चलते चलते..../ श/ रतन त्रुघ्न सिन्हा ने इसलिये नहीं की फ़िल्म धुंध....रतन भूषण
फिल्मकार बी आर चोपड़ा की फ़िल्म थी धुंध। यह उनके द्वारा निर्मित और यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित थी। संक्षिप्त में कहूं तो इसकी कहानी रहस्य में लिपटी थी।
एक रात अपनी गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद, एक आदमी पास के घर में मदद के लिए जाता है, जहां वह एक मृत व्यक्ति और एक महिला को बंदूक पकड़े हुए देखता है। फिर वह व्यक्ति उस महिला की अपराध को छुपाने में मदद करता है। यह फ़िल्म 13 फ़रवरी 1973 को रिलीज हुई और अच्छी चर्चा पाई थी। इसके गीतकार थे साहिर लुधियानवी और संगीतकार रवि। फ़िल्म का शीर्षक गीत संसार की हर शय का इतना ही फसाना है, एक धुंध में आना है एक धुंध में जाना है... महेन्द्र कपूर की आवाज़ में आज भी श्रवणीय है। कहानी चार लोगों अगाथा क्रिस्टी, सी जे पवरी, अख़्तर उल इमान, अख्तर मिर्ज़ा नेे लिखी थी और कलाकार थे संजय ख़ान, ज़ीनत अमान, डैनी डेन्जोंगपा, देवेन वर्मा, अशोक कुमार, मदन पुरी, नाना पलसीकर, जगदीश राज, उर्मिला भट्ट आदि।
जाहिर है जब फ़िल्म सफल होती है, तो उसे चर्चा भी अच्छी मिलती है और साथ ही कलाकारों को भी उसका फायदा मिलता है। लेकिन इस फ़िल्म से जिस कलाकार को गज़ब की ऊंचाई मिली, वह थे डैनी। इस फ़िल्म ने उन्हें रातोंरात फर्श से अर्श पर पहुँचा दिया। ज़ीनत अमान के पति की भूमिका में उन्होंने अपने अंदाज से जान डाल दी थी। इसके बाद डैनी को पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि डैनी ने जो भूमिका निभाई, उसके लिए चोपड़ा साहब की पहली पसंद डैनी नहीं थे। इस रोल के लिए पहले उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को चुना था। वे ही इस रोल के लिए उनकी पहली पसंद थे, लेकिन उनके कई बार कहने के बावजूद बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने नहीं किया। इस बारे में बात होने पर शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं, हां, यह सच है और सच यह भी है कि मैं चोपड़ा साहब से नाराज़ था। इसलिए मैंने फ़िल्म धुंध नहीं की।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर फिल्मों में तब करियर बनाने में जुटे शत्रुघ्न सिन्हा ने बी आर चोपड़ा की फ़िल्म के लिए ना क्यों कहा? जबकि तब वह फिल्मों में छोटी छोटी भूमिका ही कर रहे थे और यह रोल काफी अच्छा और बड़ा भी था। कहानी में उसकी अहम भूमिका थी? सभी किरदार उसके ही इर्दगिर्द घूमते हैं? तो इस बारे में जानने के लिए हमें चोपड़ा कैम्प की उस फिल्म के भी बारे में जानना होगा, जो 4 अक्टूबर 1969 को रिलीज हुई थी। नाम था इत्तेफाक।
