राधास्वामी!
उमँग मेरे उठी हिये में आज ।
करू अब आरत गुरु का साज॥१॥
दीन दिल थाली लेउँ सजाय ।
बिरह की जोत अनूप जगाय॥२॥
सुरत के बान चलाऊँ सार।
चरन गुरु राखूँ हिरदे धार॥३॥
बिकल मन तड़पत है दिन रैन ।
करूँ गुरु दरशन पाऊँ चैन॥४॥
गुरु मेरे प्यारे दीनदयाल ।
सरन दे मुझको करो निहाल।।५।।
करें गुरु मेरा पूरा काज।
मेरे तन मन की उनको लाज॥६॥
करूँ मैं बिनती बारंबार ।
गुनह मेरे बख़्शों दीनदयार॥७॥
सुरत मन लीजे आज सम्हार ।
बहत हूँ काल करम की धार॥८॥
चरन पै छिन छिन जाउँ बलिहार ।
गुरू मेरे प्यारे सत करतार॥९।।
मेहर कर खोलो प्रेम दुआर ।
चढ़ावो सूरत नौ के पार॥१०॥
सहसदल जोत जगाऊँ सार ।
पाउँ फिर दरशन गुरु दरबार॥११॥
सुन्न चढ़ मानसरोवर न्हाय ।
गुफा में मुरली लेउँ बजाय॥१२॥
वहाँ से सतपुर पहुँचूँ धाय ।
पुरुष का हरखूँ दरशन पाय॥१३॥
अलख और अगम लोक के पार ।
जाउँ राधास्वामी पै बलिहार॥१४॥
प्रेम अँग आरत करूँ बनाय ।
दरस राधास्वामी छिन छिन पाय॥१५॥
मेहर से काज हुआ सब पूर।
सुरत हुई राधास्वामी चरनन धूर।।१६।
(प्रेमबानी-1-शब्द-1-आरत बानी-
पृ.सं.226,227,228)
🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿
No comments:
Post a Comment