Wednesday, November 10, 2021

मयूरभट्ट ने देव को बनाया था तपोभूमि

 ऐतिहासिक गाथाओं के आईने में देव,

मयूरभट्ट ने देव को बनाया था तपोभूमि


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देव में सूर्यशतक की रचना कर पाई थी कुष्ठरोग से मुक्ति

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देव सूर्यभूमि आदिकाल से देवताओं और मनुष्यों का सूर्योपासना का महत्व केंद्र रहा है। यहां स्थित भगवान सूर्य के प्राचीन सूर्य मंदिर को भगवान विश्वकर्मा कृत माना जाता है। हालांकि मंदिर के शिलालेख बताता है कि मंदिर का निर्माण पुरूरवा वंशी राजा ईला के पुत्र राजा एल ने त्रेतायुग के 12,16000 वर्ष बीत जाने के बाद सूर्यकुण्ड से निकाले गए सूर्य के तीनों स्वरुप भगवान ब्रम्हा, विष्णु और महेश की मूर्ति को सूर्यमंदिर बनाकर स्थापित किया था। इतना ही नहीं, उन्हें यहां भयंकर कुष्ठ रोग से मुक्ति भी मिली थी।

महाराजा हर्षवर्धन के दरबारी  बाणभट्ट से कुष्ठ रोग से श्रापित मयूरभट्ट देव आ गए और यहीं अपनी तपोभूमि बनाया। तब देव सूर्यमंदिर के प्रांगण में एक विशाल पीपल का पेड़ था। उस पेड़ पर कहीं से एक ब्रह्म राक्षस आकर अपना निवास बना लिया था। वह सूर्य उपासकों को तंग करने लगा।

मयूर भट्ट जो संस्कृत के प्रकांड कवि थे, वे यहां सूर्योपासना शुरू कर दी। वे सूर्यशतक लिखकर उसका पाठ करने लगे। ब्रह्म राक्षस उनके पाठ का उच्चारण कर देता था, जिससे उनके पाठ में विघ्न पैदा होने लगा।

मयूरभट्ट ने ब्रह्म राक्षस से कहा, तुम क्यों विघ्न पैदा कर रहे हो ?

ब्रह्म राक्षस बोला, मेरा यह स्वभाव है?

मयूर बोले, तुम यह पवित्र स्थान छोड़ दो।

ब्रह्म राक्षस बोला, मैं यह स्थान छोड़ दूंगा, जब तुम हमारे प्रश्नों का जवाब ठीक -ठीक दे दोगे। 

कहते हैं, मयूर भट्ट ने ब्रह्म राक्षस के सभी प्रश्नों का जवाब दे दिया और वह  यह पवित्र स्थान छोड़कर अन्यत्र चला गया।

अपने द्वारा लिखे सूर्य शतक का नियमित पाठ कर मयूरभट्ट कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए।

अब वह पीपल का पेड़ तो नहीं है। जब हम बचपन काल में देव मंदिर आते थे,  तो पीपल के पेड़ का अवशेष दिखाई देता था। वह पीपल का पेड़  वर्तमान में अग्नि कुण्ड के पास था।

    * सुरेश चौरसिया - 9810791027, 9310183241.

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