**राधास्वामी!! 01-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया ध्याय रही।
गुरु रुप हिये धर प्यार।।RS -@4DB
चित्त रहे चरनन लौलीना।
काल करम बैठे सब हार ।।-
(चरन अमी रस पियत रहूँ नित।
राधास्वामी प्रेम रहूँ सरशार।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-13-पृ.सं.118,119)
(2) आज देखो बहार बसंत (सखी)।।टेक।।
अबीर गुलाल की थाली कर ले, आये पुरुष अचिंत।
दया मेहर से परचे देकर, कीन्हा सबको आज निचिन्त।।)
-(सोइ सखियाँ हुई अति बडभागी,
जिन सिर हार धरे निज कन्त। गति मति कैसे भाख सुनाऊँ
, फूल फूल रही फूल बसंत।।)
(प्रेमबिलास-शब्द-13-पृ.सं.16,17)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-खल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-( 171)-कल का शेष:-
' पूर्वोक्त उल्लेखों में 'अंश' और 'पाद' शब्द ब्रह्म के लिए प्रयुक्त हुए हैं और इन शब्दों का अर्थ भी खंड का टुकड़ा है। क्या अब आपका ब्रह्म भी जड़ सिद्ध हो गया, क्योंकि आप के मतानुसार हिस्से, टुकड़े और बूँद उस वस्तु के होते हैं जिसमें ज़र्रे या परमाणु विद्यमान हो? नहीं, नहीं, आप भूल करते हैं।
कुलमालिक या ब्रह्म के टुकड़े नहीं हो सकते। 'बुंद', 'अंश' और 'पाद' शब्द केवल कुलमालिक और ब्रह्म तथा ब्रह्म और मनुष्य की आत्मा का संबंध और भेद बतलाने के अभिप्राय से अलंकाररूप से प्रयुक्त किये गये हैं। तिलक महाराज के गीतारहस्य (पृष्ठ २४९ हिंदी एडिशन ) में इस विषय की अच्छी तरह आलोचना करते समझाया गया है कि " 'अंश' या 'भाग' शब्द का अर्थ 'काट कर अलग किया टुकड़ा' या अनार के अनेक दानों में से एक दाना' नहीं है किंतु सात्विक दृष्टि से उसका अर्थ समझना चाहिए कि जैसे घर के भीतर का आकाश और घड़े का आकाश (मठाकाश और घटाकाश) एक ही सर्वव्यापी आकाश का अंश या भाग है" इत्यादि।
यदि इन प्रमाणों से भी संतोष न हो तो वेदांत दर्शन २/३/४३और ४/४/१९ में बादरायण आचार्य के मत का अवलोकन करें । ऋग्वेद सूक्त का उल्लेख स्वामी दयानंद जी ने अपनी ऋग्वेदआदि- भाष्य- भूमिका में कियि है। उर्दू अनुवाद के पृष्ठ १९ पर पूर्वोक्त मंत्र का अनुवाद छपा है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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