प्रस्तुति- आत्म स्वरूप / सुनीता स्वरु
(5) हालाँकि हम लोगों में से कुछ लोग यह जानते हैं कि हमारा अपने प्रति क्या कर्त्तव्य है और सतसंग तथा राधास्वामी दयाल के प्रति हमारा क्या फ़ज़र् है, फिर भी अधिकांश लोगों को यह बात नहीं मालूम है और हमारे अधिकतर भाइयों के दिलों में उन कर्त्तव्यों के पालन करने का साहस नहीं है और ऐसे भी लोग हैं जो उन कर्त्तव्यों को ईमानदारी से पालन करने के इच्छुक भी नहीं हैं।
(6) तिस पर भी हमारे लिये यह आवश्यक है कि हम ख़ुद अपने को यह बात स्मरण करावें कि यदि हम सतसंग की प्रगति तथा उन्नति में नहीं शामिल होते हैं तथा पुरानी दक़ियानूसी रूढ़ियों व प्रथाओं में अटके रहते हैं तो अंत में हमको मालूम होगा कि हमने उस महानतम अवसर को खो दिया है जो हुज़ूर राधास्वामी दयाल ने दया करके हमको प्रदान किया था और हम अनुभव करेंगे कि हमने मूर्खतावश, राधास्वामी दयाल के उस संदेश को जो उन दयाल ने सौ वर्ष पहले बसंत के पवित्र दिन अति दया कर संसार में प्रदान किया था, प्रसारण करने में उस सीमा तक बाधा पहुँचाई।
राधास्वामी
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