**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1- कल का शेष-
( 8 )
जो इस तरह अपनी हालत की परख करने से मालूम पड़े कि संसार और संसारियों की तरफ से तबीयत किसी कदर दिन दिन हटती जाती है और अंतर अभ्यास में और सत्संग और पानी के पाठ में ज्यादा लगती जाती है और इधर का रस ज्यादा आनंद देता है और संसार के भोग दिन दिन किसी कदर फीके लगते मालूम होते हैं, तो यही सबूत इस बात का है कि अंतर का रस भारी और पायदार है और बाहर का भोगों का रस हल्का और फीका और नाशवान् है । फिर मुनासिब है कि जिस कदर बने इसी अभ्यास को आहिसता आहिसता बढ़ाता जावे और संसार की मोहब्बत आहिस्ता आहिस्ता कम करता जावे, तो रफ्ता रफ्ता एक दिन काम दुरुस्त बन जावेगा और इसी अभ्यास से 1 दिन सच्ची मुक्ति और परम आनंद प्राप्त हो जावेग ।।
(9) मालूम होवे कि ऊपर जो कुछ लिखा है यह सच्चे अभ्यासी का हाल है, यानी जिसके दिल में निर्मल चाह सच्चे मालिक के मिलने और अपने जीव का कल्याण करने की है और कोई दूसरी इच्छा शक्ति सिद्धि शक्ति की या मान बड़ाई हासिल करने की नहीं है । और संसार के भोगों की फजूल चाह जिसने सचौटी के साथ दूर करी है यह काम करता जाता है, उसी की हालत अभ्यास करके आहिस्ता आहिस्ता सहायता बदलती जावेगी और बुरे कामों से नफरत और नेक कामों से रग्बत होती जाएगी और उसको अभ्यास की हालत में यह भी मालूम हो जाएगा कि इसी जुगत की कमाई से तन मन और इंद्रियों से न्यारा होना मुमकिन है। और फिर वही जीव संतो के वचन की परीक्षा अपने अंतर में बखूबी करता जाने का और दिन दिन राधास्वामी दयाल की दया से प्रीति और प्रतीति उनके चरणों में बढ़ाकर 1 दिन अपना काम पूरा बना लेवेगा।और जो कोई अपने मन में और इंद्रियों में आसक्त है और संसार के पदार्थों की कदर जोर की है और संसार के और उसको दूर या कम नहीं कर सकते, उनकी हालत जल्द नहीं बदलेगी । पर जो सत्संग और अभ्यास करते रहेंगे तो अव्वल उनके अंतर में सफाई और फिर आए आहिस्ता आहिस्ता चढ़ाई होती जाएगी और फिर हालत भी बदलती जावेगी।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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