**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाक्यात
-30 सितंबर 1932 -शुक्रवार:-
सुबह सैर के लिए जाते वक्त रास्ते में सेठ सुदर्शन सिंह साहब से मुलाकात हुई । अरसा 8 माह से बीमार है । जिस्म में खून की बहुत कमी मालूम होती थी। इस उम्र में 8 माह की बीमारी बर्दाश्त करना बड़ी बहादुरी का काम है। कहने लगे यद्यपि 8 माह से बीमार हूं लेकिन परमार्थी दया खूब हो रही है। वाकई बहुदा ऐसा होता है की प्रकट रूप से तकलीफ की हालत होती है और अंतर में गहरी दया रहती है। इसके बाद उन्होंने अपने मौजूदा आस्था का जिक्र किया। बहरहाल अर्सा लंबी अवधि के बाद मुलाकात होने पर बड़ी खुशी हुई। मालिक उनको जल्द स्वस्थय बख्शें! स्वेत नगर में 50 'E' टाइप के नए मकानात बनाने मंजूर किए गए। इरादा तो पूरे सौ मकानात तामीर करने का था लेकिन सरेदस्त तादाद ही मंजूर की जा सकी। यह मकानात मध्य दिसंबर से पहले तैयार हो जाने चाहिए। ताकि उन दिनों में बाहर से आने वाले भाइयों बहनों को आराम मिले । इन मकानों के अलावा 40 मकानात बस्ती जगनपुर में निर्माणाधीन है जिनमें 20 तो लगभग तैयार ही हैं। अपनी तरफ से महकमा तामीरात पूरा जोर लगा रहा है । आगे मालिक की मर्जी ।। रात के सत्संग में बयान हुआ यूँ तो सत्संगी अपनी तरफ से पूरा जोर लगाता है दुनिया के काम ईमानदारी से करता है, खाने पीने के मुतअल्लिक़ भी पूरी एहतियात रखता है , तन ,मन धन से सेवा भी करता है , सुबह शाम अभ्यास में भी लगाता है और वक्त निकालकर सतसंग में भी शरीक होता है ।और इन सब कार्रवाइयों के इनाम में मालिक की दया का लुत्फ भी हासिल करता है लेकिन तो भी उसकी पूरी तसल्ली नहीं होती। जिससे मालूम होता है कि अभी उसके अंदर कोई कसर है । वाकई उसके अंदर कसर है। अभी तक आम सतसंगीयो की यह हालत है कि वह राधास्वामी दयाल को, सत्संग को और दयालबाग को तो अपना समझते हैं । लेकिन अपने तई राधास्वामी दयाल का, सतसंग का और दयालबाग का नहीं समझते । हालते मौजूदा में अपने मुतअल्लिक़ ख्वाहिशात पैदा होती हैं जिनके पूरा ना होने से कभी चित उदास होता है कभी परेशान ।दूसरी हालत हो जाने पर यानी यह समझ आ जाने पर कि हम मालिक व सतसंग के लिए जीते हैं, अपने लिए कोई ख्वाहिश पैदा ना होगी। यही सच्ची शरण है ।यही अनन्य भक्ति है ।यही "अपनाया" जाना है । जब आमतौर सतसंगीयो की ऐसी हालत हो जाएगी उस वक्त हमारे लिए तरक्की के मैदान में बेखौफ कदम बढ़ाने का मौका होगा। अबू बिन अधम का नाम इसी किस्म के भक्तों की फेहरिस्त सबसे अव्वल दर्ज था । हमें भी उस फेहरिस्त में नाम दर्ज कराने के लिए कोशिश करनी चाहिए।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
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-सत्संग के उपदेश- भाग 2
- कल से आगे:-
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इसके सिवा गौर करना चाहिए कि दुनिया में मजहबी फिक्रे क्योंकर कायम होते हैं ।जब कभी कुल मालिक की दया होती है तो निर्माणचित्त सुरतें संसार में ऋषि , साध,संत व महात्मा रूप में प्रकट होती है और दुखिया व प्रमार्थ के शौकीन जीवो को सदुपदेश सुनाकर तसल्ली देती है और रास्ता व युक्ति संसारसागर से पार होकर ऊँचे सुखस्थानों व निर्मल चेतन देश में पहुंचने की बतलाती है। दुनिया उनके वचन सुनकर हंसी व दिल्लगी करते हैं लेकिन कुछ संस्कारी जीव उनके उपदेश से प्रभावित होकर उनके चरणों में लग जाते हैं । ये संस्कारी जीव आज्ञा अनुसार उनके साधन करते हैं और थोड़े ही दिनों के अंदर अपने अंतर में लाकलाम सुबूत उपदेश की सच्चाई की निस्बत पाकर गहरी उमंग व उत्साह के साथ उनकी सेवाओं में लीन होते हैं और अपने अजीजो व रिश्तेदारों व दोस्तों से, जिस बुजुर्ग की बदौलत