**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग-1-
कल से आगे:-
जो सुरत इस तरफ से जानेमन और इंद्री अध्ययन और लोगों की तरफ से चित्त को हटाकर अंतर में अपने निज रुप की तरफ, जो सुषुप्ति अवस्था या ने गहरी नींद की हालत के परे है, और फिर उस निज रुप के भंडार की तरफ , जो की माया की हद के पार है और वही सच्चे मालिक और सर्व रचना के पिता का धाम है, शौक के साथ तवज्जो करें तो उसको अपने निज रूप का आनंद और सुख हासिल होने लगे दुनिया और देह के दुख सुख से निवृत्ति यानी अलहदगी , जिसको मुक्ति कहते हैं फौरन हासिल होती हुई मालूम होने लगे ।।
(४) सुरति यानी रुह और उसका भंडार सर्व आनंद और सुख और चैतन्य शक्ति का खजाना है और उसी की धारों से जब वह इंद्रियों के स्थान पर आकर ठहरती है, हर एक इंद्री के भोग का रस मालूम होता है ।और जो वह धार ना आवे, तो कुछ मजा या रस या स्वाद मालूम नहीं हो सकता है ।। यह बात हालत स्वपन के बिचारने से अच्छी तरह साबित हो सकती है ,क्योंकि उस हालत में रुह यानी सुरत सब इंद्रियों की कार्रवाई उसी तौर पर ,जैसे कि जागृत अवस्था में करती है, बदस्तूर करती है और उसी तरह का आनंद और स्वाद हर एक इंद्री की कार्रवाई में मालूम होता है, जैसा की हालत जाग्रत में इससे साफ जाहिर होता है कि यह सब रस और सुख और आनंद रूह यानी सुरत की धार में है और बाहर के पदार्थ सिर्फ एक जरिया उस धार को इंद्री के मुकाम पर अंदर से खींचकर लाने के हैं , यानी आदमी के अंतर में सब रस और स्वाद और आनंद हर तरह का और ताकत उसके भोगने की मौजूद है ।।
विचारविन् आदमी इन सब ऊपर की लिखी हुई बातों को यानी दुनिया के हाल और अपनी हालतो को गौर के साथ नजर करने से आप समझ सकता है और उनसे यह नतीजा निकाल सकता है कि जो कोई पूर्ण सुख के भंडार में पहुंचना चाहे, उसको मुनासिब है कि अपने अंतर में भेद लेकर तवज्जो करें और चलने की जुगत दरियाफ्त करके आँख के मुकाम से ,जहां की इस सुरत की खास बैठक जागृत की हालत में है, चलना शुरू करें तो एक दिन अपने निज रुप का दर्शन कर सकता है और वहां से निज भंडार में, जहाँ से सब रुहें यानी सुरते आई है, पहुँचकर परम आनंद को प्राप्त हो सकता है ।.
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी।।।।।।।।।
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