Wednesday, May 13, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग उपदेश-भाग प्रेमपत्र और रोजानावाकियात




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
 रोजाना वाक्यात- 25 सितंबर 1932-


 रविवार:-

दयालबाग में नहर लाने की योजना चीफ इंजीनियर साहब महकमा में नहरों ने नामंजूर कर दी है । वजह लिखी है कि दरिया में पानी ना काफी रहता है। नहर बनाने से आगरा म्युनिसिपैलिटी को आब में अतिरिक्त पहुँचाने तकलीफ होने लगेगी।  प्रकट रूप से चीफ इंजीनियर साहब का एतराज निहायत कमजोर है। लेकिन तत्काल नहर का मामला ढीला पड़ गया । सेठ सुदर्शन सिंह साहब बहादुर ने एक मोर के परो का चंवर और दो अदद केवड़े के फूल प्रेषित किए हैं ।कृपया के लिए तहे दिल से शुक्रिया । एक अर्सख से बीमार है। मालिक आपको जल्द स्वस्थय बख्शे।।        दिसंबर माह की भीड़भाड़ के कयाम के लिए जगह का इंतजाम मुश्किल हो रहा है। तंबू वाले ₹4000 मांगते हैं। मेरी राय है कि एक मर्तबा ₹100000  लगा कर 200 कमरे तैयार करा दिए जावें।  ताकि स्त्रियों और बच्चों को दिसंबर की सर्दी से  नुकसान न पहुंचा। मर्द खेमों के अंदर रह सकते हैं। कल सुबह का व आखिरी फैसले के लिये मुकर्रर है।।                   रात के सतसंग में बयान हुआ कि राधास्वामी मत   सन्यास मार्ग नहीं है भक्ति मार्ग है। भक्ति मार्ग में सिर्फ भगवंत और उसके चरणों में प्रेम की महिमा होती है । इस मार्ग पर चलने वाले को वैराग्य, त्याग आदि प्राप्त हो जाते हैं। जब किसी को तवज्जुह अंतर्मुख कोहो गई या किसी को अंतरी दर्शन प्राप्त हो गये तो उसके लिए संसार के सब के सब रस आप से आप फीके हो जाते हैं। इसी को सहज वैराग्य कहते हैं।

🙏🏻 राधास्वामी*🙏🏻*



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

सत्संग के उपदेश -भाग 2

- कल का शेष

- रफ्ता रफ्ता इसकी शोहरत हो जाती है और सैकड़ों हाजतमंद रोजाना उस बुजुर्ग के दरवाजे पर हाजिर होते हैं । क्योंकि उस बुजुर्ग को सचमुच कुदरत के किसी आला कानून का इस्तेमाल आता है और वह बखूबी हर एक तलब शगार को अपनी युक्ति यानी अपना अमल बदला देता है और हर अमल करने वाले को इच्छानुसार कामयाबी हासिल हो जाती है इसलिए जल्द ही उस बुजुर्ग की तालीम एक नए मजहब की शक्ल इख्तियार कर लेती है और सच्चे भक्तों व सेवकों की एक बकायदा जमात कायम होकर जोर-शोर से आम बक्शीश का सिलसिला जारी हो जाता है । सच्ची परमार्थी तालीम का अव्वल असर, भक्तजनों पर पड़ता है , यह है कि उनके दिल से दुनिया के सुखों व भोग विलास की बड़ाई उठ जाती है और दुनियावी तकलीफात के लिए बहुत कुछ लापरवाही जाहिर करने लगते हैं और जिस बुजुर्ग की बरकत से उन्हें दुनिया के दुखों व सुखों की जंजीरे तोड डालने की ताकत हासिल हुई है उसके कदमों में गहरी मोहब्बत व गरजमंदी पैदा हो जाती है। गहरी मोहब्बत के इजहार में श्रद्धालु तोहफे व नजराने पेश करते है। क्योंकि वे बुजुर्ग , जो इस रुहानी फेज का सिलसिला कायम फरमाते हैं , अपने मन पर सवार रहते हैं और उनका दिल दुनियावी  ख्वाहिशात से पाक व साफ रहता है इसलिए तलबगारों की भीड या दौलत व  इज्जत की कसरत उनका व उनके निकटवर्तियों का कुछ हर्ज व नुकसान नहीं कर सकते । लेकिन क्योंकि कोई भी इंसान हमेशा जिंदा नहीं रह सकता इसलिए वक्त मुनासिब पर दुनिया से कूच कर जाते हैं। उनके बाद अगर लायक व काबिल जानशीन  मौजूद नहीं है तो सब का सब कारखाना थोड़े ही अर्से में उलट जाता है और वे सब बातें, जिनसे दुनिया तंग आ रही है और जिनसे मजहब का नाम बदनाम हो रहा है जहूर में आती है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे -

