**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सत्संग के उपदेश -भाग 2-
कल का शेष
- रफ्ता रफ्ता इसकी शोहरत हो जाती है और सैकड़ों हाजतमंद रोजाना उस बुजुर्ग के दरवाजे पर हाजिर होते हैं । क्योंकि उस बुजुर्ग को सचमुच कुदरत के किसी आला कानून का इस्तेमाल आता है और वह बखूबी हर एक तलब शगार को अपनी युक्ति यानी अपना अमल बदला देता है और हर अमल करने वाले को इच्छानुसार कामयाबी हासिल हो जाती है इसलिए जल्द ही उस बुजुर्ग की तालीम एक नए मजहब की शक्ल इख्तियार कर लेती है और सच्चे भक्तों व सेवकों की एक बकायदा जमात कायम होकर जोर-शोर से आम बक्शीश का सिलसिला जारी हो जाता है ।
सच्ची परमार्थी तालीम का अव्वल असर, भक्तजनों पर पड़ता है , यह है कि उनके दिल से दुनिया के सुखों व भोग विलास की बड़ाई उठ जाती है और दुनियावी तकलीफात के लिए बहुत कुछ लापरवाही जाहिर करने लगते हैं और जिस बुजुर्ग की बरकत से उन्हें दुनिया के दुखों व सुखों की जंजीरे तोड डालने की ताकत हासिल हुई है उसके कदमों में गहरी मोहब्बत व गरजमंदी पैदा हो जाती है।
गहरी मोहब्बत के इजहार में श्रद्धालु तोहफे व नजराने पेश करते है। क्योंकि वे बुजुर्ग , जो इस रुहानी फेज का सिलसिला कायम फरमाते हैं , अपने मन पर सवार रहते हैं और उनका दिल दुनियावी ख्वाहिशात से पाक व साफ रहता है इसलिए तलबगारों की भीड या दौलत व इज्जत की कसरत उनका व उनके निकटवर्तियों का कुछ हर्ज व नुकसान नहीं कर सकते ।
लेकिन क्योंकि कोई भी इंसान हमेशा जिंदा नहीं रह सकता इसलिए वक्त मुनासिब पर दुनिया से कूच कर जाते हैं। उनके बाद अगर लायक व काबिल जानशीन मौजूद नहीं है तो सब का सब कारखाना थोड़े ही अर्से में उलट जाता है और वे सब बातें, जिनसे दुनिया तंग आ रही है और जिनसे मजहब का नाम बदनाम हो रहा है जहूर में आती है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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