Wednesday, May 13, 2020

रोजानावाकियात प्रेमपत्र और सत्संग के उपदेश?







**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

सत्संग के उपदेश -भाग 2 -(48 )-

【संतमत में शरीक होने के लिए अंतर में तब्दीली की जरूरत है।】:- संतमत यह बतलाता है कि रचना में तफरीक का इजहार चेतन शक्ति के दर्जो की तफरीक की वजह से हुआ। दूसरे लफ्जों में सृष्टि के अंदर जो तरह-तरह की सूरते व चीजें देखने में आती हैं वे दरअसल चेतन शक्ति का मुख्तलिफ दर्जों में इजहार है । इससे मालूम होता है कि जीवधारियों, वनस्पतियों व धातु ,पत्थर आदि की रचना के अंदर खास फर्क चेतनशक्ति के इजहार ही का है यानी हैवानों में आला दर्जे का, वनस्पतियों में दर्मियाना दर्जै का, और धातु पत्थर आदि में अदना दर्जे का इजहार हो रहा है। इसी वजह से इन सब के स्वभाव व गुणों में भेज नजर आता है और यही वजह है कि हरचंद हैवानों व वनस्पतियों के अंदर एक ही चेतन जौहर यानी सुरत मौजूद है लेकिन दोनों की आदतो, सूरत, शक्ल व  रहनी में प्रकट फर्क है। अगर यह ख्याल दुरुस्त है तो यह नतीजा निकालना गलत ना होगा कि मुख्तलिफ इंसानों की आदतों और व स्वभावो में जो फर्क देखने में आता है। उसका वाइस भी वही चेतनशक्ति का मुख्तलिफ दर्जे का इजहार है। सुरत यानु रूह मन व  शरीर के गिलाफों के अंदर लिपटी हुई अपने निज स्वभावों का इजहार करती है और मन व शरीर के गिलाफ एक तरफ तो सुरत के स्वभावों के इजहार का जरिया या पर्दा बनते हैं और दूसरी तरफ उसके स्वभावों के इजहार में रुकावट डालते हैं। जैसे अगर कोई रोशन लैंप कंबल से ढाँक दिया जाता है तो एक तरफ से कम्बल की रोशनी के इजहार का जरिया बनता है यानी लैम्प की रोशनी कम्बल के सूराखों की मारफत बाहर कमरे में फैलती है(अगल कंबल की बनावट इस किस्म की हो कि  उसमें कोई सूराख ना रहे तो कंबल के बाहर रोशनी का इजहार  कतई नहीं हो सकता) दूसरी तरफ कंबल लैंप की रोशनी के इजहार में रुकावट डालता है क्योंकि रोशनी कंबल के सूराखों से सिर्फ छनकर बाहर निकलती है और पूरे तौर पर अपना इजहार नहीं करने पाती।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी*🙏🏻*


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -रोजाना वाक्यात- 26 सितंबर 1932- सोमवार:-

आज डॉक्टर जॉनसन के खत का जवाब लिखवा दिया गया।  जरा लंबा हो गया है। अगर वर्णित ने दयालबाग पैम्फलेट पढ लिया होता तो उनको न खत लिखने की साहस होती ना जरूरत । मगर अब जवाब पढ़कर उन्हें मालूम हो जाएगा कि दयालबाग के लोग अपना नफा नुकसान बखूबी समझते हैं।।                                         

महर्षि शिवब्रत लाल साहब ने मेरे खत का जवाब भेज दिया है। वह माह दिसंबर के जलसे में शरीक न हो सकेंगे। अव्वल तो उनकी प्रतिज्ञा हायल होती है दोयम् खुद उनके यहां उन दिनों में भंडारा होता है । जवाब प्रेम भरे अल्फाज में लिखा है।।           
 24 सितंबर के अखबार स्टेट्समैंन में एक मजबूत प्रकाशित हुआ है जिसमें लिखा है कि बूचड़खानों में परीक्षण करके मालूम हुआ कि 40 फ़ीसदी गायों के जिस्म में तपेदिक के कीटाणु मौजूद है । इससे शुबहा होता है कि मुल्के हिंद में तपेदिक की बिमारी गायों के दूध के जरिए फैल रही है ।

