16-11-2021-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-
जागी है उमँग मेरे हिये में ।
गुरु सतगुरु आरती करूँ मैं ॥१॥
महिमा सुन सुन बढ़ा पियारा ।
गुरु चरन कँवल मिला अधारा॥२॥
दृष्टी जोड़ूँ दरस गुरू में ।
नित प्रीति सहित बचन सुनूँ मैं॥३॥
ले शब्द भेद नित करूँ अभ्यासा ।
देखूँ घट में बिमल तमाशा॥४॥
गुरु सरूप धर हिये धियाना ।
हैरत में रहूँ निरख के शाना॥५॥ चरनन में गुरु के मन हुआ लीन । हरखत रहे नित्त जैसे जल मीन॥६।।
जो जिव चरन में गुरु के लागे ।
मन और सुरत उन्हीं के जागे॥७॥
जग देखा काल का पसारा ।
माया ने उपाये भोग सारा॥८॥
जीवन लिया जाल में फँसाई ।
निज घर की बाट दी छिपाई॥९॥
दुख भोगें दाद को न पावें ।
बाहर कोई जाल से न जावें॥१०॥
मम भाग उदय हुआ है भारी ।
सतगुरु मेरी आप सुध सम्हारी॥११॥
चरनों में मुझे लिया बुलाई ।
सतसँग में मुझे लिया लगाई॥१२॥
निज भेद सुनाय मेहर कीनी ।
निज चरन सरन की दात दीनी॥१३॥
मुझ दीन का काज खुद बनाया ।
घट में धुन सँग अधर चढ़ाया॥१४॥
गुन गाउँ मैं प्यारे गुरु के हरदम।
जपता रहूँ राधास्वामी दम दम।।१५।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-1-प्रेम तरंग-पृ.सं.214,215,216)
[11/16, 13:32] +91 93710 09322: **राधास्वामी! 16-11-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:- हंस हंसनी जुड़ मिल आये । दरशन कर मन अति हरषाये ॥ १ ॥ हिल मिल कर गुरु आरत करते । प्रीति प्रतीति हिये विच धरते ॥ २ ॥ हार हार मन चित बिगसाना । फूल फूल गुरु चरन समाना ॥ ३ ॥ थाल उमँग और जोत बिरह की । जुड़ मिल गावें आरत गुरु की ॥ ४ ॥ घंटा संख शब्द धुन आई । ताल मृदंग और गरज सुनाई ॥ ५।। हिये में जाय लखी गुरु मूरत । बिमल विलास करें मन सूरत ॥ ६ ॥ अक्षर पुरुष दरस किया सुन में । सारंगी धुन सुनी स्रवन में ॥ ७ ॥ हिल मिल कर सतगुरु सँग चाली । मुरली धुन सुन भँवर सम्हाली ॥ ८ ॥ सत्तपुरुष का दरशन पाते । धुन बीना सँग राग सुनाते ।।९।। अमी अहार बिलास नवीना । सतगुरु चरनन सरन अधीना ॥ १० ॥ अलख अगम की महिमा गावत । दया मेहर ले आगे धावत ॥११ ॥ राधास्वामी के दरशन पाये । उमँग उमँग निज चरन समाये ॥ १२ ॥ आनँद हरष रहा घट छाई । भाग आपना लिया सराही ॥ १३ ॥ दया मेहर कुछ बरनी न जाई । पूरन प्रेम रहा बरसाई।।१४।। आरत हो गई पूरन आज । राधास्वामी कीना सबका काज ॥ १५।। (प्रेमबानी-1-शब्द-58-पृ.सं.221,222)**
[11/16, 15:30] +91 93710 09322: **राधास्वामी! आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:- सुरत पियारी उमँगत आई। राधास्वामी चरनन सीम नवाई।।१।। सतसंग की अभिलाख बढ़ाई । राधास्वामी नाम जपत सुख पाई।।२।। नित गुरु दरशन धावत करती । रूप सोहावन हिये में धरती।।३।। आरत गावत होत अनंदा। करम भरम का काटा फंदा।।४।। सतसँगियन से करती मेल।मन इंद्री सँग तजती केल।।५।। उमँग बढ़ावत प्रेम जगावत। आरत बानी नित नित गावत।।६।। नित गुन गावत जागे भाग। राधास्वामी चरन सुरत रही लाग।।७।। (प्रेमबानी-2-शब्द-14-पृ.सं.17,18)-(करनाल ब्राँच हरियाणा)**
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