*💐जीवन की सहजता खोने न दें*💐
एक बार एक छोटा सा *पारिवारिक* कार्यक्रम चल रहा था।उसमें बहुत लोग *उपस्थित* थे। उस कार्यक्रम में बहुत ही बढ़िया बासमती चावल का पुलाव बन रहा था, सभी का मन *पुलाव* में लगा हुआ था। खाने में देर हो रही थी,भूख भी खूब लग रही थी। आखिर खाने में *पुलाव* परोसा गया, खाना शुरू ही होने वाला था कि *रसोईयें* ने आकर कहा कि पुलाव *सम्हल* कर खाइयेगा क्योंकि शायद उसमें एक आध *कंकड़* रह गया है वह किसी के भी मुँह में आ सकता हैं। मैंने बहुत से *कंकड़* *निकाल* दिए हैं, फिर भी एक आध रह गया होगा तो *दाँत* के नीचे आ सकता हैं। यह सुनकर सभी लोग बहुत *सम्हल* कर *खाना* खाने लगे सभी को लग रहा था कि *कंकड़* उसी के मुँह में आयेगा। यह सोचकर खाने का सारा मजा *किरकिरा* हो गया। और *पुलाव* खाने की जो प्रबल *इच्छा* थी वह भी *थम* गई। सब लोग बिना कुछ बोले, बिना किसी *हंसी मजाक* के भोजन करने लगे। जब सबने *खाना* खा लिया तब उन्होंने *रसोईये* को बुलाया और पूछा कि तुमने ऐसा क्यों कहा था। जबकि कंकड़ तो *भोजन* में था ही नहीं हममें से किसी के भी *मुँह* में नहीं आया । तब *रसोईये* ने कहा कि मैंने अच्छी तरह से *चावल* बिने थे, लेकिन *चावल* में *कंकड़* भी ज्यादा थे इसलिए मुझे लगा शायद *एक* आध रह गया होगा। यह सुनकर सब एक *दूसरे* की तरफ देखने लगे। खाने के बाद किसी को कुछ भी *अच्छा* नहीं लग रहा था सब निराश हो गए थे क्योंकि सभी का ध्यान *कंकड़* में था खाने का *स्वाद* कोई भी नहीं ले पा रहा था इसलिए सब *निराश* हो गए।
यही *परिस्थिति* हमारी आज की हैं। एक *वायरस* को लेकर हम हमारी *आजादी* खो बैठे हैं। हर वस्तु, व्यक्ति, प्राणी पर *शंका* कर रहे हैं। आज तक जो लोग हमारी *आवश्यकताओं* की पूर्ति कर रहे हैं, जैसे *दूध* *वाला, फल वाला, सब्जी वाला,* *पेपर* वाला इन लोगों पर से भी हमारा *विश्वास* उठ गया है, और हम हमारे आज के *सुहाने* दिन खो बैठे हैं। और *शारीरिक* रूप से भी *थकान* महसूस कर रहे हैं। यह सब, कुछ *हद* , तक हमारी *सोच* पर भी *निर्भर* हैं। इस लिए इससे *बाहर* निकलना है
*वाइरस को नहीं अपने आप को मजबूत करिये ।* *अपने विचारों को सकारात्मक दिशा दीजिये।* ईश्वर की कृपा से सब कुछ जल्दी ही *अच्छा* हो जाएगा। आज के सुंदर *दिन* के लिए *सुंदर* शुरुआत करिये । और अपने आप को *मजबूत* कीजिये । *खाना* खाते समय खाने को पूरी *रूचि* से स्वाद लेकर खाइये।
*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है- पर्याप्त है,,।।
यही जीवन है।।
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