परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1
-कल से आगे -
और वह चार काम यह हैं -(पहले गुरु और साध के चरणों पर मत्था टेकना या चरण छूना, दूसरे हार और फूल चढ़ाना, तीसरे परशादी लेना, चौथे चरणामृत लेना।) अब हर एक का बयान जुदा-जुदा किया जाता है।।
( पहले गुरु और साध के चरणों पर मत्था टेकना या चरण छूना)
:- इस कार्रवाई से मतलब यह है कि गुरु और साध की दया हासिल होवे और चरणों को स्पर्श करके यानी छूकर वह शीतल रुहानी धार, जो हर वक्त उनके चरणों से निकलती रहती है, प्रेमी प्रमार्थी की रूह यानी सुरत और देह में असर करें । अब मालूम होवे कि हर शख्स की कुल देह से और खासकर हाथ और पैर से हर वक्त चैतन्य धार रोशनी रुप निकलती रहती है। जो संसारघ और दुनियादार लोग हैं और खास करके वे जो नशे की चीज खाते पीते रहते हैं और मांसाहार भी करते हैं उनकी धार उनकी रहनी और खान-पान के मुआफिक बहुत नीचे के दर्जे की अथवा बनिस्बत संत और साध की धार के, जिनकी सुरत ऊंचे के देश की बासी है , बहुत मैली और कम रोशन होती है। और संत और साध की धार निहायत निर्मल और चैतन्य और रोशन होती है । यह धार वक्त छूने उनके चरण के हाथ या माथे से फौरन सोने वाले के बदन में समा जाती है और उसकी रूह यानी सुरत में ऊपर के देश की तरफ झुकाव और संत चरण में प्रीति पैदा करती है। हर मुल्क और हर कौम के लोगों में जहां जहां आपस में प्रीति या रिश्तेदारी है यह दस्तूर जारी है कि चाहे मर्द होवे हो या औरते, जब आपस में मिलते हैं तो किसी ना किसी तरह से एक दूसरे के बदन को छूते हैं ,जैसे किसी कौम में छाती से छाती लगाकर मुलाकात करते हैं या हाथया पाँव छूते हैं और किसी कौम में सिर्फ हाथ मिलाते हैं और ज्यादा प्यार और मोहब्बत या रूप की जगह मुहँ या हाथ चूमते हैं।
। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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