ठुमक चढ़त सुरत अधर ,
सुन सुन घट धुनियाँ ॥टेक ॥
मन इंद्री सब उठे जाग ,
सतगुरु के चरन लाग ,
जगत भोग छोड़ राग ,
गगन ओर चलियाँ॥१॥
श्याम कंज द्वार तोड़ ,
ऊपर को चली दौड़ ,
घंटा संख सुनत शोर ,
जोत रूप लखियां॥२॥
गगन गरज सुनत चली ,
ररंकार धुन सँग मिली ,
बेद कतेब सब रहे तली ,
काल करम दलियाँ॥३॥
महासुन्न अंध घोर,
मुरली धुन करत शोर ,
बीन सुनी सतपुर की ओर ,
पुरुष गोद पलियाँ॥४॥
वहाँ से भी गई पार ,
अलख अगम धुन सम्हार ,
राधास्वामी पद निहार ,
चरन सरन रलियाँ॥५॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-1
- पृ.सं.220,221)
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