【तीसरे-( परशादी लेना)】:- यह कार्यवाही दो तरह से होती है । एक तो यह कि जब संत सतगुरु या साध या कोई महात्मा भोजन पावें और जो कुछ उनका उच्छिष्ट यानी खाने से बाकी रहे, उसको उनके सेवक या शिष्य प्रसाद समझकर आपस में बांट करके खावें, या जो प्रसाद वगैरह उनके भोग लगाने के पहले तक्सीम हुए उसको हर एक शख्स उनसे प्रसादी करा लेवें यानी वे उस चीज पर अपना लब लगा देंवें, तब वह पवित्र और सेवकों के पाने लायक समझा जावे। जाहिर है कि हर एक मनुष्य और जानवर के लव में असर है । कितनी ही छोटी बीमारियों को सिर्फ बीमार के अपने लव के लगाने से आराम हो जाता है और कुत्ते अपनी चोट और जख्म को अपनी जुबान से चाट कर दुरुस्त कर लेते हैं ।और कोई कोई आदमियों के फोड़े या जख्म दूसरे आदमी के लब लगाने और उनका मवाद चूस कर निकाल देने से अच्छे हो जाते हैं । असल यह है कि हर एक जानदार की जबान पर चैतन्य की धार,  जोकि अमी रुप है , जारी रहती है और उसी में यह असर फोड़े और जख्म और दूसरी बीमारी के अच्छे करने का है और उसी धार के सबब से रस और आनंद खाने-पीने का आदमी को आता है । तो  जबकि आम आदमीयों और जानवर की जबान और उसके थूक में इस कदर असर है, तो फिर संत और और दूसरे महात्माओं के थूक की क्या तारीफ की जावे और उसका असर किस असर वाला होगा , क्योंकि उनकी धार बहुत ऊंचे देश से और निहायत निर्मल अमी रूप आती है और वह सिर्फ देह को नहीं बल्कि रुह यानी सुरत और मन को पवित्र करने वाली और ताजगी बख्शने वाली है । जबकि कोई खाने की चीज उनके मुख से लगे तो वह निहारत पवित्र और निर्मल चैतन्य की धार से असर लेकर ने निहायत रसीलघ हो गई । तो बड़े भाग हैं उन लोगों के कि जिनको ऐसी खास पवित्र प्रसादी मिले। इसके पाने से सच्चे और प्रेमी प्रमार्थी कि प्रीति और प्रतीति सच्चे मालिक और गुरु के चरणों में दिन दिन बढ़ती जाएगी और अंतर  में सफाई हासिल होती जाएगी। और मालूम होवे  कि जहां कहीं आपस में मनुष्यों की संसारी मोहब्बत गहरी है वहां जरूर वे अक्सर एक साथ खाते पीते हैं और बहुत खुशी से एक दूसरे की जूठन पाते हैं।  तो जब की संसारी प्रीति में इस कदर तबीयत मायल हो जाती है एक दूसरे की हुई या जूँठी चीज से परहेज नहीं रहता, तो संत और साध और महात्मा की प्रसादी, जबकि उनको गुरु धारण किया, किस कदर प्रीति और सफाई और उमंग के साथ मांग कर लेनी चाहिए। संसारी कार्यवाही में आपस में साथ खाने या एक दूसरे की जूँठन पाने से संसारी मुसब्बत मजबूत होती है और कपट दूर हो जाता है और संत या साध या महात्मा की प्रसादी लेने से मालिक के चरणो में प्रिती और प्रतीति मजबूत होकर दया और मेहर प्राप्त होती है कि जिससे दुनिया में भी रक्षा और मरने के बाद जीव का कारज दुरुस्त बनता है।

 क्रमशः


🙏🏻राधास्वामी*🙏🏻*

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
।।।।।।







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