संस्थापक दिवस (31.1.2005)
परम पूज्य हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब का अभिभाषण
मेरी भी कुछ भूमिका एक तुच्छ सेवक के रूप में इस यूनिवर्सिटी में रही है। उसका ख्याल मुझे इसलिये आता है कि मैं समझता हूँ कि मेरा जन्म इस संसार में परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के वरदान के फलस्वरूप हुआ और परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज ने एक बार मेरे मामाजी प्रेम बिहारी लाल जी से जिनके साथ मैं खेत पर काम कर रहा था, फ़रमाया कि क्या 'प्रिंस ऑफ वेल्स' (Prince of Wales) को परशाद दे दूँ।
कुछ बात नहीं समझ में आई,पर इशारा मेरी ही तरफ़ था। और परशाद मुझे मिला। 1961 में जब मैं पढ़ लिख करके, 'एम. एस. डिग्री'(M.S. Degree) हासिल करके, 'टी.सी.एम. स्कॉलरशिप' (TCM Scholarship) के अन्तर्गत 'मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी'(Michigon State University) से वापस आया और हुज़ूर के सम्मुख प्रस्तुत हुआ तो उन्होंने मेरे सारे A 'ग्रेड' (Grade) देखकर के बहुत प्रसन्नता ज़ाहिर की और कहा कि मैं चाहता हूँ कि ऐसे ही नौजवान इस हमारे 'इंजीनियरिंग कॉलेज' (Engineering College) में आ जाएँ। फिर दो एक सेकण्ड (second) बाद बोले कि अभी नहीं तुम ख़ूब पैसा कमा लो फिर आ जाना। तो आया तो मैं, पर 1993 में बूढ़ा हो करके।
पर ख़ैर, जो उनके बचन थे, वो पूरे होने थे। तो मैं तो एक तुच्छ सेवक हूँ, मात्र तुच्छ सेवक। अब राधास्वामी दयाल की मौज हो मारपीट करके मुझे हकीम बना लें। तुच्छ सेवक से मुख्य सेवक बना लें। मैं तो उनके हाथ का एक खिलौना हूँ।
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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राधास्वामी।।।।।।।।
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