राधास्वामी!
25-11-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
काल ने जग में की कालना ज़ोर ।
डालिया माया भारी शोर॥१॥
जीव सब भोगन में भरमात ।
नाम का भेद न कोई पात॥२॥
करम बस दुख सुख भोगें आय ।
गये सब जम के हाथ विकाय॥३॥
निडर होय जग में मारें मौज ।
करें नहिं सतगुरु का वह खोज॥४॥
जीव का हित नहिं दिल में लाय ।
फ़िकर नहिं आगे क्या हो जाय॥५॥
समझ जो उनको कोई सुनाय।
भरम बस चित में नहीं समाय॥६॥
मान मद डाली भारी भूल ।
सहेंगे जम के कारी सूल॥७॥
बड़ा मेरा जागा भाग अपार ।
मिले मोहि सतगुरु परम उदार॥८॥
अबल मैं कुछ करनी नहिं कीन ।
दया कर चरन सरन मोहि दीन॥९॥
प्रेम की भारी कीन्ही दात।
छुटाया करम भरम का साथ॥१०॥
शुकर कर निस दिन उन गुन गाय ।
कुसँग से लीजे मोहि बचाय॥११॥
रहूँ मैं निस दिन चरनन पास।
पिरेमी जन सँग पाऊँ बास॥१२॥
करो अभिलाषा मेरी पूर ।
हुकम से तुम्हरे नहिं कुछ दूर॥१३॥
जीव हितकारी नाम तुम्हार ।
करो अब मुझ पर दया अपार॥१४॥
परम गुरु राधास्वामी दीनदयाल ।
दरस दे मुझको करो निहाल||१५।|
मगन मन अभिलाषत दिन रात ।
करूँ गुरु आरत प्रेमी साथ॥१६॥
थाल सतसँग का लेउँ सजाय ।
बचन गुरु सरवन जोत जगाय॥१७॥
करूँ गुरु दरशन दृष्टि सम्हार |
गाउँ अस आरत बारंबार ||१८||
करत मन मेरा अस बिसवास ।
करें गुरु पूरन मेरी आस॥१९॥
पिया मेरे राधास्वामी प्रान अधार ।
दरस पर तन मन दूँगी वार||२०।।
मोहनी छबि नहिं बरनी जाय ।
नैन और तन मन रहे लुभाय॥२१॥
भाग बड़ प्रेमी जन हैं सोय ।
करें नित दरशन सुरत समोय||२२ ||
भाग मेरा भी लेव जगाय ।
देव निज दरशन पास बुलाय॥२३॥
सोच मेरे मन में निस दिन आय मोहि केहि कारन दूर रखाय||२४ ||
कसर मेरी कीजे सब अब दूर । दिखाओ जल्दी अपना नूर॥२५॥
करूँ मैं विनती दोउ कर जोर । सुनो प्यारे राधास्वामी सतगुरु मोर।।२६।। मेहर अब पूरी करो दयाल ।
चरन में मुझको लेव सम्हाल||२७||
गाऊँ गुन तुम्हरा दिन और रात ।
चरन में प्रेमी जन के साथ||२८||
सुरत मन चढ़ें गगन पर घूम |
सुन्न में पहुँचें वहाँ से झूम ||२९ ||
गुफा चढ़ सतपुर पहुँचूँ धाय ।
अलख और अगम को निरखूँ जाय।३०|
अनामी धाम का दरशन पाय ।
चरन में राधास्वामी रहूँ समाय||३१||
प्रेमबानी-1-शब्द-3-
(पृ.सं.229,230,231,232)
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