उन्हें यह गैरमामूली बात हासिल हुए हैं, उनकी महिमा व तारीफ करते हैं जिससे उनके गिर्द रफ्ता रफ्ता श्रद्धालुओं का एक बड़ा हल्का कायम हो जाता है और एक-एक करके सैकड़ों, हजारों जीव उस गुरु के चरणों में लग जाते हैं और एक फिर्का खड़ा हो जाता है । यह फिर्का क्या है? यह फिर्कख दरअसल एक ऐसी जमाअत है जिसका मरकज केंद्र एक ऐसी पाक हस्ती है । जो दुनियावी ख्वाहिशात व गंदगियों से पाक है, जिसकी रूहानी कुव्वते जगी है और जिसका अंतर में ब्रह्म ,पारब्रह्म , सत्य पुरुष या कुल मालिक से मेल है और जिसके मेंबर ऐसी मुबारिक हस्तियां है जो दुनिया से मुंह मोड़ कर अपनी रूहानी शक्तियों के जगाने व सच्चे मालिक के दर्शन प्राप्त करने के दरपै है और जिन्होंने साधन की युक्तियों की किसी कदर कमाई करके लाककलाम अंतरी सबूत उस उपदेश की सच्चाई के निस्बत हासिल कर लिए हैं जो उनके जमाअत की केंद्रित व्यक्ति ने बयान फरमाए और जिसका जिक्र सभी मजहबों के बुजुर्गों ने अपनी पवित्र पुस्तकों में दर्ज फरमाया है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग्-1- कल से आगे
- (6)
इस वास्ते मुनासिब और जरूरी मालूम होता है कि हर एक आदमी, चाहे मर्द हो या औरत , इस दुनिया के नाशवान और आखिर में तकलीफ देने वाले सुखों का भरोसा न करके उनकी चाहा सिर्फ जरूरत के मुआफिक उठावे और सच्चे और पूर्ण और हमेशा कायम रहने वाले सुख और आनंद के लिए हासिल करने के वास्ते और देह के संगी दुख सुख और जन्म मरण की तकलीफ से बचने के लिए जिस कदर आराम और आसानी के साथ कोशिश बन पड़े हर रोज करे। और इस काम के करने के वाह्ते मुआफिक उपदेश राधास्वामी मत के यह जरूरी नहीं है कि कोई आदमी अपने घर बार और कुटुम परिवार और उद्यम और रोजगार को छोड़ दें। सिर्फ इतना जरूरी है कि फिजूल चाहें संसार के भोग विलास नाम और नामवरी की छोड़कर प्रेम और उमँग के साथ थोड़ा बहुत अभ्यास उस आसान जुक्ति का , जो राधास्वामी दयाल ने अब जारी फरमाई है जिसमें किसी किस्म का खौफ और खतरा नहीं है , हर रोज एक घंटा या 2 घंटे या ज्यादा, दो दफे या तीन दफे करे, तो उसका फायदा अभ्यासी को थोड़े दिनों में अपने अंतर में दिखलाई देगा और फिर उसका शौक सच्चे मालिक की दया से अंतर में पर्चे पाकर दिन दिन बढ़ता जावेगा। और इस तरकीब से 1 दिन निज धाम में पहुंचकर सच्चे मालिक राधास्वामी का दर्शन मिल जाएगा।। (7) और जो कोई सच्चे मालिक का खोज अपने घट में नहीं करेगा और सुरत शब्द योग की जुगत को, वास्ते हासिल होने दर्शन सच्चे मालिक के और पहुंचने धुर धाम के, दरियाफ्त करके उसकी कमाई नहीं करेगा और सिर्फ मजहबी किताबों के पढ़ने और बाहर की पूजा और परमार्थी रस्मों में अटका रहेगा, जिनका सिलसिला रूह की धार के साथ अंतर में नहीं लगा हुआ है, तो उसको सच्ची मुक्ति कभी नहीं हासिल होगी और न जन्म मरण के चक्कर और माया की हद से बाहर जावेगा। इसी शौक में या और ऊंचे नीचे लोकों में जन्म पाकर सुख दुख भोगता रहेगा और यह उत्तम नर देही , जिसमें सच्चे परमार्थ की कमाई हो सकती है, मुफ्त बर्बाद जावेगी और आखिर वक्त पर अफसोस और पछतावा कुछ फायदा ना देवेगा। इस वास्ते हर एक आदमी को, जो अपने नफे और नुकसान की तमीज कर सकता है , मुनासिब है कि जहां दुनिया के सब काम करता है , और रोजगार के लिए मेहनत सख्त उठाता है अपने जीव के कल्याण के लिए भी कुछ थोड़ी बहुत कार्रवाई 2 घंटे 3 घंटे हर रोज बिला नागा किया करें । इसमें उसका और उसके परिवार का फायदा इस दुनिया में और बाद मरने के परलोक में होगा वह बहुत ही तकलीफ और दुखों से राधास्वामी दयाल की कृपा से सहज में बचाव हो जाएगा।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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