राधास्वामी गुरु दातार प्रगटे संसारी॥ १॥
राधास्वामी सद किरपाल ।
मिले मोहि देह धारी॥२॥
राधास्वामी गुरु हमार ।
चरनन बलिहारी॥३॥
राधास्वामी नाम अधार ।
सुर्त ने लिया धारी।४॥
राधास्वामी रूप निहार ।
सुरत हुई मतवारी ॥५॥
राधास्वामी धुन झनकार
घट में झनकारी॥६ ॥
मेरे रोम रोम हरषाय ।
दिय जिय दोउ वारी॥७॥
तन मन की सुधि बिसराय ।
घर की सुधि पा री ॥८॥
सुर्त भागी उमँग जगाय ।
पहुँची जाय पारी॥ ९॥
अलख अगम रहे वार ।
चरनन लिपटा री।।१०॥
मोहिं मिल गये प्रेम भँडार ।
राधास्वामी दरबारी॥११॥
यह गति बिरले पायँ ।
गहें गुरु सरनारी॥१२॥
राधास्वामी लें अपनाय ।
जस तस दया धारी ॥१३॥
(प्रेमबिलास-शब्द-25
- पृ.सं.30,31)**
**राधास्वामी!
अरे मन रँग जा सतगुरु प्रीत ।
होय मत और किसी का मीत ॥१ ॥
यही अब धारो हित कर चीत ।
बिना गुरु जानो सभी अनीत ॥२ ॥
गुरू से लेना जा उन सीत ' ।
तजो सब कलमल रहो अतीत ॥३ ॥
मार लो मन को यही पलीत ।
सुरत में धरो शब्द की रीत ॥४ ॥
चढ़ो तुम नभर में यह जग जीत ।
गहो अब संतन की यह नीत ॥५ ॥
गुरू का नाम सम्हारो चीत ।
लगाओ छिन छिन उनसे प्रीत ॥६ ॥
गायें राधास्वामी यह निज गीत ।
तजो सब छल बल ममता तीत ॥७।।
(रत्नाञ्जली)
(स्वेतनगर मोहल्ला)**
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