**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे -【तीसरे-( परशादी लेना)】:- यह कार्यवाही दो तरह से होती है । एक तो यह कि जब संत सतगुरु या साध या कोई महात्मा भोजन पावें और जो कुछ उनका उच्छिष्ट यानी खाने से बाकी रहे, उसको उनके सेवक या शिष्य प्रसाद समझकर आपस में बांट करके खावें, या जो प्रसाद वगैरह उनके भोग लगाने के पहले तक्सीम हुए उसको हर एक शख्स उनसे प्रसादी करा लेवें यानी वे उस चीज पर अपना लब लगा देंवें, तब वह पवित्र और सेवकों के पाने लायक समझा जावे। जाहिर है कि हर एक मनुष्य और जानवर के लव में असर है । कितनी ही छोटी बीमारियों को सिर्फ बीमार के अपने लव के लगाने से आराम हो जाता है और कुत्ते अपनी चोट और जख्म को अपनी जुबान से चाट कर दुरुस्त कर लेते हैं ।और कोई कोई आदमियों के फोड़े या जख्म दूसरे आदमी के लब लगाने और उनका मवाद चूस कर निकाल देने से अच्छे हो जाते हैं । असल यह है कि हर एक जानदार की जबान पर चैतन्य की धार, जोकि अमी रुप है , जारी रहती है और उसी में यह असर फोड़े और जख्म और दूसरी बीमारी के अच्छे करने का है और उसी धार के सबब से रस और आनंद खाने-पीने का आदमी को आता है । तो जबकि आम आदमीयों और जानवर की जबान और उसके थूक में इस कदर असर है, तो फिर संत और और दूसरे महात्माओं के थूक की क्या तारीफ की जावे और उसका असर किस असर वाला होगा , क्योंकि उनकी धार बहुत ऊंचे देश से और निहायत निर्मल अमी रूप आती है और वह सिर्फ देह को नहीं बल्कि रुह यानी सुरत और मन को पवित्र करने वाली और ताजगी बख्शने वाली है । जबकि कोई खाने की चीज उनके मुख से लगे तो वह निहारत पवित्र और निर्मल चैतन्य की धार से असर लेकर ने निहायत रसीलघ हो गई । तो बड़े भाग हैं उन लोगों के कि जिनको ऐसी खास पवित्र प्रसादी मिले। इसके पाने से सच्चे और प्रेमी प्रमार्थी कि प्रीति और प्रतीति सच्चे मालिक और गुरु के चरणों में दिन दिन बढ़ती जाएगी और अंतर में सफाई हासिल होती जाएगी। और मालूम होवे कि जहां कहीं आपस में मनुष्यों की संसारी मोहब्बत गहरी है वहां जरूर वे अक्सर एक साथ खाते पीते हैं और बहुत खुशी से एक दूसरे की जूठन पाते हैं। तो जब की संसारी प्रीति में इस कदर तबीयत मायल हो जाती है एक दूसरे की हुई या जूँठी चीज से परहेज नहीं रहता, तो संत और साध और महात्मा की प्रसादी, जबकि उनको गुरु धारण किया, किस कदर प्रीति और सफाई और उमंग के साथ मांग कर लेनी चाहिए। संसारी कार्यवाही में आपस में साथ खाने या एक दूसरे की जूँठन पाने से संसारी मुसब्बत मजबूत होती है और कपट दूर हो जाता है और संत या साध या महात्मा की प्रसादी लेने से मालिक के चरणो में प्रिती और प्रतीति मजबूत होकर दया और मेहर प्राप्त होती है कि जिससे दुनिया में भी रक्षा और मरने के बाद जीव का कारज दुरुस्त बनता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी*🙏🏻*
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