**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-
कल का शेष- (चौथे)- 【चरणामृत लेना】- यह कार्रवाई भी उसी मुहाफिक समझना चाहिए जैसा कि प्रसादी के निस्बत बयान हो चुका है और यह भी कि संत और साध और गुरु के चरणों में भाव और भक्ति और दीनता का निशान है। अब मालूम होवे कि संत और साध और महात्माओं की सब देह और खासकर उनके अंगूठे और उंगलियों से हर वक्त निर्मल चैतन्य की धार अमी रूप जारी रहती है और इसी तरह सब जीवो के देह और उंगलियों से भी धार जारी रहती है , पर संत और साध की धार बहुत ऊंचे देश से आती है और महा निर्मल और अमीर रूप और रोशन चैतन्य हैं और आम जीवो के नाम उनके मलीन और कसीफ यानी स्थूल चैतन्य की धार है। इस सबब से परमार्थी लोग, वास्ते प्राप्ति मेहर और दया और होने सफाई अंतर के, पुराने वक्तों से गुरु और साध के चरणों को दूध या जल से धोकर उस जल या दूध को चरणामृत समझकर पान करते आए हैं। और अब भी सब जगह सब मतो में थोड़ी या बहुत यह चाल किसी न किसी सूरत तौर से जारी है।।
यहां इस बात का ध्यान करना जरूरी है कि पानी फौरन चैतन्य की धार को जज्ब कर लेता है यानी अपने में समा लेता है। इस सबब से जल का इस्तेमाल कसरत से वास्ते इस काम के मंदिरों में और संत और साध और गुरु की संगत में जारी है। हर एक तार घर में जहां तार की खबरें आती जाती है, एक सिरा तार का हमेशा कुएं में या पानी में डूबा रहता है , इस मतलब से बिजली चमके उसकी धार उस तार के वसीले से पानी में समा जावे और जो ऐसा न किया जावे तो वह बिजली की धार तारघर को या उस आदमी को जो तार का काम करता है जला देंवे। कहीं-कहीं तार का सिरा बजाय पानी के जमीन में गाड़ दिया जाता है और उससे भी यही मतलब होता है, क्योंकि जमीन भी बिजली की धार को अपने में समा लेती है । ऐसे ही अक्सर लोग दूर ले जाने के वास्ते चरणामृत को मिट्टी में मिला लेते हैं और उसको थोड़ा थोड़ा करके अरसे तक काम में लाते हैं।
🙏🏻 राधास्वामी*🙏🏻*
No comments:
Post a Comment