 लेखक ने पोस्टराइज दूध के इस्तेमाल पर बहुत जोर दिया है। इस कार्यवाही से तमाम घातक कीटाणु मर जाते हैं और दूध इस्तेमाल करने वालों के लिए किसी किस्म का खतरा नहीं रहता । हम लोगों ने इसलिए दयालबाग में दयालबाग डेरी की मार्फत पॉस्चराइज्ड दूध की सप्लाई का बंदोबस्त किया है।

 सत्संगियों को को चाहिए या तो पॉस्चराइसजड दूध का इस्तेमाल करें या अपने घर में गाय पालें और उन्हें तंदुरुस्त रखें, और उनका दूध पियें। बाजारु दूध पीने में बीमारी गले पड़ जाने का अंदेशा है। दूध खूब उबाल लेने से उतना लाभप्रद नही रहता लेकिन  इस अमल से बीमारी के कीटाणु मर जाते हैं।

पाश्चराइज्ड करने से दूध की ताकत भी बदस्तूर बनी रहती है और बीमारी के कीटाणु मर जाते हैं।  रात के सतसंग में बयान हुआ  कि राधास्वामी मत में बैराग व त्याग के बजाय जोर सतगुरु भक्ति पर दिया जाता है । सच्चे सद्गुरु का दिल मालिक के प्रेम से भरपूर रहता है और वह दया करके अपने भक्तों के दिलों में अपना प्रेम भर देते हैं।

सच्चे सद्गुरु की यह पहचान है कि दिल में उनका प्रेम पैदा होने से मालिक के चरणो में आपसे आप प्रेम पैदा हो जाता है। अगर किसी जगह ऐसा इंतजाम है तो इस संजोग में शरीक होने वालों का सहज में काम बन सकता है और अगर कहीं ऐसा इंतजाम नहीं है तो वहाँ रहकर जप तप और पूजा पाठ करने से महज शुभ कर्म का फल प्राप्त हो सकता है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1-

कल का शेष- (चौथे)-

【चरणामृत लेना】

- यह कार्रवाई भी उसी मुहाफिक समझना चाहिए जैसा कि प्रसादी के निस्बत बयान हो चुका है और यह भी कि संत और साध और गुरु के चरणों में भाव और भक्ति और दीनता का निशान है।

 अब मालूम होवे कि संत और साध और महात्माओं की सब देह और खासकर उनके अंगूठे और उंगलियों से हर वक्त निर्मल चैतन्य  की धार अमी रूप जारी रहती है और इसी तरह सब जीवो के देह और उंगलियों से भी धार जारी रहती है , पर संत और साध की धार बहुत ऊंचे देश से आती है और महा निर्मल और अमीर रूप और रोशन चैतन्य हैं और आम जीवो के नाम उनके मलीन और कसीफ यानी स्थूल चैतन्य की धार है।

इस सबब से परमार्थी लोग, वास्ते प्राप्ति मेहर और दया और होने सफाई अंतर के, पुराने वक्तों से गुरु और साध के चरणों को दूध या जल से धोकर उस जल या दूध को चरणामृत समझकर पान करते आए हैं। और अब भी सब जगह सब मतो में थोड़ी या बहुत यह चाल किसी न किसी सूरत तौर से जारी है।।             

    यहां इस बात का ध्यान करना जरूरी है कि पानी फौरन चैतन्य की धार को जज्ब कर लेता है यानी अपने में समा लेता है। इस सबब से जल का इस्तेमाल कसरत से वास्ते इस काम के मंदिरों में और संत और साध और गुरु की संगत में जारी है।

हर एक तार घर में जहां तार की खबरें आती जाती है, एक सिरा तार का हमेशा कुएं में या पानी में डूबा रहता है , इस मतलब से बिजली चमके उसकी धार उस तार के वसीले से पानी में समा जावे और जो ऐसा न किया जावे तो वह बिजली की धार तारघर को या उस आदमी को जो तार का काम करता है जला देंवे।

कहीं-कहीं तार का सिरा बजाय पानी के जमीन में गाड़ दिया जाता है और उससे भी यही मतलब होता है, क्योंकि जमीन भी बिजली की धार को अपने में समा लेती है । ऐसे ही अक्सर लोग दूर ले जाने के वास्ते चरणामृत को मिट्टी में मिला लेते हैं और उसको थोड़ा थोड़ा करके अरसे तक काम में लाते हैं।

🙏🏻 राधास्वामी*🙏🏻*

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