Monday, May 11, 2020

मिश्रित बचन प्रसंग उपदेश और डायरी






**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजाना वाक्यात-

 23 सितंबर 1932- शुक्रवार:-

 महात्मा गांधी ने संकल्प के अनुसार अपना व्रत जारी कर दिया है ।आपकी हाल ही में एक तहरीर प्रकाशित हुई है जिसमें उस व्रत की गरज वाजेह हो जाती है। आपने यह व्रत किसी को डराने धमकाने की गरज से धारण नहीं किया। न इसकी तह में कोई पॉलिटिकल गरज है। यह व्रत आपने अपने अंतर में मालिक की प्रेरणा महसूस करके अख्तियार किया है। ऐसी सूरत में किसी के लिए मुंह खोलने की इजाजत नहीं है। यह बातें बहस व दलील से ऊपर है। मालिक की डोरी हर जानदार के हृदय में लगी है। वह जिस ह्रदय में जो चाहे बात उतार सकता है।  बहरहाल महात्मा जी के व्रत धारण करने से पॉलिटिकल दायरे में तेज गतिविधि नजर आने लगी है। और हर कोई इस कोशिश में है कि अछूत भाई जल्द से जल्द बराबर के अधिकार दिये जाकर हिंदू कौम में शामिल रखें जाए। अगर यह हो गया तो निसंदेह मुल्के हिंद पर मालिक की खास दया प्रकट होगी। मालिक को जात पाँत का भेदभाव पसंद नहीं है। सभी जीव उसके बच्चे हैं और उसकी रहमत के एक से हकदार है । लेकिन जब हिंदू भाई आम तोड़ नाम धरे की अछूतों के हाथ का पानी पीने और खाना खाने लगे तो सवाल पैदा होगा कि मुसलमानों से भी क्यों परहेज किया जावे?  मेरी राय है कि जब यह भी सवाल हल हो गया तब इस मुल्क के बाशिंदो के अंदर कौमियत का सच्चा भाव पैदा होगा। शुक्र है कि राधास्वामी दयाल ने हमारे लिए यह सब मामले पहले से तय कर रखे हैं।।                    आज दोपहर से बारिश शुरू हुई और रात तक होती रही। इसलिए न शाम के वक्त लॉन पर बैठ सके न सतसंग में रात को कोई बातचीत हो सकी।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजू महाराज- प्रेम पत्र-
 भाग-1-

 कल से आगे;

- गरज इससे साफ यह मालूम होती है कि जहां अदब या प्यार या मोहब्बत दिलों में है वहां जरूर छूने एक दूसरे की देह के मन को चैन नहीं आता है और इस छूने से एक की चैतन्य धार दूसरे की चैतन्य धार से मिल जाती है, क्योंकि असल में सब मनुष्यों का स्वरूप चेतन धार है जो रगो के रास्ते के तमाम बदन और अंग अंग में फैली हुई है। और प्यार और मोहब्बत और अदब का जोश और उसी धार में है। तो वह धार जब तक कि दूसरे की धार से किसी कदर न मिले अपने प्यार या मोहब्बत या अदब का फायदा यानी रस और आनंद नहीं हासिल कर सकती है । इस वास्ते सब देशों में और सब कौमों में कोई ना कोई चाल इस किस्म की जारी है जिससे यह मतलब हासिल होवे।  फिर संत सतगुरु या साधगुरु के चरणों के स्पर्श से, कि जिनकी देह से निहायत ऊंचे दर्जे की चैतन्य की धार हर वक्त जारी है, किस कदर फायदा, अलावा उनकी दया खास के, यानी रस और आनंद हासिल होना मुमकिन है ।इस वास्ते हर एक शख्स को चाहिए कि जब कहीं ऐसे महात्मा मिले जरूर अपना परमार्थी और संसारी भाग बढ़ाने के बाद से उनके चरणों में माथा टेके उनके चरणों को भाव और प्रेम के साथ सिर झुका कर छुए।

 क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

सतसंग के उपदेश-भाग-दूसरा-

कल से आगे:- एतराज करने वालों का सबसे बडा हमला किसी मजहब के बाज मोअज्जिज अनुयायियों की बदएतदालियों व अनुचित काररवाईयो पर होता है यानी वे कहते है कि जबकि फुलाँ मजहब के फुलाँ फुलाँ प्रतिष्ठित अनुयायी फुलाँ फुलाँ अनुचित काम करते हैं तो मामूली दर्जे के इंसानों से क्या उम्मीद की जा सकती है और जबकि फुलाँ बादशाह या बुजुर्ग ने, जो फुलाँ मजहब के परले दर्जे के पक्षपाती व प्रेमी थे मजहब के नाम पर फुलाँ फुलाँ जलील व घृणित बातें रबा रक्खी तो क्यों ना यह नतीजा निकाला जाए कि मजहबी तालीम के गहरे असर ही ने उनको ऐसा स्याहदिल व कठोर बनाया । एक एतराज करने वाला जोर के साथ कहता है। ऐ मजहब! कौन सा  ऐसा पाप कर्म है जो तेरे नाम पर नहीं किया गया?  दूसरा हठ के साथ कहता है कि मजहब के मोहब्बत ही ने हिंदुस्तानियों को दीवाना बना रक्खा है। अगर मुल्के  हिंदुस्तान से आज मजहब खारिज कर दिया जाए तो हिंदू मुसलमानों के झगड़े, सिक्खो व उदासियों की लड़ाइयां, आर्यों व सनातन धर्मियों के तनाजे सब के  सब गायब हो जाए और हिंदुस्तानी एक दूसरे को भाई समझने लगे और आपस में बजाय लडने के मिलकर तरक्कघ के मैदान में कदम रक्खे, वगैरह-वगैरह ।।        यह दुरुस्त है कि एतराज एक हद तक बजा है लेकिन साथ ही यह भी दुरुस्त है कि यह सब कार्यवाहियाँ जिनकी बुनियाद पर मजहब के खिलाफ लबकुशाई की जाती है, किसी भी महापुरुष की मजहबी तालीम या शिक्षा का नतीजा नहीं है बल्कि उनके लिए जिम्मेवार उन लोगों की मूर्खता, खुदगर्जी या मनमुखता है जो इस किस्म की कार्रवाई करते हैं । मतलब प्रकट करने के लिए व नीज इस बयान के सबूत मे नीचे बहस की जाती है।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी

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