वाले सराबोर हो जाते हैं और सावन के महीने में भक्त धान के खेतों में घुटने तक पानी में काम करते हैं। भक्त के लिए कहा गया है कि वह झूले पर कभी ऊपर कभी नीचे झूलता है,
सुरतिया झूल रही आज धरन गगन के बीच।
अर्थात सुरत पृथ्वी और आकाश के बीच ऊपर जाती और नीचे आती है इसी तरह से खेतों में काम करने वाले भी पाटे के साथ ऊपर नीचे जाते हैं। बहुधा खेतों में जब तरह तरह के काम चलते रहते हैं तो भक्तजन शब्दों का सामूहिक पाठ करने लगते हैं।
51. इस कार्य से मालिक की जो असीम अनुकम्पा प्राप्त होती है उसका पूरा वर्णन नहीं किया जा सकता। कभी कभी मेहताजी साहब एक ऊँचे टीले पर बैठ कर चारों ओर हो रहे काम पर अपनी दया दृष्टि डालते हैं और यदि इस दृश्य को कोई देखे तो सहज ही सारबचन की यह पक्तियाँ
घाट पर बैठे दीखें मोहि।
याद आ जाती हैं। बहुत से वृद्ध सतसंगी जो चलने फिरने में कठिनाई महसूस करते थे, खेतों पर काम करके उनमें एक नई शक्ति आ गई और अब वह आसानी से चल सकते हैं और फावड़ा इत्यादि से लगातार काम कर सकते हैं। खेतों में काम करने का यह दुर्लभ अवसर जो हर्षोल्लास से परिपूर्ण परम सुखदायी हो और कार्यकर्ताओं को असंख्य वरदान दे उसे वर्तमान युग का एक अलौकिक चमत्कार ही कहा जा सकता है। यह तो वही भाग्यशाली और बुद्धिमान व्यक्ति अनुभव कर सकता है जिसने ऐसा अवसर कभी न चूका हो।
52. इस प्रकार खेतों का काम, जो सन् 1943 ई. में आरम्भ हुआ प्रतिदिन जारी रहा और अब भी जारी है और भूमि समतल करने के काम के अतिरिक्त सतसंगी भाई खेतों के हर प्रकार के काम जैसे नाली खोदना, हल चलाना, बीज बोना, पानी देना, निराई करना, फ़सल काटना, थ्रैशर से दाना निकालना, गठ्ठर ले जाना आदि आदि में भाग लेते हैं। कुछ वर्षों के बाद यानि सन् 1955-56 ई. से कॉलोनी की महिलाओं ने भी खेतों में हल्का काम जैसे निराई आदि शुरू किया परन्तु बाद में उन्होंने खेती के प्रत्येक काम में जिनमें फावड़े से खुदाई करना और समतल करना भी शामिल है, भाग लेना शुरू कर दिया।
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