: राधास्वामी!
22-11-201-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-
उमँग मेरे उठी हिये में आज ।
करू अब आरत गुरु का साज॥१॥
दीन दिल थाली लेउँ सजाय ।
बिरह की जोत अनूप जगाय॥२॥
सुरत के बान चलाऊँ सार।
चरन गुरु राखूँ हिरदे धार॥३॥
बिकल मन तड़पत है दिन रैन ।
करूँ गुरु दरशन पाऊँ चैन॥४॥
गुरु मेरे प्यारे दीनदयाल ।
सरन दे मुझको करो निहाल।।५।।
करें गुरु मेरा पूरा काज।
मेरे तन मन की उनको लाज॥६॥
करूँ मैं बिनती बारंबार ।
गुनह मेरे बख़्शों दीनदयार॥७॥
सुरत मन लीजे आज सम्हार ।
बहत हूँ काल करम की धार॥८॥
चरन पै छिन छिन जाउँ बलिहार ।
गुरू मेरे प्यारे सत करतार॥९।।
मेहर कर खोलो प्रेम दुआर ।
चढ़ावो सूरत नौ के पार॥१०॥
सहसदल जोत जगाऊँ सार ।
पाउँ फिर दरशन गुरु दरबार॥११॥
सुन्न चढ़ मानसरोवर न्हाय ।
गुफा में मुरली लेउँ बजाय॥१२॥
वहाँ से सतपुर पहुँचूँ धाय ।
पुरुष का हरखूँ दरशन पाय॥१३॥
अलख और अगम लोक के पार ।
जाउँ राधास्वामी पै बलिहार॥१४॥
प्रेम अँग आरत करूँ बनाय ।
दरस राधास्वामी छिन छिन पाय॥१५॥
मेहर से काज हुआ सब पूर।
सुरत हुई राधास्वामी चरनन धूर।।१६।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-1-आरत बानी-पृ.सं.226,227,228)
*राधास्वामी!
आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-
राधास्वामी गुरु दातार |
प्रगटे संसारी॥१॥
राधास्वामी सद किरपाल ।
मिले मोहि देह धारी॥२॥
राधास्वामी गुरु हमार ।
चरनन बलिहारी॥३॥
राधास्वामी नाम अधार ।
सुर्त ने लिया धारी।४॥
राधास्वामी रूप निहार ।
सुरत हुई मतवारी ॥५॥
राधास्वामी धुन झनकार
घट में झनकारी॥६ ॥
मेरे रोम रोम हरषाय ।
दिय जिय दोउ वारी॥७॥
तन मन की सुधि बिसराय ।
घर की सुधि पा री ॥८॥
सुर्त भागी उमँग जगाय ।
पहुँची जाय पारी॥ ९॥
अलख अगम रहे वार ।
चरनन लिपटा री।।१०॥
मोहिं मिल गये प्रेम भँडार ।
राधास्वामी दरबारी॥११॥
यह गति बिरले पायँ ।
गहें गुरु सरनारी॥१२॥
राधास्वामी लें अपनाय ।
जस तस दया धारी ॥१३॥
(प्रेमबिलास-शब्द-25- पृ.सं.30,31)**
**राधास्वामी!
शाम सतसंग में पढा जाने वाला तीसरा पाठ:-
अरे मन रँग जा सतगुरु प्रीत ।
होय मत और किसी का मीत ॥१ ॥
यही अब धारो हित कर चीत ।
बिना गुरु जानो सभी अनीत ॥२ ॥
गुरू से लेना जा उन सीत ' ।
तजो सब कलमल रहो अतीत ॥३ ॥
मार लो मन को यही पलीत ।
सुरत में धरो शब्द की रीत ॥४ ॥
चढ़ो तुम नभर में यह जग जीत ।
गहो अब संतन की यह नीत ॥५ ॥
गुरू का नाम सम्हारो चीत ।
लगाओ छिन छिन उनसे प्रीत ॥६ ॥
गायें राधास्वामी यह निज गीत ht।
तजो सब छल बल ममता तीत ॥७।।
(रत्नाञ्जली)
(स्वेतनगर मोहल्ला)**
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