**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -सत्संग के उपदेश -भाग 2 -(48 )-【संतमत में शरीक होने के लिए अंतर में तब्दीली की जरूरत है।】:- संतमत यह बतलाता है कि रचना में तफरीक का इजहार चेतन शक्ति के दर्जो की तफरीक की वजह से हुआ। दूसरे लफ्जों में सृष्टि के अंदर जो तरह-तरह की सूरते व चीजें देखने में आती हैं वे दरअसल चेतन शक्ति का मुख्तलिफ दर्जों में इजहार है । इससे मालूम होता है कि जीवधारियों, वनस्पतियों व धातु ,पत्थर आदि की रचना के अंदर खास फर्क चेतनशक्ति के इजहार ही का है यानी हैवानों में आला दर्जे का, वनस्पतियों में दर्मियाना दर्जै का, और धातु पत्थर आदि में अदना दर्जे का इजहार हो रहा है। इसी वजह से इन सब के स्वभाव व गुणों में भेज नजर आता है और यही वजह है कि हरचंद हैवानों व वनस्पतियों के अंदर एक ही चेतन जौहर यानी सुरत मौजूद है लेकिन दोनों की आदतो, सूरत, शक्ल व रहनी में प्रकट फर्क है। अगर यह ख्याल दुरुस्त है तो यह नतीजा निकालना गलत ना होगा कि मुख्तलिफ इंसानों की आदतों और व स्वभावो में जो फर्क देखने में आता है। उसका वाइस भी वही चेतनशक्ति का मुख्तलिफ दर्जे का इजहार है। सुरत यानु रूह मन व शरीर के गिलाफों के अंदर लिपटी हुई अपने निज स्वभावों का इजहार करती है और मन व शरीर के गिलाफ एक तरफ तो सुरत के स्वभावों के इजहार का जरिया या पर्दा बनते हैं और दूसरी तरफ उसके स्वभावों के इजहार में रुकावट डालते हैं। जैसे अगर कोई रोशन लैंप कंबल से ढाँक दिया जाता है तो एक तरफ से कम्बल की रोशनी के इजहार का जरिया बनता है यानी लैम्प की रोशनी कम्बल के सूराखों की मारफत बाहर कमरे में फैलती है(अगल कंबल की बनावट इस किस्म की हो कि उसमें कोई सूराख ना रहे तो कंबल के बाहर रोशनी का इजहार कतई नहीं हो सकता) दूसरी तरफ कंबल लैंप की रोशनी के इजहार में रुकावट डालता है क्योंकि रोशनी कंबल के सूराखों से सिर्फ छनकर बाहर निकलती है और पूरे तौर पर अपना इजहार नहीं करने पाती। क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी*🙏🏻*
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