॥सुख दुःख आते जाते रहेंगे॥ प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
घुप्प अंधेरी रात में एक व्यक्ति नदी में कूदकर आत्महत्या करने का विचार कर रहा था। वर्षा के दिन थे ehtaऔर नदी पूरे उफान पर थी। आकाश में बादल घिरे थे और रह-रहकर बिजली चमक रही थी।
वह देश का बड़ा धनी व्यक्ति था लेकिन अचानक हुए घाटे से उसकी सारी संपत्ति चली गई। उसके भाग्य का सूरज डूब गया था चारों ओर निराशा ही निराशा, भविष्य नजर नहीं आ रहा था।
उसे कुछ सूझता न था कि क्या करे? उसने स्वयं को समाप्त करने का विचार कर लिया था। नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के छोर पर खड़ा होकर वह अंतिम बार ईश्वर का स्मरण करने लगा तभी दो बुजुर्ग परंतु मजबूत बांहों ने उसे रोक लिया।
बिजली की चमक में उसने देखा कि एक वृद्ध साधु उसे पकड़े हुए है!
उस वृद्ध ने उससे निराशा का कारण पूछा? किनारे लाकर उसकी सारी कथा सुनी, फिर हंसकर बोला - तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे!
सेठ बोला - हाँ मेरे भाग्य का सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था। सब ओर मान-सम्मान संपदा थी। अब जीवन में सिवाय अंधकार और निराशा के कुछ भी शेष नहीं है।
वृद्ध फिर हंसा और बोला - दिन के बाद रात्रि है और रात्रि के बाद दिन! जब दिन नहीं टिकता तो रात्रि भी कैसे टिकेगी? परिवर्तन प्रकृति का नियम है, ठीक से सुनो और समझ लो! जब तुम्हारे अच्छे दिन सदा के लिए नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। जो इस सत्य को जान लेता है वह सुख में सुखी नहीं होता और दु:ख में दुःखी नहीं होता! उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है! सुख और दुःख को जो समभाव से ले, समझ लो कि उसने स्वयं को जान लिया। सुख-दुःख तो आते-जाते रहते हैं। यही प्रकृति की गति है।
सोचो यदि किसी ने जीवन में एक जैसा ही भाव देखा, हमेशा सुख का ही, जिस वस्तु की आवश्यकता हुई उससे पहले वह मिल गई तो क्या वह कुछ उपहार पाने की खुशी का अनुभव कैसे कर सकता है?
दुःख न आए तो सुख का स्वाद क्या होता, कोई कैसे जाने? जो इस शाश्वत नियम को जान लेता है उसका जीवन बंधनों से मुक्त हो जाता है।
🙏🏻🌹श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी🌹🙏🏻
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