**परम गुरु हुजूर महाराज
- प्रेम पत्र -भाग -1-(23)-
【 परमार्थ में गुरु की जरूरत और उनकी किस्म और दर्जे और भेद】:-
(1 1) कोई काम दुनियाँ का ऐसा नहीं है कि जो बिना उस्ताद के सिखाएं हुए कोई आदमी (औरत या मर्द ) कर सके, यहां तक कि बच्चे को खड़ा होना और चलना और खाना और पीना वगैरह सिखाये नहीं आता है। और लिखना और पढ़ना और हर पेशे का काम तो जरूर मास्टर या उस्ताद से सीखना पड़ता है । इसी तरह सच्चे परमार्थ यानी सच्ची मुक्ति के हासिल करने के लिए अभ्यास के सिखाने वाले की, जिसको गुरु कहते हैं ,निहायत जरूरत है।
(2) पंडित या पुरोहित या पाधे (जो परमार्थी शास्त्र या पोथियाँ पढाते हैं या कर्म कराते हैं या बाहरी पूजा और होम और यज्ञ कराते हैं, इनको गुरु नहीं कहा जा सकता है । जो कोई आप पढ़ना जानता है यानी थोड़ा बहुत विद्यावान है वह कर्मकांड और जाहिरी पूजा की किताबें आप पढ़ सकता है और उनकी कार्यवाही करा सकता है , पर ऐसा दस्तूर रक्याखा गया है कि चाहे कोई पढ़ना जाने या नहीं वह सब पंडित या पाधे या पुरोहित से कर्मकांड की कार्रवाई में मदद लेते हैं और उसी वक्त उनका हक मेहनत यानी जो उनका दस्तूर हर एक पूजा और रस्म और त्यौहार वगैरह का मुकर्रर है , उनको अदा कर देते हैं ।।
(3 ) आम परमार्थी गुरु की दो ही किस्में है - एक वंशावली गुरु- और दूसरा निष्ठावान यानी अभ्यासी गुरु।
क्रमश:.
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
।।।।।।।।
No comments:
Post a Comment