**राधास्वामी!!
16-05- 2020-
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आज शाम के सत्संग में पढ़े गए पाठ -
(1) चलो घर प्यारे , क्यों जग में नित्त फँसइयाँ हो।। टेक।। (प्रेमबानी भाग 3-शब्द-2, पृष्ठ संख्या 256)
(2) कंठ करी कुछ साखियाँ पढे ज्ञान के ग्रंथ। जो इतने ज्ञानी बने सुगवा (तोता) बडा महंत।। हंस और बगुला दो जने बैठ सरोवर तीर। अपने अपने भोग की करें अलग तदबीर।। ( प्रेमबिलास- शब्द 113- पृष्ठ संख्या 170)
(3) सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा- कल से आगे।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!
! 16-05 -2020-
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे -(139 )
सब मतों के धर्मपुस्तकों में सृष्टि की उत्पत्तिक्रम का हाल लिखा है । इस पर विचार करने से एक जबरदस्त नतीजा निकलता है। मसलन् उपनिषदों में जिक्र है कि ईश्वर ने इच्छा की कि मैं एक से बहुत हो जाऊं और इंजील में आया है कि खुदा ने हुक्म दिया कि रोशनी हो और रोशनी हो गई और इसी तरह दूसरी ओर चीजें पैदा होती गईं।
ऐसे ही मुसलमान भाइयों का अकीदा है कि खुदा ने " कुन" कहा और सब सृष्टि हो गई। इन बयानों से जाहिर है कि अव्वल मालिक के अंदर एक किस्म की ख्वाहिश पैदा हुई और उसके पूरा होने के सिलसिले में सृष्टि का जहूर हुआ।
जो अमल सृष्टि के आदि में जारी हुआ वह अब भी जारी है क्योंकि मनुष्य भी अव्वल अपने दिल में इच्छा उठाता है और पीछे उससे कोई कर्म बन पड़ता है। अगर आज हम अपनी सब ख्वाहिशें मुल्तवी कर दें तो हमारी आंखें देखना ,हमारे कान सुनना, और हमारी जवान बोलना बंद कर दे और जो कुछ हमने जाना व सीखा है सब का सब भूल जाय। हमारा शरीर हरकत न करें, हमारा मन खडा हो जाए, गोया संसार का सभी काम बंद हो जाय।
इससे समझ में आ सकता है कि इच्छा का किस कदर जोर है और हर अभ्यासी को मालूम है कि अभ्यास में बैठकर सुरत को अंतर में जोड़ना या चित्तवृत्ति का निरोध सांसारिक इच्छाएँ उठाने के मुकाबले बिल्कुल उल्टा अमल है।
यही वजह है कि अक्सर लोग यह शिकायत करते हैं सुनाई देते हैं कि मन बस में नहीं आता। भला मन कैसे बस में आवे? उसके अंदर तो इच्छाओं का वेग भरा है और जैसे तेज रफ्तार गाड़ी के यकायक रोकने से उसके बन्द बन्द कडकडा उठते हैं ऐसे ही अभ्यास में बैठकर मन के एकदम रोकने की कोशिश करने से मन बेहद व्याकुल हो जाता है।
इसलिए अव्वल इच्छाओं का वेग कम करना जरूरी है।
। क्रमश: सत्संग के उपदेश -
भाग तीसरा।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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