फ़िल्म इत्तेफाक के निर्माता थे बी आर चोपड़ा, लेकिन निर्देशन किया था उनके भाई यश चोपड़ा ने। इसकी कहानी भी रोमांचक और रहस्यमयी थी एक हत्या के इर्दगिर्द। कहानी के मुताबिक दिलीप को अपनी पत्नी से भी ज्यादा अपने जुनून से प्यार है और एक दिन गुस्से में, जब उसकी पत्नी उसके चित्रकारी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती है, तब वह गला दबाकर उसकी हत्या कर देता है। फिल्म में राजेश खन्ना, नन्दा, बिंदू, मदन पुरी, इफ़्तिखार आदि ने अहम भूमिका निभाई थी।सलिल चौधरी का संगीत था। यह फिल्म 1965 में आई अमेरिकी फिल्म साइनपोस्ट टू मर्डर की रीमेक थी और इस कहानी को पहले सरिता जोशी अभिनीत गुजराती नाटक धुम्मस में प्रस्तुत किया गया था। इत्तेफाक के लेखक थे जी आर कामथ (कहानी और पटकथा) और अख्तरुल ईमान (संवाद)।
इत्तेफाक की बात करें, तो यह हिंदी फिल्मों के इतिहास की चौथी फ़िल्म थी, जिसमें कोई गीत नहीं था। इससे पहले फिल्म नौजवान, मुन्ना और कानून में कोई गाना नहीं था। उल्लेखनीय यह भी है कि 1960 में बी आर फिल्म्स की कानून में भी गीत नहीं थे और उसमें भी नंदा ही नायिका थीं। कानून और इत्तेफाक दोनों ही के संगीतकार थे सलिल चौधरी। फिल्म इत्तेफाक को खासी चर्चा मिली और राजेश खन्ना के अभिनय सफर को मजबूती। उनका नाम तो था पर वे लोगों के दिलों में तब तक उतने नहीं बसे थे। इस फ़िल्म के लिए यश चोपड़ा को फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का और एम ए शेख को फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ ध्वनि अंकन का पुरस्कार मिला था।
जब फ़िल्म इत्तेफाक की शुरुआत हो रही थी, तब बी आर चोपड़ा ने दिलीप की भूमिका यानी राजेश खन्ना वाले रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा से बात की थी। हालांकि इसी रोल के लिए उनकी यूनिट के लोग राजेश खन्ना से भी संपर्क में थे, लेकिन तब राजेश खन्ना के पास कुछ फिल्में थीं इसलिए एकमुश्त तारीख देने में उन्हें दिक्कत आ रही थी। वे हर बार चोपड़ा साहब से यही कहते रहे कि अगर आप रुक रुक कर काम करें तो मैं तैयार हूं। लेकिन चोपड़ा साहब के सभी कलाकारों की तारीखें मिल चुकी थीं, तो उन्होंने यह तय किया कि शत्रुघ्न सिन्हा को ही लेकर फ़िल्म बना लिया जाये।
इस बारे में शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं, मुझे इस रोल के मिलने में कहीं कोई लेकिन नहीं था। मैं यह जानकर बेहद खुश था। मैं तब भी उन्हें यानी बी आर चोपड़ा को मानता था और आज भी मानता हूं कि वे महान फिल्मकार थे। तो उनके कहने के बाद मैं इस फ़िल्म के लिए फाइनल हो गया था। शनिवार और रविवार को हम साथ बैठे, खाना खाया, सारी चीजों को लेकर चर्चा हुई। डेट्स वगैरह भी तय हो गए कि क्या कैसे होना है। सब कुछ फाइनल, लेकिन तभी ऐसा हुआ कि राजेश खन्ना की कुछ फिल्मों की शूटिंग की तारीख अचानक आगे बढ़ गयी, तो रविवार की रात होने से पहले उन्होंने 28 दिनों की एकमुश्त डेट्स चोपड़ा साहब को दे दीं और मैं तब अर्श से फर्श पर आ गया। लेकिन मुझे इसी तरह मजबूत होना था, हुआ। आगे भी कई बार ऐसा हुआ, लेकिन कामयाबी मिली। हमने कई बड़ी फिल्में किसी वजह से छोड़ दीं, दीवार, शोले उल्लेखनीय हैं, लेकिन मेहनत और मौलिक..., वो कहते हैं न कि ओरिजिनल अंदाज़ का कोई तोड़ नहीं है। लोगों ने मुझे और फिल्मों में मेरे काम को पसंद किया, मुझे चाहा, दिल में बसाया और भरपूर प्यार दिया...।
-रतन
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