**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-सत्संग के उपदेश- भाग 2
-कल से आगे:-
वाजह हो कि जिस मुसीबत में तमाम मुल्के हिंदुस्तान गिरफ्तार है उससे सत्संगमंडली बरी नहीं है और सत्संगी भाइयों को भी अपनी जरूरतें पूरा करना मुश्किल हो रहा हैं ।
सत्संगी भाइयों की यह हालत देख कर हमारे लिए दो सूरतें हैं। अव्वल यह हैं कि हम आवाम की तरफ से मुंह फेर लें और हरक्षकिसी को अपनी अपनी भुगतने दें। दोयम् यह कि कोई ऐसी तदबीर निकाले कि जिस पर चलने से सत्संग मंडली की फी कह आमदनी में इजाफा हो।
पुरानी आदतें, सुस्ती व खुदगर्जी तो यही सलाह देती है कि तुम्हें औरों की क्या पड़ी है, हर कोई अपने अपने कर्मों का फल भोग रहा है, भोगने दो या यह है कि जब राधास्वामी दयाल की मौज होगी , आपसे आप ठीक हो जाएगा, हम क्यों दुनियाँ का बोझ अपने सिर ले ।
लेकिन विरादराना मोहब्बत व हमदर्दी कहती है कि हम अपने आराम व नफे को किसी कदर छोड़कर जरूर ऐसी कोई तदबीर अमल में लानी चाहिए जिससे दुखिया भाइयों को नाहक कि फिक्रों से छुटकारा मिले ।
चूँकि स्वभाव से इन दो मश्वरों में से हमें आखिरी मशवरा ही पसंद आता है इसलिए हम मजबूरन खुदगर्जी व सुस्ती के ख्यालात को दिल से दूर करके दो चार ऐसी बातें पेश करते हैं जिन पर अमल करने से कुछ अर्से के अंदर सतसंगमंडली की कायापलट हो सकती है।
लेकिन पेश्तर इसके कि हमें कोई अमली तजवीजें पेश करें यह बयान कर देना जरूर समझते हैं कि हमें बखूबी मालूम है कि ज्यादा दौलत इंसान के लिए वैसे ही नुकसानदेह है जैसे कि मुफलिसी व गरीबी ।
इसलिए हमारी यह ख्वाहिश या कोशिश कभी न होगी कि सत्संगी भाई अमीर व कबीर बन जायँ। हमारी ख्वाहिश सिर्फ इस कदर है कि किसी तरह मौजूदा तंगी की सूरत दूर होकर सत्संगी भाइयों के लिए औसत दर्जे के गुजारे का इंतजाम हो जाये।
ये ख्यालात न लोभ व लालच की वजह से पैदा होते हैं और न दौलत फराहम करने व कराने के मंसूबों से ताल्लुक रखते हैं ।हमारी आरजू यह है कि हर सत्संगी भाई की माली हालत ऐसी हो जैसे कि कबीर साहब की नीचे लिखी हुई साखी में दर्ज की गई है:-
"साहब एती मांगू जामे कुटुम्ब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं साध न भूखा जाय।।"
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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