प्रस्तुति - अरूण, अलख, विमला यादव
[ दाता जी की लीलाएं
एक पहेली सबके सम्मुख आज मैं आई लेके।
बूझो बूझो सब मिल बूझो अपनी अक्ल लगा के।
दाता जी की दया मेहर को क्या कोई समझ है पाया।
सेनीटाइज़र का प्रयोग था क्यों महीनों पूर्व अपनाया।
हेलमेट का प्रयोग किया क्यों हम सबके लिए ज़रूरी।
चकरायी हम सबकी बुद्धि थी अक्ल हमारी अधूरी।।
अमृत पेय क्यों पिला रहे दाता जी हमको खेतों में।
अपने बच्चों की चिंता है उनको हर पल हर क्षण में।
बूझो बूझो सब मिल बूझो पर कुछ सूझ न पाओगे।
दाता जी की लीलाओं के आगे बौने ही रह जाओगे।
समरथ ने फैला कर दामन अपनी गोद बिठाया है।
बाल भी बांका कर न सके गा काल को यह समझाया है।
स्वामी प्यारी कौड़ा
*ना ऊँच नीच में रहूँ, ना जात पात में रहूँ।*
*तू मेरे दिल में रहे सतगुरुजी ,*
*और मैं अपनी औकात में रहूँ ।*
*तेरी हर रज़ा दिल से कबूल हो मुझे,*
*शुक्राना करता रहूँ तेरा , जिस भी हाल में रहूँ ,*
*हमेशा शुकर करता रहूँ...*🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[04/04, 16:40] Agra Ruarun: सत्संग ठंडक है जो..
मेरे तपते मन को शांत करता है..
सत्संग मिठास है..
जो मेरे ज़हरीले कड़वे मुख को मीठा बनाता है..
सत्संग सबर सिदक है..
जो मेरे लालच को बढ़ने नहीं देता..
सत्संग सच है
लाख दु:खों की एक दवा वो है सत्संग..
शुकराना मेरे मालिक..
🙏🏻🙏🏻
जब चिंता कोई सताये :: सुमिरन करों..
जब व्याकुल मन घबराये :: सुमिरन करों..
कोई राह नज़र न आये :: सुमिरन करों..
अगर बात समझ में न आये :: सुमिरन करों..
सुमिरन करों..
🙏🏻🙏🏻
राधास्वामी। राधास्वामी
राधास्वामी। राधास्वामी राधास्वामी। राधास्वामी।
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